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मंकीपॉक्स पर भारत सतर्क, इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एहतियात; राज्यों के लिए भी निर्देश

मंकीपॉक्स: दुनिया के ऊपर एक बार फिर से महामारी का खतरा मंडरा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंकीपॉक्स को ग्लोबल इमरजेंसी घोषित कर दिया है। कांगो और अफ्रीका के अन्य हिस्सों में इस बीमारी के फैलते संक्रमण के बाद यह फैसला लिया गया है। इसके साथ ही वायरस के संक्रमण पर रोक के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की भी बात कही है। इस बीच स्वीडन के एक यात्री में भी मंकीपॉक्स के नए स्वरूप का पहला केस पाया गया है। ऐसा केस अभी तक अफ्रीका में ही देखा गया था। अन्य यूरोपीय देशों में भी मंकीपॉक्स के मामले बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। इस बीच भारत में भी एहतियात बरता जा रहा है। केंद्र सरकार ने सभी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर निगरानी बढ़ा दी है। राज्यों के लिए भी निर्देश जारी कर दिए गए हैं। पीएम मोदी के प्रधान सचिव ने इसको लेकर एक अहम बैठक भी की है।

केंद्र ने सतर्क रहने को कहा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी हवाई अड्डों के साथ-साथ बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीमाओं के पास स्थित भूमि बंदरगाहों के अधिकारियों को ‘मंकीपॉक्स’ के चलते अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के प्रति सतर्क रहने को कहा है। मंत्रालय ने मंकीपॉक्स से पीड़ित किसी भी रोगी के पृथकवास, प्रबंधन और उपचार के लिए राष्ट्रीय राजधानी में तीन केंद्र संचालित अस्पतालों (राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल और लेडी हार्डिंग अस्पताल) को नोडल केंद्रों के रूप में चिह्नित किया है। सूत्रों ने बताया कि सभी राज्य सरकारों को अपने यहां ऐसे चिह्नित अस्पतालों की पहचान करने को कहा गया है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने रविवार को एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की। इसमें त्वरित पहचान के लिए निगरानी बढ़ाए जाने के बीच मंकीपॉक्स को लेकर देश की तैयारियों की समीक्षा की गई।

अभी देश में कोई मामला नहीं
पीएम मोदी के प्रधान सचिव की बैठक में बताया गया कि अभी तक देश में एमपॉक्स का कोई मामला सामने नहीं आया है। डॉ. मिश्रा ने निर्देश दिया कि निगरानी बढ़ाई जाए और मामलों का शीघ्र पता लगाने के लिए प्रभावी उपाय किए जाएं। उन्होंने कहा कि परीक्षण प्रयोगशालाओं का नेटवर्क तैयार किया जाना चाहिए। अभी 32 प्रयोगशालाएं परीक्षण के लिए तैयार हैं। वर्तमान आकलन के अनुसार, बड़े प्रकोप का जोखिम कम है। स्वास्थ्य सचिव ने बताया कि भारत के लिए जोखिम का आकलन करने के लिए 12 अगस्त को राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) द्वारा विशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई गई थी। एनसीडीसी द्वारा पहले जारी किए गए एमपॉक्स पर संचारी रोग (सीडी) अलर्ट को अपडेट किया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों, प्रवेश के बंदरगाहों पर स्वास्थ्य टीमें तैनात कर दी गई हैं।

कैसे फैलता है मंकीपॉक्स
गौरतलब है कि इससे पहले स्वाइन फ्लू और कोविड 19 को डब्लूएचओ ने पैनडेमिक घोषित किया था। यह दोनों बीमारियां हवा में फैलती हैं। वहीं, कुछ लोगों में तो इनके लक्षण भी नजर नहीं आते। दूसरी तरफ एमपॉक्स का संक्रमण संक्रमित रोगी के साथ लंबे समय तक और निकट संपर्क से होता है। यह मुख्य रूप से यौन मार्ग, रोगी के शरीर, घाव वाले तरल पदार्थ के सीधे संपर्क या किसी संक्रमित व्यक्ति के दूषित कपड़ों के माध्यम से होता है।

कैसे बचें
बैठक में अधिकारियों ने बताया कि एमपॉक्स संक्रमण आम तौर पर 2-4 सप्ताह के बीच अपने आप सीमित होता है। एमपॉक्स के मरीज आमतौर पर सहायक चिकित्सा देखभाल और प्रबंधन से ठीक हो जाते हैं। मंकीपॉक्स से बचने का सबसे बेहतर तरीका है, संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में न आएं। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति के कपड़ों, बर्तन, बेडशीट, तौलिए आदि का भी इस्तेमाल नहीं करें। साफ-सुथरे ढंग से रहें और लगातार हाथ धोते रहें।

कोविड 19 से कितना अलग
कोविड 19 या कोरोना वायरस का संक्रमण बेहद तेजी से फैला। चीन में वायरस की पहचान होने के साथ केसेज की संख्या देखते ही देखते हजारों में पहुंच गई। केवल एक हफ्ते में ही दस गुना मामले सामने आ चुके थे। मार्च 2020 में डब्लूएचओ ने इसे पैनडेमिक घोषित कर दिया। पहला केस आने से तीन महीने के अंदर 126,000 इंफेक्शंस और 4,600 मौतें हो चुकी थीं। इसकी तुलना में मंकीपॉक्स की रफ्तार बेहद धीमी है। डब्लूएचओ के मुताबिक 2022 से अब तक दुनिया भर में 100,000 संक्रमण के मामले सामने आए हैं। वहीं, करीब 200 लोगों की मौत हुई है।

कितनी जल्दी लग सकती है लगाम
अभी यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। 2022 में 70 देशों में फैला मंकीपॉक्स कुछ महीनों में धीमे पड़ गया था। तब कुछ धनी देशों से दवाओं और वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलाकर इस पर रोक लगाई थी। फिलहाल की बात करें तो मंकीपॉक्स के सबसे ज्यादा मामले अफ्रीका में हैं। इनमें भी 96 फीसदी कांगो में हैं, जहां मौतें भी हुई हैं। इस बेहद गरीब देश में भुखमरी, कालरा और मीजल्स के चलते हेल्थ सिस्टम पहले ही बर्बाद है। कांगो में चार मिलियन वैक्सीन की डिमांड की गई है, लेकिन अभी एक भी नहीं मिली है।

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