
अब बिना RO के भी मिलेगा शुद्ध पानी! आईआईटी इंदौर के छात्रों ने किया कमाल; हर कोई हैरान…
इंदौर. मध्य प्रदेश के इंदौर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे छात्रों ने एक बार फिर कमाल कर दिया है, जिससे ग्रामीण जनजीवन को फायदा हो सकता है। आरओ ही नहीं अब इन छात्रों ने निकाला ऐसा नायब तरीका, जो कम लागत में आसानी से मिलेगा पानी साफ। तो आइए लोकल 18 के जरिए जानते हैं इन स्टूडेंट्स ने क्या किया है….दरअसल डेकोर ने सौर ऊर्जा पर आधारित लागत प्रभावी जल शोधन प्रणाली विकसित की है। जिससे पानी की समस्या वाले इलाको को फायदा होगा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एआईटीआई) इंदौर की सौर ऊर्जा पर आधारित जल अनुसंधान प्रणाली पाइपलाइनों और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी हो सकती है। जिसे डीविडोर के प्रोफेसर रूपेश देवन के नेतृत्व में तैयार किया गया है और वल्र्ड को आईएसएसजी तकनीक का उपयोग करके पानी की लवणता को कम करने में सफलता मिली है। यह तकनीक सौर ऊर्जा को उन्नत फोटो-थर्मल युवाओं के साथ मिलकर पानी को युवा और महँगे तरीके से शुद्ध बनाती है।
विशेष खोज की मदद से पानी होगा साफ
प्रोफ़ेसर डेवन ने कहा कि इलेक्ट्रोनम ने पारंपरिक कार्बन-आधारित फोटो-थर्मल डेटाबेस में सिलिकॉन फ़्लोरिडािटी जैसी कहानियों के लिए मेटल स्टूडियो और कार्बाइड ऑर्थोडॉक्स का उपयोग करके विशेष रूप से विकसित किया है। यह निहित सौर विकिरण को अवशोषित कर लेता है और इसे गर्मी में परिवर्तित कर देता है, जिससे बाहरी ऊर्जा संसाधनों का उपयोग हवा-पानी के उपयोग के बिना सीधे पानी से भाप के रूप में किया जाता है।
प्रोफेसर डेवन ने क्या बताया
सिस्टम के बारे में बात करते हुए प्रोफेसर डेवन ने कहा, “हमारा लक्ष्य विधि एक लागत प्रभावी जल शोधन विकसित करने का था, जो बड़े पैमाने पर पैमाने पर जा सके। मेटल-आधारित परिसंपत्तियों का उपयोग करके, उच्च वैश्वीकरण दर प्राप्त करने की, जो धातुओं के लिए आवश्यक है। यह तकनीक विशेष रूप से तटीय और तटीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है, जहां समुद्री जल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और पारंपरिक ऊर्जा संसाधन दुर्लभ हैं। हम अधिग्रहण को व्यापक उपयोग के लिए परिष्कृत कर रहे हैं।
आरओ सिस्टम सबसे अच्छा है
इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास जोशी ने कहा, “पानी की लवणता को दूर करने के लिए उपयोग में आने वाली रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) जैसी पारंपरिक कोचिंग का ढांचा भारी होता है और इसमें ऊर्जा की मात्रा भी काफी होती है। वहीं, नई विकसित आईएसएसजी तकनीक एक सरल और कम ऊर्जा वाला विकल्प है।” उन्होंने कहा कि सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर फोटो-थर्मल तत्व तेजी से गर्म हो जाते हैं, जिससे पानी वाष्पित हो जाता है, जिससे लवण और अपशिष्ट कण शेष रह जाते हैं। इस तरह पैदा होती है स्टीम को शुद्ध पानी में मिलाया जाता है। यह प्रक्रिया ऊर्जा-कुशल और पर्यावरण के अनुकूल है।”
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पहले प्रकाशित : 9 जनवरी, 2025, 21:51 IST