इस गांव में दशहरे पर छा जाता है मोही, 18000 लोगों के घर नहीं जलता चूल्हा, 1857 से नहीं मनाया जाता त्योहार
अन्तः यूरोप के एक गांव में सन् 1857 से दशहरा नहीं मनाया जाता था। रावण की मुस्लिम से अनोखी कहानी. यहां त्योहार ही गांव में मोहीछा आता है। घर में चूल्हे नहीं जलते. ऐसा ही एक गांव है जिसके बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। आमतौर पर सभी त्योहारों का इंतजार रहता है। सत्य की जीत का त्योहार सत्य की जीत का त्योहार पूरे देश में और बाहर भी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इस गांव में दशहरा के दिन घर में चूल्हे नहीं जलते। यहां दशहरा शब्द रिकॉर्ड ही लोग मोह हो जाते हैं। इस गांव में सदियों से दशहरा नहीं मनाया जाता।
ऐसी कहानी है कि आप दंग रह जाएंगे। अगर आपसे पूछा जाए कि किसी भी त्योहार पर आप कैसे बने तो आप यही आदर्श हंसी खुशी के साथ। लेकिन मेरठ का एक ऐसा गांव है जहां दशहरा उत्सव का नाम रखा गया है, यहां हवाईयां उड़ती हैं। यहां तक कि दशहरा शब्द की रिपोर्ट ही लोग रुंधे हो जाते हैं। जब पूरे देश में दशहरा मनाया जाता है तो इस गांव में मातमी रहती है। जब देश में सत्य की जीत का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है तो इस गांव के घर में चूल्हा भी नहीं जलता। ऐसे में न्यूज 18 ने इस गांव का दौरा किया और इस राज को पता चला कि आखिर हजारों की आबादी वाला गांव दशहरा क्यों नहीं मनाता।
गागोल गांव के लोगों का कहना है कि जब गांव में क्रांति की लहर फूटी थी। तो इसी गांव के 9 लोगों को दशहरे के दिन ही फांसी दे दी गई थी। गांव में पीपल का पेड़ आज भी मौजूद है। जहां इस गांव के 9 लोगों को फांसी दी गई थी. ये बात है इस गांव के बच्चे-बच्चे में इस बेटे का घर कर गया है कि कायर वो बच्चा हो या बड़ा। पुरुष हो या महिला दशहरा नहीं मनाता. यही नहीं इस गांव में दशहरे के दिन किसी घर में चूल्हा तक नहीं जलता। इस गांव की परंपरा निराली है और निराला है अपने गांव के मृतकों को नमन करने का तरीका।
पहले प्रकाशित : 12 अक्टूबर 2024, 12:14 IST