उत्तर प्रदेश

ये है यूपी का हॉरर अंडर पास…! बैल में खतरनाक हो जाते हैं, निर्माण के बाद भी फँस जाते हैं वाहन

रजत कुमार/इटावा: उत्तर प्रदेश के निवेश में स्थित एकमेव भूमि पर पुल के नीचे बड़े जूते तो दूर, छोटे पत्थरों में भी लोगों को परेशानी का सबब बन जाता है। इसलिए अब यहां के लोग हॉरर ब्रिज देखने लगे हैं। इस हॉरर ब्रिज में मुसीबतों के कई किस्से हैं। जैसे ही पत्थरों की शुरुआत होती है, वैसे ही इस इलाके में घूमने वाले लोगों की यात्रा का एहसास शुरू हो जाता है। इस अंडर ब्रिज की जड़ में ज्ञान के एक नहीं बल्कि तीन-तीन लोग काल के गाल में समा गए हैं। 8 साल के मासूम बच्चे की मौत, रिक्शे वाले की मौत और एक अन्य शख्स की मौत 5 साल के मासूम बच्चे की मौत हो गई है।

ब्रिज अंडर ब्रिज में सैकड़ों दफा सरकारी और गैर सरकारी कंपनी के जाल में फंसने से लोगों के सामने ऐसी मुसीबत आ गई है कि लोगों के अंदर खौफ जमा हो गया है। हालात, तीसरे खराब हो जाते हैं कि दो विचारधाराओं में बातें होती हैं। इस अंडर ब्रिज की स्थापना की कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प है। 1989 में भगवान सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे और उन्हें इसी रास्ते से अपने गांव सैफई में आना और जाना था। लेकिन, स्कॉल्स रेलवे फ़ाइक्स के कारण इस मार्ग पर रुकना फ़ायर होने में काफी समय लग गया। इसलिए उनकी पहली परियोजना अंडर ब्रिज के निर्माण की कहानी तैयार की गई।

पुनर्जन्म प्रधानमंत्री ने किया था
उस समय चन्द्रशेखर देश के प्रधानमंत्री थे। 7 फरवरी 1991 को रेल मंत्री जनेश्वर मिश्र ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वैभव सिंह यादव की शोकसभा में अंडर ब्रिज का शिलान्यास किया था। फ़्लोरिडा का शिलापट्ट एवोटी क्लब में लगा है, जो फ़्लोरिडा की यादों को ताज़ा करता है। 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह यादव ने एक बार फिर इस पुल के नीचे बनी खाई को दूर करने की बड़े पैमाने पर कोशिश की, जिसके बाद विस्तार योजना में पानी निकासी के लिए एक मोटर पंप का इस्तेमाल किया गया। लेकिन यह मोटर पंप निःप्रभावी साबित हुआ।

2012 में फिर से ब्रिज डिजायन की पहली फिल्म
2012 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार की सरकार बनी, तो लोक निर्माण मंत्री नामांकित सिंह यादव के निर्देशन में इस अंडर ब्रिज को ओवरब्रिज में बदलने की तैयारी की गई। करीब 640 करोड़ रुपए की एक रोड बनकर तैयार हो गई है। लेकिन, ओवरब्रिज निर्माण के कोल्ड बस्ट में तकनीकी विशेषताओं की कमी हो गई।

कई गवाहों के गवाह ये अंडर पास हैं
अगर सही ढंग से बात की जाए तो, अब तक सैकड़ों ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें छोटे बड़े परिवार के साथ सरकारी गैर सरकारी गाड़ियां भी ब्रिज के नीचे आ चुकी हैं। नगर पालिका प्रशासन की ओर से क्रेन या फिर मोटरसाइकल मशीनरी का उपयोग किया जाता है। कई डेफ़े तो ऐसी भी अवस्थिति देखी गई है कि रोडवेज की छुट्टियों में बस यात्री फंस गए घंटों के खाते से वास्तविक बिलखते देखे गए। फिर पुलिस के सहयोग से फ़ायरवॉल ड्रेन के लिए फ़ायरवॉल का भी प्रयोग किया गया। नगर पालिका प्रशासन की ओर से बीयर के दिनों में दोनों और अपने-अपने सांख्यिकी अधिकारी की रैकिंग और बेरीकेटिंग का काम चल रहा है। ताकि कोई भी वाहन अंडर ब्रिज के अंदर न चले। लेकिन इसके बावजूद भी कई दफा ऐसा देखा गया कि लोग छोटे-छोटे बड़े-बड़े कूड़ेदान पुल के नीचे ले जाकर चले गए। इसके बाद उनके स्ट्रॉबेरी स्ट्रॉ अंडरब्रिज में फँस जाते हैं। जब फंसती है तो सवार लोग भी अपनी जान बचाने के लिए रोने लगते हैं।

आज भी अंडर ब्रिज को लेकर त्राहिमाम
ऑफिशियल नगर पालिका परिषद की अध्यक्ष ज्योति गुप्ता का कहना है कि ब्रिज अंडर ब्रिज में अवशेषों की समस्या के चलते इसके निर्माण से ही काम चल रहा है, दूर करने के लिए समय-समय पर प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन इस बार नगर पालिका परिषद की ओर से चारवी पंपों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे इलेक्ट्रिक पानी को बहुत जल्द ही आउटडोर में प्लास्टिक मिल रही है। इसके बावजूद उस पानी को बाहरी नाली में नहीं मिल रही है, जो अन्य मोहल्लों से आ रही है। इसके लिए बड़ी कार्य योजना बनानी जरूरी है।

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