मिलिए दूध बेचने वाले की बेटी आईएएस अनुराधा पाल से, जो हरिद्वार के एक छोटे से गांव से हैं, जिनकी यूपीएससी सफलता की कहानी जीवन के अर्थ को फिर से परिभाषित कर रही है, लक्ष्य हासिल करने के लिए संघर्ष
ऐसी ही एक कहानी है देश की सबसे मुश्किल परीक्षा पास कर आईएएस बनने वाली अनुराधा पाल की. अनुराधा की सफलता की कहानी लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है कि कैसे आर्थिक हालात से जूझ रहे एक गरीब दूध बेचने वाले की बेटी ने अपनी मेहनत और लगन के बल पर यूपीएससी की परीक्षा पास उन लाखों युवाओं के लिए मिसाल कायम की जो गरीबी की वजह से आईएएस बनने का सपना देखकर भी उसे पूरा करने से कतराते हैं. आइये अनुराधा के उस संघर्ष की कहानी से आपको रूबरू कराते हैं.
कौन है अनुराधा पाल
हरिद्वार के एक छोटे से गांव में पैदा हुई अनुराधा पाल ने जीवन की शुरुआती दौर में काफी वित्तीय चुनौतियों का सामना किया. उनके पिता परिवार चलाने के लिए दूध बेचा करते थे. अनुराधा ने अपनी मेहनत और लगन के बल पर हरिद्वार स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूल की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद गांव में सीमित संसाधनों की वजह से भविष्य की राह न दिखने पर वह उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली चली गई. वहां जीबी पंत यूनिवर्सिटी से उन्होंने बैचलर आफ टेक्नोलॉजी डिग्री हासिल की. चूंकि परिवार की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए अनुराधा ने न चाहते हुए भी बीटेक करने के बाद टेक महिंद्रा कंपनी में नौकरी कर ली.
टीचर बन शुरू की आईएएस की तैयारी
टेक महिंद्रा में कुछ समय नौकरी करने के बाद अनुराधा को यह एहसास हुआ कि वह इस नौकरी को करने के लिए नहीं बनी है बल्कि इससे बहुत बड़ा कर सकती है. इसी के बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी. घर की माली हालत अच्छी न होने की वजह से टेक महिंद्रा छोड़ने के बाद अनुराधा ने रुड़की के एक कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी शुरू की. दिन में लेक्चर लेने के दौरान खाली समय में और शाम को वह सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी करती थी.
2012 में पास की परीक्षा, पर ज्वाइन नहीं किया
2012 में अनुराधा ने यूपीएससी की सबसे मुश्किल कही जाने वाली सिविल सर्विस परीक्षा अपनी मुश्किलों को पीछे छोड़कर पास कर ऑल इंडिया रैंक 451 हासिल की. हालांकि उन्हें यकीन था कि वह इससे और ज्यादा बेहतर कर सकती है इसलिए अनुराधा ने दिल्ली स्थित एक आईएएस एकेडमी में दाखिला ले लिया. अपनी पढ़ाई और काम के बीच में तालमेल बैठाने के लिए उन्होंने अपने लिए छोटे-छोटे गोल सेट किए और उन्हें हासिल करना शुरू किया.
एनसीईआरटी की किताबें बनी मुख्य जरिया
अनुराधा ने सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी के दौरान सबसे ज्यादा एनसीईआरटी की किताबें का प्रयोग किया. उनका मानना था कि जितना ज्ञान इन किताबों में है, वह निजी पब्लिशर्स की किताबों में काफी ढूंढने के बाद मिलता है जबकि एनसीईआरटी की किताबों में वह बेहद आसानी और आसान भाषाा मेंं उपलब्ध है. उनकी मेहनत रंग लाई और 2015 में अनुराधा ने ऑल इंडिया 62 सी रैंक हासिल की और आईएएस बन गईं.वर्तमान में वह उत्तराखंड के बागेश्वर जिले की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के तौर पर अपनी सेवाएं दे रही है.
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