
केले के रेशे से चाहा बेहतरीन सेनेटरी पैड, पर्यावरण को भी नहीं होगा नुकसान, ये है एम्स गोरखपुर का प्लान
गोर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित एम्स ने महिलाओं और किशोरों की सेहत और पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना एक नई पहल की है। संस्थान ने जल्द ही इको फ्रेंडली और लंबे समय तक चलने वाले सेनेटरी पैड उपलब्ध कराए। ये विशेष पैड केले के रेशम से बनेंगे जो स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए उपयुक्त हैं।
कज़ाख पैड से मुक्ति
एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमित रंजन ने बताया कि सिर्फ महिलाओं की सेहत के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में नष्ट होना मुश्किल होता है और फिर भी स्केच गैसें पैदा होती हैं। केले के रेशों से बने पैड पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल हैं और बार-बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
केरल से गोरखपुर तक हरित क्रांति
ये “सोख्यम पद” केरल की श्रीमाता अमृतानंदमयी के संगीत में बनाये जा रहे हैं। “नो प्रोफिट-नो लॉस” मॉडल पर आधारित यह मूल स्थानीय महिलाओं को रोजगार दिलाने के लिए उन्हें नशामुक्ति बनाने का भी काम कर रही है। गोरखपुर में एम्स के लिए निर्माण कार्य शुरू होने के साथ-साथ मिलकर काम भी किया जा रहा है। एम्स में जल्द ही गोरखपुर के एक गांव का जिक्र होगा जहां महिलाओं को पैड बनाने की विधि सिखाई जाएगी। इससे उन्हें रोजगार तो मिलेगा ही और किशोरों और महिलाओं में मासिक धर्म स्वच्छता को लेकर जागरूकता भी बढ़ेगी।
सुरक्षित, टिकाऊ और उपयोग में आसान
डॉ. प्रियांक रंजन ने बताया कि केले के रेशों से बने ये पैड ठंडे पानी में ढोकर पुनः उपयोग के लिए तैयार किए जा सकते हैं। या फिर नारियल साबुन से साबुन और साबुन को साबुन से धोना और सिंथेटिक आयरन को कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है। एक पैड 140 बार तक चला और इसकी लाइफ 3 से 5 साल तक है।
किसानों और पर्यावरण को भी फायदा
केले की फसल काटने वाली मशीन के बाद जो तने खराब हो गए थे अब इन पैड्स के निर्माण में इनका इस्तेमाल किया जाएगा। इससे किसानों को अतिरिक्त आय का साधन मिलेगा। तीन साल की गहन जांच के बाद यह योजना महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति शोध के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में तैयार करना एक बड़ा कदम है। गोरखपुर में जल्द ही यह उत्पाद उपलब्ध होगा, जो बदलाव की नई शुरुआत है।
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पहले प्रकाशित : 5 जनवरी, 2025, 23:56 IST