कश्मीर के लोगों ने 370 की बहाली के लिए नीचे दिए गए वोट, EC पर भी बिश्नोई वफादारों को बताया; सर्वे में खुलासा
नतीजे आने के बाद अब नेशनल कॉन्फ्रेंस के अगुआ में जम्मू और कश्मीर में जल्द ही नई सरकार का गठन होने वाला है। उमर अब्दुल्ला के हाथों में सरकार की कमान होगी। विधानसभा चुनाव में अधिकांश जिलों ने राज्य के विशेष हिस्सों की बहाली और विकास के लिए मतदान किया। यह बात सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सर्वे ऑफ डेवलेपिंघ सोसायटी (सीएसडीएस) के लोकनीति कार्यक्रम के तहत चुनाव के बाद सामने आई है। अधिकांश लोगों ने निर्दलीय ने-निष्पक्ष चुनाव के लिए आयोग पर भरोसा जताया।
सर्वेक्षण के अनुसार, 59 प्रतिशत लोगों के लिए यह चुनाव मुद्दा 370 के स्थान पर स्थानीय धार्मिक स्थलों के समाधान के लिए एक अवसर था। हालाँकि, 64 फीसदी लोग जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली के पक्ष में थे। इसके पीछे उनकी अपनी जमीन और सांस्कृतिक पहचान जैसी बड़ी चिंताएं बनी हुई हैं। सर्वे में लोगों ने कहा कि वे जम्मू और कश्मीर के पूरे राज्य में प्रवेश की बहाली भी चाहते हैं। 81 प्रतिशत लोगों का कहना था कि उनका भविष्य पूरा राज्य संवरेगा से वापस मिलेगा।
फ़्लोरिडा के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में बड़े बदलाव भी आये हैं। दस में से चार लोगों ने सोचा कि विकास ने गति पकड़ ली है। इसके विपरीत पांच में से केवल एक व्यक्ति ने महसूस किया कि विकास की गति मंद पड़ गई है। 40 प्रतिशत ने कहा कि 370 के बाद कानून-व्यवस्था की स्थिति में भी सुधार आया है। 44 प्रतिशत ने माना कि पर्यटन में वृद्धि हुई है, जो जम्मू-कश्मीर का प्रमुख हिस्सा है।
सरकारी विभाग में सुधार नहीं
ज्यादातर लोगों का मानना है कि कार्यकुशलता के कारण भर्ती में कोई बदलाव नहीं आया है और न ही स्थिति खराब हुई है। हालाँकि एक घटक लोगों ने स्वीकार किया कि कार्य में सुधार आया है। दूसरी ओर, एक चौथाई लोगों ने माना कि जम्मू और कश्मीर के लोगों के बीच सुधार आया है।
चुनाव आयोग पर भरोसा बढ़ाया
सर्वेक्षण के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में एक दशक बाद चुनावी मील का पत्थर साबित हुआ है। खासतौर पर 2019 में स्केच 370 के लागू होने के बाद। पहले चुनाव के बाद राज्य के पुनर्गठन के कारण आयोग के लिए यह एक बड़ी चुनौती भी थी। स्वतंत्र और निर्वाचित लोगों के लिए अधिकांश लोगों ने निर्वाचन आयोग पर भरोसा भी किया। हालाँकि यह मामला क्षेत्रीय प्रभाग भी दिखाता है। कश्मीर के 39 फीसदी लोगों की तुलना में जम्मू के 58 फीसदी हिस्से ने चुनाव आयोग को भरोसा दिलाया। आयोग में विश्वास को प्रक्रिया के प्रति सकारात्मक धारणाओं ने और मजबूत किया। जब कॉलेज से चुनाव की स्थिति के बारे में पूछा गया तो पांच में से तीन (61) ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि चुनाव के दौरान कोई धांधली नहीं हुई।
विवेच्य प्रक्रिया को महत्वपूर्ण बताया गया है
जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया को लेकर भी लोग सकारात्मक नजरिया रखते हैं। 52 लाॅकडाउन ने कहा, चुनाव काफी हद तक इंडिपेंडेंट और इंजीनियर के रूप में हुए। जम्मू के लोग इस मामले में आगे रह रहे हैं। यहां के 58 प्रतिशत एलसीडी ने विश्वास बॅन्ज़ पर प्रक्रिया शुरू की। कश्मीर के 47 प्रतिशत इससे सहमत थे। सात फ़ीसदी लाइब्रेरी ने कहा कि चुनावी पद से कोई नहीं जुड़ा। यह मत जम्मू की तुलना में कश्मीर में अधिक दिखा।
