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इतिहास मेरे कार्यकाल को… रिटायरमेंट से पहले CJI चंद्रचूड़ को किस बात की चिंता? बताई दिल की बात

सीजेआई चंद्रचूड़ समाचार: मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ अगले महीने रिटायर होने जा रहे हैं। इससे पहले उन्होंने अपने भविष्य और अतीत को लेकर चिंताएं और शंकाएं व्यक्त की हैं। उन्होंने कहा कि अक्सर वह सोचते हैं कि क्या उन्होंने न्यायपालिका में वह सब हासिल किया जो वे करना चाहते थे। उनका सोचना है कि आखिर इतिहास उनके कार्यकाल को किस तरह से लेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि इन सवालों के अधिकतर उत्तर उनके नियंत्रण से परे हैं और शायद उन्हें इनका जवाब कभी नहीं मिलेगा।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह बातें भूटान के जिग्मे सिंग्ये वांगचुक स्कूल ऑफ लॉ के तीसरे दीक्षांत समारोह के दौरान कहीं। इस समारोह में भूटान की राजकुमारी सोनम देचन वांगचुक, स्कूल के अध्यक्ष ल्योनपो चोग्याल दागो रिगडजिन और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।

इतिहास मेरे कार्यकाल को कैसे याद करेगा: सीजेआई चंद्रचूड़

उन्होंने कहा, “मैं नवंबर में भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपना पद छोड़ने वाला हूं। इस दौरान मेरा मन भविष्य और अतीत को लेकर चिंताओं से भरा हुआ है। मैं खुद से यह सवाल पूछता हूं कि क्या मैंने वो सब किया जो मैंने तय किया था? इतिहास मेरे कार्यकाल को कैसे याद करेगा? क्या मैं कुछ और बेहतर कर सकता था? मेरे द्वारा छोड़ी गई विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसी होगी?”

चंद्रचूड़ ने अपने दो साल के कार्यकाल को संतोषजनक बताते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा के साथ निभाया है, चाहे परिणाम जो भी हो। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब तक आप अपने इरादों और क्षमताओं पर विश्वास रखते हैं, तब तक परिणामों की चिंता किए बिना काम करना आसान हो जाता है।

भारत और भूटान को लेकर क्या बोले सीजेआई चंद्रचूड़

इसके अलावा, उन्होंने पारंपरिक मूल्यों को मान्यता देने और उनका सम्मान करने की अपील की। सीजेआई ने जोर देकर कहा कि पारंपरिक मूल्य ही भारत और भूटान जैसे देशों की नींव रहे हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों की मानवाधिकारों की परिभाषा अक्सर व्यक्तिगत अधिकारों को प्राथमिकता देती है, जो कई बार हमारी न्याय की समझ से मेल नहीं खाती। उन्होंने कहा कि भारत और भूटान जैसे देशों में पारंपरिक सामुदायिक विवाद निवारण तंत्र को आधुनिक संवैधानिक विचारों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।

समारोह के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति भूटान की प्रतिबद्धता की भी सराहना की और भारत में पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने के लिए ऐसे संवेदनशील और प्रशिक्षित वकीलों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कानून केवल विवादों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे सामाजिक परिवर्तन का एक प्रभावी साधन माना जाना चाहिए।

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