काली रात, स्याह सच्चाई.. अँधेरा समाज, कमज़ोर बेटियाँ | – नेवस इन हिंदी
नई दिल्ली (कोलकाता डॉक्टर मर्डर केस)। मेरी आंखों में एक चेहरा बस गया है.. एक लड़की है, सोरी थी, जिसे मैंने कभी नहीं देखा.. मुझे उसका नाम नहीं पता, ठीक-ठाक उम्र भी नहीं पता. वो कहाँ रहता था, मैं ये भी नहीं मिला। सिर्फ इतना पता है कि वो कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में सेकेंड ईयर में पीडियाट्रिक और जूनियर डॉक्टर थे। मेरे पास से उसकी बस इतनी पहचानी जाती है कि वो कोलकाता रैपर और बाजार केस की स्टार है..
अब मेरे सामने 2 और धुंधले चेहरे आ रहे हैं, 60-65 साल के उनके माता-पिता के। मैंने नहीं देखा कि वो क्या करते हैं, स्कार्पियो के अलावा उनके और बच्चे हैं या नहीं, मुझे उनके बारे में भी कुछ नहीं पता। बस मेरे दिमाग में उनका रोता हुआ, सूजी आंखों वाला एक्स उभर कर सामने आ रहा है..कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में काम कर रही अन्य महिलाएं डॉक्युमेंट्स और नर्स के बारे में भी कलेजा मुंह को आ रही है। उस रात उनमें से कोई भी उस दरिंदे का शिकार बन सकता था।
निश्चिन्तता की आस
मैं रात भर सो नहीं पाई. मैं सोचती रही कि एक मां ने अपनी डॉक्टर बेटी के लिए नाइट शिफ्ट कर रही है और कहा है कि बेटा, खाना खाने का समय खा लेना.. एक पिता ने आराम से हॉस्पिटल पहुंचकर अपनी बेटी के साथ बेटी को विदा किया। दोनों घर में इस उम्मीद के साथ चैन से सोएंगे कि सुबह उठेंगे तो उनकी दोस्त बिटिया रानी ड्यूटी खत्म होकर घर वाली आएगी। बेटी की सुरक्षा के लिए पिता ने 6 महीने पहले उसे एक कार भी खरीदकर दी थी।
ऑटोप्सी ने तय की मौत की तारीख
उस बच्ची की कुंडली में पता नहीं कौन-कौन से योग रहेंगे। वह डॉक्टर बनने के लिए इतनी मेहनत की होगी, तीन साल की कठिन परीक्षाओं की तैयारी की होगी, कितना ट्रॉमा झेला होगा। उसके जन्म के समय जो भी संजोग बने होंगे, लेकिन उसकी मृत्यु हो गई और पोस्टमार्टम रिपोर्ट सीमेन्ट तक कर दी गई। उसके साथ जो हुआ, उसे हादसा नहीं कह सकते। जिसने भी उसे जीते-जी मौत के घाट उतार दिया, वह पूरे सच में था। वह डॉक्टर था, यह नहीं जानता था कि उसके लोगों ने उसे भगवान का दर्जा दिया था, लेकिन उसकी मृत्यु एक देवता के हाथों से हुई थी।
संस्कृति या देवता, भारत की पहचान कैसे है?
जिस देश में बेटियों को देवी की तरह पूजते हैं, जहां उन्हें कुचल दिया जाता है.. कभी पैदा होते ही, कभी शादी के बाद तो कभी निर्भया, दामिनी और कोलकाता केसर की तरह। जो लोग लड़कियों के फोटो और कैरेक्टर पर सवाल उठाते हैं उनसे कभी नहीं झझकते, आज मैं पूछता हूं कि हॉस्पिटल जैसी पब्लिक प्लेस पर ड्यूटी कर रही लड़की की क्या गलती थी? उसके प्रोडक्ट में क्या दोष था? वह देर रात अकेले बाहर क्या घूम रही थी? क्या वह अनायास वैज्ञानिकों के साथ थी?
