क्या है फाइव आइज, जिसके दम पर उछल रहे जस्टिन ट्रूडो; क्या भारत को पहुंचा सकता है नुकसान
फाइव आइज गठबंधन के तहत जितने भी देश आते हैं, वो सभी एक दूसरे से मल्टीलेटरल अरेंजमेंट के तहत खुफिया जानकारियां साझा करते हैं। आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा इनके लिए पहली प्राथमिकता में शामिल है।
भारत और कनाडा के बीच दो दिनों के अंदर द्विपक्षीय संबंधों में तेजी से गिरावट आई है। इस तनाव और विवाद में अब ब्रिटेन भी कूद पड़ा है। ब्रिटेन ने भी भारत से कनाडाई जांच में सहयोग की अपेक्षा की है। ब्रिटेन ने बुधवार को कहा कि कनाडा की कानूनी प्रक्रिया में भारत का सहयोग दोनों देशों के बीच चल रहे कूटनीतिक विवाद में ‘अगला सही कदम’ है। इसके साथ ही ब्रिटेन ने कहा है कि उसे कनाडा की न्यायिक प्रणाली पर पूरा भरोसा है। ब्रिटेन तीसरा देश है, जिसने इस तरह की बात कही है। इससे पहले अमेरिका और आस्ट्रेलिया भी कनाडा की गुहार के बाद इसी तरह की बात कह चुका है।
दरअसल, जब सोमवार को खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में कनाडा ने फिर से मनगढ़ंत और बेबुनियाद आरोप लगाए, तब भारत ने उसके प्रभारी उच्चायुक्त को नई दिल्ली में तलब कर करारा जवाब दिया। इसके बाद नई दिल्ली ने ओटावा से अपने राजनयिकों और अधिकारियों को सुरक्षा खतरों के चलते वापस बुलाने का फैसला किया और कनाडा के छह राजनयिकों को निष्कासित कर दिया, तब से कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो बौखला उठे हैं। ट्रूडो ने फौरन ‘फाइव आइज’ अलायंस के देशों से संपर्क साधना शुरू कर दिया और भारत के खिलाफ पश्चिमी देशों को उकसाना और लामबंद करना शुरू कर दिया।
क्या है फाइव आइज
फाइव आइज एक खुफिया गठबंधन है, जिसमें पांच देश शामिल हैं। इन पांच देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड शामिल हैं। 1946 में इन पांचों अंग्रेजीभाषी देशों और उनकी सुरक्षा एजेंसियों के बीच निगरानी और खुफिया जानकारी साझा करने का द्विपक्षीय समझौता हुआ था। इसके तहत इस गठबंधन के सदस्यों यानी अमेरिका की NSA, ब्रिटेन की GCHQ, ऑस्ट्रेलिया की ASD, कनाडा की CSEC और न्यूजीलैंड की GCSB शामिल हैं। इस फाइव आइज अलायंस को दुनिया का सबसे जबरदस्त इंटेलिजेंस एजेंसीज का नेटवर्क माना जाता है। 1948 में कनाडा और 1956 आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड इसमें शामिल हुए थे। शीत युद्ध के दिनों में सोवियत संघ पर नजर रखने के लिए इसका खूब इस्तेमाल किया गया था।
इस गठबंधन के तहत जितने भी देश आते हैं, वो सभी एक दूसरे से मल्टीलेटरल अरेंजमेंट के तहत खुफिया जानकारियां साझा करते हैं। आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा इनके लिए पहली प्राथमिकता में शामिल है। कहा जाता है कि इस गठबंधन की शुरुआत दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ही हो गई थी। 1980 के दशक तक किसी दूसरे देश को इस गठबंधन के बारे में कोई खबर तक नहीं थी। यहां तक कि इस अलायंस को आधिकारिक तौर पर कोई और देश स्वीकार नहीं करता था लेकिन 2010 में पहली बार इसके बारे में लोोगं को पता चला था। फाइव आइज अलायंस (सरकारी दस्तावेजों में संक्षिप्त रूप में FVEY) एक सहकारी खुफिया नेटवर्क है जो नागरिकों और विदेशी सरकारों के इलेक्ट्रॉनिक संचार पर नजर रखता है। कनाडा इसी के जरिए भारत के खिलाफ चक्रव्यूह रचना चाहता है।
क्या भारत को नुकसान पहुंचा सकता है
जानकारों का कहना है कि यह खुफिया अलायंस भारत पर दबाव बनाने के सिवाय कुछ नहीं कर सकता है और ज्यादा संभावना है कि इसमें शामिल पांचवां देश न्यूजीलैंड ताजा विवाद से दूर ही रहे। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के मामले में जस्टिन ट्रूडो ने जिस तरह से इन देशों से समर्थन की उम्मीद की थी, वह उन्हें नहीं मिल सकी। अभी तक अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया ने इस मामले में नपी-तुली प्रतिक्रिया दी है। आगे भी उनसे इसी तरह की कूटनीतिक समझदारी और सहयोग की उम्मीद की जा रही है। कुल गठबंधन के जरिए ट्रूडो ने भारत के खिलाफ चक्रव्यूह रचने की कोशिश की है, वह फेल होता नजर आ रहा है।