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रीवा के इस मंदिर की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा; मकर संक्रांति पर लगता है विशेष मेला! जानें क्या है सिद्धांत…

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रीवा समाचार: रीवा के किला परिसर में 100 वर्षों से मकर संक्रांति का मेला लगता है, जहां महामृत्युंजय मंदिर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना होती है। यह मंदिर अपने 1001 छिद्रों वाले शिवलिंग और अकाल मृत्यु से मुक्ति के सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है….और पढ़ें

रीवा. संस्थागत में 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाती थी। इस पर्व को देश भर में अलग-अलग हिस्सों में अपने-अपने पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है। इसी कड़ी में रीवा के किला क्षेत्र में भी संक्रांति का मेला सजा रहा है। यहां खिलौने, खान-पान और विभिन्न भिक्षुओं की दुकानें लगी हुई हैं। जहां पर लोगों ने शॉपिंग मॉल की खरीदारी की। उत्तरायण सूर्य का पर्व मकर संक्रांति मंगलवार को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। शहर और ग्रामीण क्षेत्र में जगह-जगह महल और पतंगों का आयोजन भी किया गया।

100 पुराने साल की परंपरा
वहीं, मंदिर के पुजारी ने बताया कि तिथि के अनुसार 15 जनवरी और 14 जनवरी को मकर संक्रांति विंध्य में मनाई जाएगी। इसलिए कल भक्तों की और अधिक भीड़ देखने को मिलती है। उन्होंने आगे बताया कि किला परिसर में 100 वर्षों से मेला उपयोग की परंपरा चली आ रही है। इसी कारण 14 जनवरी से ही संक्रांति का मेला मनाया जाता है। यहां जिला ही नहीं बल्कि पूरे यूनेस्को से लोग दर्शन के लिए निकोलस हैं।

समृद्धि से भरा है इतिहास
इस स्थान पर भगवान महामृत्युंजय के दर्शन के लिए भी लोग आते हैं। वास्तव में, रीवा के महामृत्युंजय मंदिर का 1001 छिद्रों वाला मंदिर बहुत खास है। जिसका इतिहास समृद्धि से भरा हुआ है, जहां मकर संक्रांति के अवसर पर लोग मंदिर में भगवान महामृत्युंजय की पूजा-अर्चना करते हैं। लोग यहां अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

मंदिर की परिभाषा, “मिलती है अकाल मृत्यु से मुक्ति”
पुरोहित महासभा के अध्यक्ष अशोक पांडे कहते हैं कि यह दुनिया का इकलौता मंदिर है जहां भोलेनाथ के महामृत्युंजय रूप के दर्शन होते हैं। अकाल मृत्यु, रोग एवं हर विपत्ति से मुक्ति दिलाने वाला मंदिर है। वैसे तो भगवान भोलेनाथ के तीन उत्सव होते हैं, लेकिन यहां मौजूद शिवलिंगों में तीन नहीं बल्कि एक हजार उत्सव (छिद्र) उत्सव हैं। शिवलिंग का रंग सफेद होता है जो मौसम के अनुसार बदल जाता है। शिव पुराण के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने महासंजीवनी महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति की थी। इस मंत्र का जाप यहां पुजारियों द्वारा किया जाता है। महाशिवरात्रि, सावन के सोमवार और बसंत पंचमी, मकर संक्रांति पर यहां पर राक्षस जैसा होता है। यहां बारह महीने शिवभक्त आते हैं। शहर में रहने वाले ज्यादातर व्यापारी, डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी, व्यापारी और आम लोग सुबह दर्शन कर अपनी चुनौती की शुरुआत करते हैं।

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100 साल पुरानी परंपरा; मकर संक्रांति पर लगता है विशेष मेला! जानें क्या है सिद्धांत..

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