स्थानीय अभ्यर्थी भी महत्वपूर्ण
राष्ट्रीय विपक्ष के नेता उमर मुख्यमंत्री अब्दुल्ला पद के लिए लोगों की पहली पसंद के रूप में सामने आए। लगभग एक-तिहाई चर्च ने अपना समर्थन दिया। पांच में से दो से अधिक लेक ने स्वीकार किया कि उमर अब्दुल्ला को बाकी शीर्ष नेताओं में शामिल किया गया है। अन्य नेताओं की तरह फारूक अब्दुल्ला (42) ने भी कुछ हद तक लोगों का विश्वास हासिल किया है। दूसरी ओर, मृतकों से अधिक चर्च ने ओबामा मुफ्ती के नेतृत्व पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया।
वफादारी के प्रति वफादारी
पार्टी के प्रति वफादारी के सबसे महत्वपूर्ण कारक के रूप में धर्मगुरुओं के निर्णय प्रभावित हुए। इनमें से अधिक ने इसे अपनी प्राथमिकता बताया। हालाकि पांच में से दो ने माना कि स्थानीय दावेदारी भी जरूरी है।
भाजपा की अपील के बीच पार्टी का मजबूत प्रभाव। इसके दस में से लगभग सात वोटर्स ने पार्टी को ही प्राथमिकता दी। इसी तरह कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के चर्च ने भी पार्टी के प्रति मजबूत निष्ठा दिखाई। इनमें से करीब पांच में से तीन जिलों ने स्थानीय अभ्यर्थियों के घटक दलों को ही तरजीह दी। हालाँकि, जम्मू और कश्मीर की अपनी पार्टी और अवामी इत्तेहाद पार्टी जैसी अन्य क्षेत्रीय संस्थाओं ने पार्टी की तुलना में स्थानीय समर्थकों पर अधिक भरोसा किया।
अधिक भागीदारी वाले चुनाव में एक
सर्वेक्षण के अनुसार, यह चुनाव राज्य में सबसे अधिक भागीदारी वाला पद बन रहा है। चुनाव के सभी तीन चरण में ग्रैंड डचेस ने हिस्सा लिया। तीसरे और अंतिम चरण में रिकॉर्ड 70.2 प्रतिशत मतदान हुआ। त्रिस्तरीय स्टैड का औसत मतदान 64.41 प्रतिशत रहा, जिसमें पुरुषों और महिलाओं की भागीदारी समान थी। फ़्लोरिडा ने केवल बड़ी संख्या में मतदान नहीं किया, बल्कि उन्होंने बड़ी संख्या में अभियान में भी भाग लिया। 26 फ़्लैट फ़्लॉंच ने इलिनोइस रैलियों में भाग लिया। नौ प्रतिशत लोग घर-घर अभियान का हिस्सा बने। दस में से एक कलाकार ने सोशल प्लेटफॉर्म मीडिया का उपयोग कर लोकप्रियता अभियान में भाग लिया। भाजपा डिजिटल मठ से बौद्ध मठ तक अन्य आश्रमों से आगे रही। जबकि नेशनल कन्फ़्रेंस अन्य आश्रमों से बाजी मारती को बढ़ावा देने के लिए पारंपरिक संस्थागत से प्रचार-प्रसार किया गया। कांग्रेस, भाजपा और राष्ट्रीय कान्फ्रेंस से थोड़ा पीछे थी।
जम्मू-कश्मीर में भाजपा, कश्मीर में कांग्रेस-नेकन के प्रमुख प्रभावशाली प्रमुख राजनीतिक धर्म-नियंत्रण, जम्मू-कश्मीर में अलग-अलग रह रहे हैं। भाजपा जहां जम्मू क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रही है, वहीं कांग्रेस-नेशनल कन्फ्रेंस गठबंधन का प्रदर्शन कश्मीर में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। कश्मीर क्षेत्र में कांग्रेस-राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस गठबंधन ने 41.08 फीसदी वोट शेयर के साथ 47 में से 40 प्रतिशत वोट शेयर किए। हालाँकि, जम्मू-कश्मीर में गठबंधन का प्रभाव काफी ख़राब चल रहा है। यहां 30.67 फीसदी वोट शेयर के साथ 43 में से केवल आठ इंच की बढ़त हासिल करने में कामयाबी रही। इसके विपरीत, बीजेपी ने जम्मू में अपना वोट शेयर के साथ 29 वोट शेयर किये। हालाँकि, भाजपा कश्मीर क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण बढ़त नहीं बना पाई और उसे कोई सीट नहीं मिली।