बिहार

आरिफ मोहम्मद खान सिर्फ कागज पर दस्तखत करने नहीं आ रहे, छुपे हुए हैं ये मैसेज! | – नेवस इन हिंदी

राजनीति में सब कुछ फायदे या नुकसान के बारे में नहीं बताया जाता है। कुछ जजमेंट संदेश देने के लिए भी होते हैं. बिहार के नए राज्यपाल के रूप में आरिफ मोहम्मद खान के निमंत्रण पर मुस्लिम समाज की ओर से अपनी आउटरीच सुविधाएं मांगी गई हैं। राज्यपाल की राजनीति में कोई सक्रिय भूमिका नहीं है लेकिन वह राजनीति और समाज के कई नामों से प्रभावित हैं। आरिफ मोहम्मद खान संवाद करते हैं और स्थिति को तोड़ने की क्षमता रखते हैं। उनके बिहार में फेसबुक के बाद लैपटॉप और कांग्रेस की तरफ से तल्ख स्टूडियो के दर्शन को मिल रही है। खास बात यह है कि आने वाले समय में उनकी उपस्थिति से मुस्लिम समाज को लेकर राजनीतिक बहस भी होगी लेकिन बिहार चुनाव में मुस्लिम समाज के खिलाफ आक्रामक वोट में थोड़ी कमी आएगी, यह देखना जरूरी होगा।

आरिफ और अर्लेकर दोनों पब्लिक के आदमी हैं। दोनों में एक ही बड़ी समानता है. दोनों पब्लिक के बीच रहने वाले नेता रह रहे हैं। गवर्नरलेकर साहब ने मुझे एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया था, मैंने जान एर गारंटीकर प्रतिज्ञा पत्र अंग्रेजी में नहीं शुद्ध-शुद्ध हिंदी में लिखा था। अमूमन लोग अपनी अंग्रेजी से बड़े लोगों को प्रभावित करने का मौका पाते हैं लेकिन मुझे पता था कि वो हिंदी भाषा से बेहद प्यार करते हैं। ये अच्छा लगा. लेकिन उनकी तरफ से मुझे एक निषेध दिया गया कि उन्हें कार्यक्रम में महामहिम शब्द से अवगत नहीं कराया गया क्योंकि वो किसी अलंकरण के पक्षधर नहीं थे। हमारे कार्यक्रम में आम छात्रों और पटना शहर के लोगों से फ्रैंक बात की और घर पर आने के लिए अभियोक्ता को भी आमंत्रित किया।

जब गणतंत्र विश्वनाथ अरलेकर पटना आये तो सबसे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बात की और उनसे कहा कि वो भी नीतीश की तरह शराब के विरोधी रह रहे हैं. आर्लेकर की पृष्टभूमि संघ की रही है समाजवादी पार्टी को उनके अनुभव का जरूर फायदा मिलेगा। आरिफ मोहम्मद खान भी बीजेपी के पसंदीदा शख्स हैं लेकिन उनकी भूमिका थोड़ी व्यापक होगी।

आरिफ मोहम्मद खान मैसेजिंग में माही हैं

एक राजनेता ने कथित तौर पर आरिफ मोहम्मद खान से 360 डिग्री की दूरी तय की है। उनकी छवि एक विद्रोही और यथास्थिति को चुनौती देने वाले व्यक्ति की रही है। उनके शाहबानो मामले में राजीव गांधी के साथ ऐतिहासिक विरोध को नैतिक रूप से कौन भूल सकता है जब मुस्लिम पर्सनल लॉ ने विरोध करते हुए राजीव गांधी को कैबिनेट से मुक्त कर दिया। बाद में शाहबानों के मामले में भारत के ऐतिहासिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ, इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी को बड़ा राजनीतिक हथियार भी कहा गया।

क्या होगा आरिफ़ साहब का संप्रदाय?

सभी जानते हैं राम मंदिर आंदोलन के बाद बिहार की राजनीति में गिरावट आई। मुस्लिम वोट बैंक जो कभी कांग्रेस की जागीर में था, खिसकाकर यादवों के पाले में चला गया। आज मुस्लिम राजदाज की जंजीर में बंधन हुआ है। आज मुस्लिम समाज का वोट देने का नजरिया सिर्फ मोदी विरोध है। ब्यूनस की पृष्टभूमि या या उसका पिछला प्रदर्शन नहीं।

आरिफ पार्टैल से डायलॉग ग्रुप बनाने में कितने सफल होंगे, इस तय है इस स्टेप के जरिए ग्रुप फैमिली को आईना दिखाने की कोशिश जरूर करेंगे कि देखिए वो 26 साल बाद किसी मुस्लिम को बिहार के राज्यपाल के रूप में स्थापित किये जा रहे हैं।

नीतीश को भी नये राज्यपाल से मदद बने रहने की उम्मीद है

काफी समय से बिहार में यह बहस चल रही है कि क्या मुस्लिम नामांकन नामांकन को वोट दिया जाएगा? यही सवाल अपने प्रस्तावक से भी पूछा था कि वो मुस्लिम हवेली को अपने पक्ष में क्यों नहीं कर पा रहे हैं? मुस्लिम समाज को सरकार की समितियों के बारे में क्यों नहीं बताया जाता है?

अपने 17 साल के कार्यकाल में नीतीश ने मुस्लिम समाज के प्रचार के लिए बहुत काम किया लेकिन जब वोट की बात आती है तो मुस्लिम समाज बड़े पैमाने पर यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को वोट क्यों देता है? सब्जी, जिस राज्य की जनसंख्या 14 करोड़ हो और जहां 15 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मुस्लिम हो, वहां आरिफ मोहम्मद खान जैसे सक्रिय कम्युनिकेटर का आगमन राजनीतिक विचारधारा में शामिल ही कई सवाल खड़े होते हैं।

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं। किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के लेखक द्वारा दिए गए लेख में स्वयं उत्तर दिया गया है। इसके लिए News18hindi जिम्मेदार नहीं है।)

ब्लॉगर के बारे में

बज्रज मोहन सिंहअंग्रेज़ी, बिज़नेस, न्यूज़ 18 बिहार-झारखंड

पत्रकारिता में 22 साल का अनुभव. राष्ट्रीय राजधानी, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में डायरी की। एनडीटीवी, डेली भास्कर, राजस्थान पत्रिका और पीटीसी न्यूज में प्रकाशित पर रहे। न्यूज़ 18 से पहले आईटीवी भारत में रीजनल एसोसिएट थे। कृषि, ग्रामीण विकास और सार्वजनिक संस्थानों में स्नातक।

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