उत्तर प्रदेश

ताजनगरी में साजी फैशन के जालवों की शाम, 80 डिजायनरों ने लिया हिस्सा

हरिकांत शर्मा/आगरा: यूपी की ताजनगरी आगरा में भारत के विभिन्न प्रांतों की कला और संस्कृति एक मंच पर थी। जहां उड़ीसा की पेंटिंग और इकत, आंध्र प्रदेश की कलमकारी, ब्लॉक पेंटिंग, पंजाब की फुलकारी और लखनऊ की चिकनकारी से लेकर साजे शायरों के रंग थे। प्रांत के विभिन्न रंगीन परिधान मॉडल जब राष्ट्रीय स्तर पर उतरे तो मनो फैशन के सतरंगी रंग फिजा में प्रस्तुति लगे।

10वां राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस का आयोजन हुआ
यहां ताजनगरी में अवशेष पर स्केच से लेकर कपड़ा बनाना, रंगाई, पेंटिंग से लेकर पेंटिंग बनने तक सब कुछ हाथ से बनाया गया था। वर्ल्ड डिजायनिंग फोरम द्वारा 10वां राष्ट्रीय हैंडलूम दिवस नागपुर रोड स्थित होटल केएनसीसी में आयोजित किया गया। जिसमें देश भर से आए 80 फैशन डिजाइनर और बुनकरों द्वारा कच्छ का काला कॉटन, बिहार का ज़ार कॉमिक्स, ज़ार कॉटन, गुजरात का पटोला फैब्रिक के शायरी, मध्य प्रदेश का माहेश्वरी कॉमिक्स, कॉटन, मंगलकारी ‍किराए और कॉटन के शायरों को शामिल किया गया है। देश के बुनेकरों को मिली संजीवनी जैसे आकर्षक हो रहे थे।

भारत की कला और संस्कृति को जीवित रखने का प्रयास
वर्ल्ड डिजायनिंग फोरम के सीईओ क्रिस्टोफर अनामी ने क्वेश्चन का स्वागत करते हुए कहा कि भारत की कला और संस्कृति जीवित रहे तो हमें बुनेकरों को बढ़ावा देना होगा। हैंडलूम के ब्राइडल ड्रेसेस से लेकर सिंगल पीस ड्रेस, कोर्ट सेट, गांव, सलवार कुर्ता आदि हर तरह की तस्वीरें थीं। जिसमें कश्मीर से लेकर केरल तक के बुनेकरों द्वारा तैयार की गई तस्वीरें शामिल थीं। सभी फ़ैशन डिज़ायनरों को मेमोरी चिन्ह प्रदान किया गया।

खादी और लीन कॉटन पर भी हो रही चिकनकारी
लखनऊ से आए प्रियंका सिंह का कहना है कि चिकनकारी अब खादी और लिलन कॉटन पर भी पसंद की जा रही है। यहां अब चिकनकारी के लहंगे भी तैयार हो रहे हैं, जिन्हें बनाने में कम से कम 5-6 महीने का समय लगता है.

नारियल और फलों से तैयार होती है असली कलमकारी
केरल की कला को जीवित बनाए रखने के लिए कलामकारी पर भी काम हो रहा है। असली कलमकारी कलम और पेड़, पौधे, फल, पेड़ के टैन, जड़ आदि से तैयार रंग से की जाती है। एक रोज़गार पर कलमकारी करने में 3-4 महीने तक लग जाते हैं। जिस पर सिर्फ कलमकारी करने की कीमत 12-20 हजार तक हो सकती है। ऐसी की प्राकृतिक प्राकृतिक से ब्लॉक पेंटिंग की जाती है।

नीम से तैयार रंग से रंगे चित्र
गुजरात की पूर्व बुबाच ने नीम से तैयार रंगा से पेंटिंग को रंगा तो कहां, केरल से बीना अरुण अपने केले के तन के टुकड़ों से तैयार बेल्ट, पर्स, जूते, फुटवियर टेबिल मेट के साथ लेकर आए थे, जो 3 पीढियां तक ​​यूज़ करने पर बुरा नहीं होता और इको फ्रेंडली भी हैं. वह बताती हैं कि कभी एक सेन्टर में कम से कम 300 बुकर काम करते थे, लेकिन अब 100 से भी कम हो गये हैं। डब्लूएफ़एफ़एफ़ की तरह सरकार और अन्य संस्थाएं मदद करें तो यहां के उत्पाद सामग्री को भारत के अलग-अलग हिस्सों में पहचान कर भी बनाया जा सकता है।

6 महीने लग गए हैं एक रोल तैयार करने में
गुजरात से आए महेश गोहिल अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं, जो पाटोला पैलेस के प्रेमी ताना-बाना से तैयार करते हैं। एक उद्यम तैयार करने में 6 महीने लग जाते हैं, अनुमानित कीमत बुडकरों को लगभग एक लाख और शोरूम में तीन लाख तक हो जाती है। बुनेकरों को नेशनल हैंडलूम-डे पर इस तरह का आयोजन करने के लिए नामांकन का काम है। सरकार को भी मदद के लिए आगे आना चाहिए।

टैग: आगरा समाचार, लोकल18

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