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चीन में किस भाषा में होती है मेडिकल की पढ़ाई? विदेश से आए स्टूडेंट्स को भी सीखनी पड़ती है ये भाषा
<पी शैली="पाठ-संरेखण: औचित्य सिद्ध करें;">चीन में एमबीबीएस की पढ़ाई करना भारत की तुलना में खासा फायदेमंद है. ऐसा इसलिए है क्योंकि दुनिया के टॉप 500 मेडिकल यूनिवर्सिटीज में से कई चीन में स्थित है. इसके अलावा भारतीय प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की तुलना में चीन के मेडिकल यूनिवर्सिटीज की फीस भी काफी कम है.
चीन की विश्व स्तर की यूनिवर्सिटी में 25 से 35 लाख रुपये खर्च कर एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की जा सकती है. राजधानी बीजिंग के विश्वविद्यालय 35 लख रुपये से ज्यादा की फीस लेते हैं. चीन की मेडिकल यूनिवर्सिटीज अपने इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटी के लिए जानी जाती हैं. साथ ही उनके अस्पतालों में आने वाले मरीजों की संख्या प्रैक्टिस और इंटर्नशिपट के लिहाज से बेहतर जगह है.
भाषा ज्ञान है बड़ी चुनौती
चीन में पढ़ाई करने से पहले आपके लिए चीनी भाषा को सीखना और समझ आना बेहद जरूरी है. कारण, चीन में भले ही विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रोफेसर उपलब्ध हो जाएं, लेकिन अस्पतालों में आने वाली अधिकांश जनता को स्थानीय चीनी भाषा ही समझ आती है. यही वजह है कि चीन में पढ़ाई करने से पहले किसी भी छात्र के लिए कम से कम एचएसके-4 लेवल की चीनी भाषा सीखना जरूरी होता है ताकि वह लोगों या मरीजों के साथ संवाद कर सकें.
स्थानीय भाषा की पढ़ाई का दोहरा दबाव
वैसे तो चीन में एमबीबीएस की पढ़ाई ज्यादातर विश्वविद्यालय में स्थानीय चीनी भाषा के अलावा अंग्रेजी में पढ़ाई जाती है. ज्यादातर विश्वविद्यालय में बाइलिंगुअल यानी दो भाषाओं में प्रोग्राम संचालित किए जाते हैं, लेकिन क्योंकि वहां पर रहने वाली अधिकांश जनता अंग्रेजी नहीं बोल या समझ पाती. ऐसे में बिना स्थानीय चीनी भाषा सीखे वहां पर प्रैक्टिस करना और प्रशिक्षण लेना मुश्किल हो जाता है. यही वजह है कि छात्रों पर एमबीबीएस के साथ साथ बेसिक चीनी भाषा के ज्ञान को पाने का दोहरा दबाव न चाहते हुए भी रहता है.
इन चुनौतियों को करना पड़ता है सामना
बातचीत के लिए विदेशी छात्रों को गूगल ट्रांसलेटर की जरूरत होती है क्योंकि स्थानीय चीनी लोग अंग्रेजी बोल या समझ नहीं पाते. कई विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की अंग्रेजी भी विदेशी छात्रों की तुलना में अच्छी नहीं होती. जिसकी वजह से कई बार विषय को समझने में विदेशी छात्रों को समस्या होती है. एक नई भाषा को सीखने का दबाव विदेशी छात्रों को ना चाहते हुए भी झेलना पड़ता है जो कि एमबीबीएस की पढ़ाई के साथ करने की वजह से दोहरी चुनौती बन जाता है.