ज्योतिर्लिंग दर्शन करने से पहले तीर्थ में रंग क्यों हैं भक्त? प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य से जानिए वजह
अभिषेक संस्था/वाराणसी: ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से पहले तीर्थयात्रियों में रंग भरने की प्रथा सदियों पुरानी है। यह धार्मिक-आध्यात्मिक और महत्वपूर्ण है। काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित संजय के शिष्यों ने कहा है कि यह प्राचीन हिंदू धर्म में विशेष रूप से पवित्र ग्रंथ से जुड़ा हुआ है। इसका सीधा संपर्क वेतन वृद्धि से भी शुरू हुआ है।
धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार, ज्योतिर्लिंग शिव के विभिन्न सिद्धांतों के प्रतीक हैं और उनके दर्शन से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन इससे पहले भक्तों को अपने शरीर और मन को शुद्ध करना जरूरी होता है। आदिवासियों में रंग भरना इसी शुद्धिकरण प्रक्रिया का एक हिस्सा माना जाता है। यह रंग अक्सर हल्दी, कुमकुम या चंदन का मिश्रण होता है जो पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है।
आध्यात्मिक महत्व क्या है?
आध्यात्म मत से बौद्ध धर्म में रंग भरने से भक्तों का मन शांत और सान्निध्य रहता है। यह क्रिया भक्त का यह स्मरण कराती है कि वह धरती पर एक सामान्य प्राणी है और उसे अपने अपमान का त्याग कर भगवान शिव की शरण में जाना चाहिए। रंग का स्पर्श भक्त को भगवान के प्रति उसकी भावना को भी गहरा कर देता है, जिससे उसे मानसिक शांति और संतोष की प्राप्ति होती है।
पुण्य का कनेक्शन क्या है?
आदिवासियों में रंग भरना एक और महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाता है कि यह भक्त द्वारा एक सामान्य सा कर्म है, जिसे धर्मशास्त्रों में पुण्य का कार्य माना गया है। इसके पीछे यह भी कहा गया है कि जब भी भक्त भगवान शिव के मंदिर में प्रवेश करता है तो उसके भक्तों के इस पवित्र रंग की धरती को स्पर्श करता है, उसे अतिरिक्त पुण्य का माध्यम मिलता है। यह पुण्य जीवन के विभिन्न कष्टों से मुक्ति और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है।
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पहले प्रकाशित : 11 अगस्त, 2024, 15:35 IST
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