जम्मू-कश्मीर में वंचित वाल्मीकि समुदाय को पहली बार मिला वोट देने का हक, बोले- न्याय की जीत
लंबे समय से वोट के अधिकार से वंचित वाल्मीकि समुदाय के लोगों ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग किया। समुदाय के लोगों ने इसे एक ऐतिहासिक क्षण बताया है। 1957 में राज्य सरकार वाल्मीकि समुदाय के लोगों को साफ सफाई के कामों के लिए पंजाब के गुरदासपुर जिले से जम्मू-कश्मीर लेकर आई थी। जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में तीसरे और अंतिम चरण के तहत मंगलवार को वोटिंग जारी है। इस चरण में 40 सीटों कर मतदान किया जा रहा है वहीं 415 उम्मीदवार मैदान में हैं।
वाल्मीकि समुदाय के कई लोग पहली बार मतदान करने पहुंचे हैं। इस दौरान जम्मू के एक मतदान केंद्र पर वोट डालने वाले घारू भाटी ने कहा, “मैं 45 साल की उम्र में जिंदगी में पहली बार वोट डाल रहा हूं। हम पहली बार जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में भाग लेने के लिए रोमांचित हैं। यह हमारे लिए एक बड़े त्योहार की तरह है।” घारू भाटी ने अपने समुदाय के लिए नागरिकता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए 15 सालों से ज्यादा समय से प्रयास कर रहे हैं।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद मिला हक
घारू भाटी ने कहा, “यह पूरे वाल्मीकि समुदाय के लिए एक त्योहार है। यहां 80 साल के बुजुर्ग और 18 साल के युवा भी मतदाता हैं। जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया तो न्याय की जीत हुई और हमें जम्मू-कश्मीर की नागरिकता प्रदान की गई।” उन्होंने कहा, “दशकों से सफाई कार्य के लिए यहां लाए गए हमारे समुदाय को वोट देने के अधिकार और जम्मू-कश्मीर की नागरिकता सहित बुनियादी अधिकारों से वंचित किया गया था। यह पूरे वाल्मीकि समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।” अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी और वाल्मीकि दोनों अब जम्मू-कश्मीर में ज़मीन खरीद सकते हैं, नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं और चुनावों में भाग ले सकते हैं। वाल्मीकि समुदाय वैकल्पिक आजीविका की भी तलाश कर सकता है।
‘75 साल बाद मिले अधिकार’
जम्मू कश्मीर में पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों और गोरखा समुदायों को मिलाकर लगभग लगभग 1.5 लाख वाल्मीकि समुदाय के लोग हैं। वे जम्मू, सांबा और कठुआ जिलों में खासतौर पर सीमावर्ती क्षेत्रों में रहते हैं। गांधी नगर और डोगरा हॉल क्षेत्रों में रहने वाले समुदाय के लगभग 12,000 लोग पहले स्टेट सब्जेक्ट सर्टिफिकेट ना होने की वजह से वोट नहीं दे पाते थे। उन्हें शिक्षा, नौकरी के अवसरों और जमीन पर मालिकाना हक जैसे अधिकार भी नहीं मिलते थे। भाटी ने कहा, “हम कभी जम्मू-कश्मीर के न्याय और संवैधानिक ढांचे पर एक काला धब्बा थे। आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के हिस्से के रूप में वाल्मीकि समाज, पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी और गोरखा समुदायों को 75 साल बाद आखिरकार अपने संवैधानिक अधिकार मिल गए हैं।”
वोट डालकर क्या बोले लोग
वोट देने के लिए कतार में खड़ी 19 साल कोमल ने ने कहा, “मैं खुशकिस्मत हूं कि मैं वोट डाल सकती हूं। मेरी 74 साल की दादी भी आज मतदान कर रही हैं। मुझे खुशी है कि अन्याय और भेदभाव का युग समाप्त हो गया है।” समुदाय की 22 साल के ऐकता माथु ने अपने 53 वर्षीय पिता, जो सफाई कर्मचारी हैं, के साथ गांधी नगर मतदान केंद्र पर अपना वोट डाला। उन्होंने कहा, “हम दोनों पहली बार मतदान कर रहे हैं। मेरे पिता पिछले चुनावों में मतदान नहीं कर पाते थे। उन्हें यहां बेहतर नौकरी नहीं मिल सकी। अब मैं जज बनने की ख्वाहिश रखता हूं। इसका श्रेय केंद्र सरकार को जाता है, जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर हमें जम्मू-कश्मीर का नागरिक बना दिया।”