
सरकारी स्वामित्व वाले किसानों को ऐसा गुप्त फार्मूला दिया गया, जिसमें वृद्धि होगी तीन गुना का निर्माण
कान: सोयाबीन के अधिक से अधिक उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर तरह-तरह के उर्वरक और पेस्टिसाइड का उपयोग किया जाता है। इसका उत्पादन तो अधिक होता है लेकिन खेत की मिट्टी यानी ज़मीन भी ख़राब होती है। इतना ही नहीं, इस्तेमाल किए गए पेस्टिसाइड का लोगों के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। कई रिपोर्ट्स में तो यहां तक कहा गया है कि पेस्टीसाइड वाले अनाज खाने से लोगों को कैंसर तक हो रहा है. ऐसे में अब लोग और सरकारी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही हैं।
काफी किसानों ने तो अब प्राकृतिक खेती करना भी शुरू कर दिया है. अभी शुरुआत है तो जो किसान खेती और प्राकृतिक तरीके से खेती कर रहे हैं उनमें अनाज का दाम भी काफी ज्यादा मिल रहा है। लोग प्राकृतिक अनाज खाना पसंद कर रहे हैं और पेस्टिसाइड वाले अनाज की तुलना में दोगुना और तीन गुना अधिक कीमत वाले अनाज ले जाते हैं। ऐसे में अब प्राकृतिक खेती और प्राकृतिक अनाजों का बाजार भी भूखा जा रहा है।
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एग्रीकल्चर से जुड़े कोर्स को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। देश भर के प्रसिद्ध कृषि उद्योगों में भी खेती की खेती को लेकर तरह-तरह के शोध किए जा रहे हैं। कानपुर के आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में भी प्राकृतिक खेती को लेकर एक शोध किया गया है, जिसमें खेतों की खेती की जाती है। यह पूरी तरह से प्राकृतिक खेती थी और इसमें उत्पाद भी आम आदमी की तरह 14 से 24% अधिक हुआ है।
खेत की बस्तियाँ और धान की पुआल से कमाल कर दिया
चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर वेजिटेबल में 2 साल तक की रिसर्च के बाद, 2 साल से अधिक समय से 2000 से 2000 के बीच 2000 से 2000 तक आजाद कृषि एवं कृषि विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ एक्सिलेंस पर शोध किया गया। इसके परिणाम बेहद बेहतरीन आये. बीजाणु के उत्पादन में 14 से 24 प्रतिशत तक की वृद्धि देखने को मिली।
डॉक्टर राजीव ने बताया कि 2 साल तक प्राकृतिक खेती पर शोध किया गया जिसमें 6 बीमारियां ली गईं। इसके परिणाम बेहद अच्छे आये हैं। इसकी जानकारी भी कृषि मंत्रालय द्वारा दी गई है ताकि किसानों तक यह विधि पहुंच सके और वह भी प्राकृतिक खेती की इस को अपना कर अपने साज-सज्जा में नमी का उत्पादन बढ़ा सके।
इन फ़सल पर शोध किया गया
चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं शैक्षणिक विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर राजीव ने बताया कि 6 बीजों पर 2 साल तक शोध किया गया है जिसमें मटर, तरोई, मूंग, टमाटर, पत्ता गोभी और लोबिया शामिल हैं। इसके साथ ही खाद में खाद के रूप में गोबर के खाद और बायोलॉजिकल मल्चिंग का इस्तेमाल किया जाता है। बायोलॉजिकल मल्चिंग में खेत की पत्ती और धान की पुआल से तैयार मिश्रण शामिल है।
डॉ. राजीव ने बताया कि दो साल तक यह शोध किया गया। इसके परिणाम बेहद अच्छे आये हैं। यह कुल 3 साल का शोध कार्यक्रम है। तीसरे वर्ष के बाद केंद्र सरकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल में किसानों को एक नई प्राकृतिक खेती करने की विधि मिल सके और इसके माध्यम से वह अपनी फसल के उत्पादन में भी जहर कर सके और किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी।
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पहले प्रकाशित : 15 दिसंबर, 2024, 21:50 IST