कौन हैं कमाल फ़ारूक़ी? 20 साल बाद कांग्रेस ने क्यों किया घर वापसी, महाराष्ट्र में क्या प्लान
फारूकी मराठा क्षेत्र के वरिष्ठ नेता हैं। 2004 में कांग्रेस छोड़ने के बाद फारूकी ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के टिकट लेकर चुनाव लड़ा था, लेकिन बाद में शरद कुमार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) इसमें शामिल हो गईं।
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक समिति के पूर्व अध्यक्ष और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के सदस्य वरिष्ठ नेता कमाल फारूकी आज (सोमवार, 21 नवंबर को) दो दशक पूरे 20 साल बाद फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। फारूकी अपने बेटे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के पूर्व प्रवक्ता उमर कामम फारूकी के साथ कांग्रेस में शामिल हैं। वह 2013 तक समाजवादी पार्टी में भी रह चुके हैं। महाराष्ट्र चुनाव से पहले कमाल फारूकी ने कांग्रेस पार्टी में अपनी वापसी के बारे में एक बयान जारी कर जानकारी दी है।
फारूकी ने अपने बयान में कहा, “भाजपा और उसकी तरह धार्मिक विचारधारा की सांप्रदायिक घृणास्पद दक्षिणपंथी विचारधारा के लिए कांग्रेस में वापसी का फैसला किया गया है। कांग्रेस में समाजवादी पार्टी ही एकमात्र पार्टी है जो वास्तव में हमारे देश की सच्ची भावना का नेतृत्व करती है।” हो सकता है और उसे स्टोर कर सके हो सकता है।” फारुकी की घर वापसी से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को बड़ी बढ़त मिलती दिख रही है।
कौन हैं कमाल फारूकी
कमाल फारूकी महाराष्ट्र के मराठा क्षेत्र के वरिष्ठ नेता हैं। 2004 में कांग्रेस छोड़ने के बाद फारूकी ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के टिकट लेकर चुनाव लड़ा था, लेकिन बाद में शरद कुमार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) इसमें शामिल हो गईं। उनके बेटे उमर कमाल फारुकी गर्लफ्रेंड के राज्य प्रवक्ता के साथ-साथ स्टूडेंट ब्रांच के उपाध्यक्ष के रूप में भी काम कर चुके हैं।
कांग्रेस का क्या प्लान?
बिहार, महाराष्ट्र चुनाव से ऐन पहले कमाल फारुकी की घर वापसी से कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि इससे उन्हें महाराष्ट्र के करीब 11.5% मुस्लिम गठबंधन को अपने पक्ष में लामबंद करने में मदद मिलेगी। हाल के कुछ वर्षों में असदुद्दीन सोसा के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) जैसी देहाती ने कई जिलों में विशेष रूप से कमर कस ली है, जैसे कि अपने पथ में अपने पथ को शामिल कर लिया है, जो कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ था, लेकिन हाल ही में वर्षों से यहां मुस्लिम झील का कांग्रेस के प्रति समर्थन घटता जा रहा है।