लांछन का खेल पुराना
मैंने कहीं पढ़ा, लड़की देर रात डेस्टिनेशन हॉल में अकेली क्यों थी? ढूंढा न तुमने दोष! न अपनी अक्ल के घोड़े के लिए दौड़ें! हॉस्पिटल में जूनियर डॉक्टर्स की क्या हालत होती है, इसका आपके पास माप भी नहीं होगा। बिना थके, बिना थके चौथे काम करते हैं। अगर कुछ समय का ब्रेक भी ले लिया तो कौन सा गुनाह हो गया? वैसे भी लड़कियाँ सेफ कहाँ हैं? घर में? ऑफिस में? सड़क पर? पार्क में? मॉल में? बस में? अरे, ऑटो में ठीक बगल में बैठा आदमी भी कब क्या कर दे, इस पर भरोसा नहीं होता।
समस्या नहीं, समाधान बनिये
मुझे लगता है कि ऐसे मामलों में पुलिस और प्रशासन की भी गलती ठीक नहीं है। किसी को भी 24 घंटे के लिए इन्स्टाग्राम नहीं दिया जा सकता। बदलाव खुद से शुरू होता है और अब आप खुद को बदल लेंगे। अपने बेटे-बेटियों को, लड़कियों को, सम्मान देना सिखाया। पिता तुल्य लोगों को भी उनके स्टाफ़ बताएं. लड़की को आत्मनिर्भर बनाना या कराटे सिखाना भर से कुछ नहीं करना होगा और न ही लड़कियाँ 24 घंटे अपने पास के स्कूल या ऐसी ही अन्य चीजें सिखाना घूम सकती हैं। खोट खुद को देखता है, उसे स्वीकार करता है और फिर खुद को बदल देता है। महिला हैं तो महिला का साथ दें.. जब वह अपने साथ रखी दुर्व्याहार की शिकायत करे तो कोई पुरुष की ढील मत बनिए।
छोटे-छोटे बदलाव ही बड़े बदलाव की मंजिलें हैं। बाप, बेटे, भाई की फरियाद आए या आपको कुछ शैतानी नजर आए तो उन्हें समझाएं, कैद पर रोक लगाएं और सजा भी दें। आप कोशिश करेंगे, उस देश की हर लड़की खुद को सुरक्षित महसूस करे..
खुद में हो तो समस्या का समाधान भी खुद ही होना चाहिए लेकिन इसमें वक्त और सारगर्भित बातें शामिल हैं। खुद को इंट्रो स्पेक्ट्रा देखने जा रहे हैं, कई कलाकार भी करने वाले हैं.. लेकिन तब तक हर ऐसे ‘केस’ के बाद याद रखें कैंडल मार्च, करते रहिए प्रॉटेस्ट.. क्योंकि यही सबसे आसान है।
दीपाली पोरवाल
9 सालों के अनुभव के साथ, उन्हें लाइफ़स्टाइल, एंटरटेनमेंट और करियर से जुड़ी हर चीज़ पर लिखना पसंद है। फ़िलहाल, वे शिक्षा और करियर से जुड़े कई विषयों को कवर कर रही हैं, लेकिन लाइफ़स्टाइल (स्वास्थ्य, सौंदर्य, फ़ैशन), धर्म, एंटरटेनमेंट (टीवी और बॉलीवुड), फ़ूड और बुक रिव्यू और ट्रैवल सेगमेंट पर भी उनकी अच्छी पकड़ है। उन्होंने कई बॉलीवुड सेलेब्रिटीज़ की शादी के रिसेप्शन को कवर किया है। उन्होंने कुछ ख़ास इन्वेस्टिगेटिव स्टोरीज़ पर भी काम किया है। न्यूज़18 से जुड़ने से पहले, उन्हें ज़ी डिजिटल, POPxo हिंदी और दैनिक जागरण समूह की लाइफ़स्टाइल मैगज़ीन सखी में काम करने का अनुभव है।