एजुकेशन

देश के 3522 यूनिवर्सिटी और कॉलेज में नहीं घटी खुदकुशी की कोई घटना: UGC

यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन) ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्रीय, राज्य, निजी और डीम्ड विश्वविद्यालयों सहित कॉलेजों से कोई आत्महत्या के मामले सामने नहीं आए हैं. हालांकि, इस पर याचिकाकर्ताओं ने यह दावा किया कि IITs, IIMs और राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों (NLUs) ने आत्महत्या से संबंधित डेटा नहीं दिया है, जबकि इन संस्थानों में छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं पहले सामने आ चुकी हैं.

सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा पेश किया गया, जिसमें बताया गया कि जानकारी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों, 293 राज्य विश्वविद्यालयों, 269 निजी विश्वविद्यालयों और 103 डीम्ड विश्वविद्यालयों से प्राप्त की गई है. इसके अलावा, 2,812 कॉलेजों से भी डेटा लिया गया है.

याचिकाकर्ता आबेदा सलीम तड़वी और राधिका वेमुला, जो दो छात्रों की आत्महत्या के मामलों में अपनी याचिका लेकर कोर्ट में आईं थीं, ने यह आरोप लगाया कि IITs, IIMs और NLUs ने आत्महत्या के मामलों और जातिवाद आधारित भेदभाव के बारे में यूजीसी के अनुरोध पर जानकारी नहीं दी. इस पर वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट में यह दावा किया कि इन प्रतिष्ठित संस्थानों ने यूजीसी द्वारा मांगी गई जानकारी का जवाब नहीं दिया है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है.

यूजीसी के हलफनामे में यह भी उल्लेख किया गया कि देशभर में 1,503 छात्रों ने जातिवाद आधारित भेदभाव की शिकायतें की थीं, जिनमें से 1,426 शिकायतों का समाधान किया जा चुका है. इस पर तुषार मेहता ने बताया कि एक विशेषज्ञ समिति को गठित किया गया था, जो SC/ST/OBC/PwD और अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों में मौजूदा यूजीसी नियमों की दोबारा समीक्षा करेगी. इस समिति ने यूजीसी (प्रमोशन ऑफ इक्विटी इन हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूशन्स) रेगुलेशन 2025 का ड्राफ्ट भी तैयार कर दिया है.

यूजीसी ने जो जानकारी दी है उससे यह संकेत मिलता है कि हालांकि आत्महत्या के मामले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से संबंधित नहीं आए हैं, लेकिन जातिवाद आधारित भेदभाव की शिकायतों की संख्या बहुत अधिक रही है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षिक संस्थानों से और अधिक पारदर्शिता की उम्मीद जताई है, खासकर जब यह संबंधित मामलों में डेटा साझा करने की बात हो. यह मामला अब इस पर विचार करने के लिए कोर्ट में चला गया है कि क्या इन संस्थानों को आत्महत्या और जातिवाद जैसे मामलों पर अधिक जानकारी और जवाबदेही के लिए बाध्य किया जा सकता है.

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