जम्मू-कश्मीर में जहां इस्लाम के नाम पर वोट मांग रहे थे जमाती, वहां कम्युनिस्ट पार्टी ने फिर मारी बाजी
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस और अब्दुल्ला परिवार की वापसी को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है, लेकिन इसके साथ ही कुलगाम निर्वाचन क्षेत्र का नतीजा भी बहुत महत्वपूर्ण है। यहां कश्मीर के कम्युनिस्ट नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने शतरंज-ए-इस्लामी के दावेदारों को ऐतिहासिक जीत हासिल की है। जानकार होंगे कि मोहम्मद यूसुफ तारिगामी कुलगाम सीट से 1996 से जीते आ रहे हैं। हर बार उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के टिकटों पर ही जीत हासिल होती है।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, तीसरे चरण के अंत तक तारिगामी करीब 8,000 से आगे थे। उनके पीछे अनाम-समर्थित सायर अहमद रेशी रह रहे हैं। कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ने 7838 के अंतर से जीत हासिल की। उन्हें कुल 33634 वोट मिले जहां दूसरे नंबर पर रेशी को 25796 वोट मिले। चुनाव से पहले इस सीट पर मुस्लिम-बहुल के दावेदार अहमद रेशी ने कहा था कि अगर वह हारते हैं, तो यह “इस्लाम की हार” होगी। हालाँकि, चुनावी नतीजों से पता चला है कि मतदाताओं को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश विफल रही।
चार बार के विधायक एम.वाई. तारिगामी ने एनडीटीवी से कहा, “मैं कुलगाम की जनता को सलाम करता हूं। उन्होंने कुलगाम, कश्मीर और कश्मीर के लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उन लोगों को हराया जो सरकार के सहयोगी बने।” उन्होंने सवाल पूछने पर कहा, “यही वो लोग हैं जो स्टॉक में हैं। तीन साल की हिंसा और उथल-पुथल के बाद, अब वे इसे इस्लाम बनाम कुछ और बनाने की कोशिश कर रहे हैं।” की हार नहीं है, बल्कि उनकी दोगली और पौराणिक राजनीति की हार है।”
मोहम्मद यूसुफ तारिगामी जम्मू और कश्मीर के एक प्रमुख सहयोगी हैं, जो लंबे समय से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य हैं। वे जम्मू और कश्मीर विधानसभा के पूर्व सदस्य रहे हैं और उन्होंने कुलगाम विद्युत क्षेत्र का कई बार प्रतिनिधित्व किया है। तारिगिम जम्मू और कश्मीर में गठबंधन के प्रमुख नेता माने जाते हैं और वे राज्य के अनुयायी जैसे कि मानवाधिकार, सामाजिक न्याय और क्षेत्रीय शांति के लिए काफी सक्रियता से काम करते हैं। तारिगोमी ने 2019 में धारा 370 के हटने के बाद केंद्र सरकार के समर्थकों के विरोध और राज्य के विशेष दर्जे के पक्ष में अपनी आवाज उठाई।
तारिगामी को राष्ट्रीय सम्मेलन का समर्थन प्राप्त था, जिसने कुलगाम में कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था। इस सीट पर पीडीपी के उम्मीदवार मोहम्मद अमीन दार तीसरे स्थान पर हैं। 1990 के दशक में हजरत-ए-इस्लामी की मुहिम सबसे आगे थी, लेकिन बाद में उन्होंने यू-टर्न लेते हुए चुनावी लड़ाई का फैसला लिया। 2019 में इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और इस चुनाव में दावेदारी के तौर पर उस प्रयास को देखा जा रहा था, जिससे वह अपने ऊपर प्रतिबंध लगाकर पलट गए थे।