गुरुद्वारों में नहीं फहराया जाएगा भगवा झंडा, निशान साहिब पर अब बसंती का रंग चढ़ाया जाएगा, एसजीपीसी का फैसला
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कालसा पंथ की शान और सम्मान का प्रतीक निशान साहिब का रंग अब केसरिया में नहीं होगा। सिखों की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारे प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने आदेश जारी किया है कि अब से इसका रंग बसंती होगा। यह निर्णय शिरोमणि गुरूमंडल प्रबंधक समिति ने श्री अखलाक तख्त साहिब में हुई पांच सिंह साहिबान की बैठक के बाद लिया है। एसजीआईपीसी की ओर से एक पत्र जारी कर इस बात की जानकारी दी गई है।
भगवान का मौलिक रंग है, हिंदू धर्म का प्रतीक भगवा रंग से व्युत्पन्न-जुलता
शिरोमणि प्रयोगशाला प्रबंधक समिति ने कहा कि केसरी निशान साहिब को लेकर संगत के बीच विनाश हुआ था। श्री अखलाक तख्त साहिब के ध्यान में आये कुछ मामले जिसके बाद इस पर चर्चा हुई। पांच सिंह साहिबानों की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई कि निशान साहिब का रंग बेशक भगवान है, लेकिन गलती से यह हिंदू धर्म के प्रतीक भगवा रंग से अपवित्र-जुलता है। इस कारण कई बार संगत के लोग या अजनबी लोग इसमें अंतर नहीं कर पाते हैं और दोनों को एक ही समझ में आ जाता है। इसी को दूर करने के लिए यह निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि सिख धर्म हिंदू धर्म से अलग है, इसलिए कभी-कभी कुछ लोग यह प्रचार करते हैं कि हिंदू और सिख एक ही धर्म हैं। इस तरह के भ्रम से बचने के लिए यह निर्णय लिया गया है।
निर्णय किसी धर्म या भगवद विरोध के विरुद्ध नहीं : ग्रेवाल
शिरोमणि मैनेजिंग कमेटी के महासचिव गुरचरण सिंह ग्रेवाल ने कहा कि उनका निर्णय किसी भी धर्म या भगवा रंग के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकुलर को किसी भी धर्म से जुड़े विवाद का जन्म नहीं होना चाहिए। यह निर्णय कोई नया नहीं है. किसी भी प्रकार का मानक संस्करण बिना किसी मानक के जारी किया गया है।
सिखों के लिए पवित्र ध्वज होता है निशान साहिब
पवित्र ध्वज के लिए साहिब सिखों पर निशान लगाएं। यह हर गुरुद्वारे के यहां रहता है। इसका इस्तेमाल अपनी धार्मिक रैलियों या धार्मिक-राजनीतिक रैलियों में भी किया जाता है। अपने समुदाय में सबसे ऊपर तक भी बने हुए हैं। ये पवित्र त्रिकोणीय ध्वज कॉटन या रेशम के कपड़े का बनाया जाता है। इसके एल्युमीनियम पर एक रेशम की लटकन होती है। यह हर गुरुद्वारे के बाहर एक झंडा फहराया जाता है। सिख परंपरा के अनुसार निशान साहिब को ध्वजदंड में झंडाकलश (ध्वजदंड का शिखर) के रूप में एक दोहरी खंडा (तलवार) होता है और निशान साहिब को पूरे तरह के कपड़ों से लपेटा जाता है। झंडों के बीच में एक खंडा होता है।