फिर जगाया ‘हलाल’ और ‘हराम’ का जिन्न, जम्मू-कश्मीर की नागरिकता में मचा बवाल; ओबामा और उमर का मुखपृष्ठ
जैसे-जैसे जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं वैसे-वैसे राज्य में ऑब्जेक्टिव खेल और दिलचस्प हो गए हैं। विधानसभा चुनाव में ‘हलाल’ और ‘हराम’ के बीच अब एक नया विवाद उभर कर सामने आया है। ये इस्लामी शब्द आम तौर पर काफी प्रसिद्ध हैं, जहां हलाल- का अर्थ होता है कोई चीज जो जरूरी हो वहीं हराम- का अर्थ होता है वो चीज जो जरूरी हो। अवलोकन दोनों शब्द जम्मू-कश्मीर की नागरिकता में भी छाये हुए हैं।
हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और डेमोक्रेटिक डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष ओबामा फ्रीी ने आरोप लगाया कि नेशनल कंज्यूमर (नेकां) ने ‘हलाल’ और ‘हराम’ की राजनीति की शुरुआत की है। हुबा मुफ़्ती का कहना है कि नेकन ने सत्ता में रहकर ‘हलाल’ मान लिया और सत्ता से बाहर ‘हराम’ कर दिया।
ओबामा फ्री ने कहा, ”मुझे आश्चर्य है कि नेकन जम्मू-कश्मीर का अपना साम्राज्य है। उन्होंने ही हलाल/हराम की राजनीति शुरू की है। 1947 में जब शेख मोहम्मद अब्दुल्ला (नेका के संस्थापक और उमर अब्दुल्ला के दादा) को जम्मू-कश्मीर का मुख्य स्वायत्त अधिकारी बनाया गया, तब चुनाव हलाल थे। जब वह प्रधानमंत्री बने तो फिर चुनाव से हलाल हो गये। जब उन्हें हटा दिया गया, तो चुनाव 22 साल तक हराम हो गया और वह जनमत संग्रह की बात करता रहा। और जब 1975 में वह मुख्यमंत्री बने तो फिर चुनाव से हलाल हो गये।”
ओबामा फ्री ने यह भी कहा कि 1987 के चुनाव में भी मौलाना धांधली की सरकार बनी थी, जिसने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (पीएचडीएफ) की सत्ता खत्म कर दी थी। दादू-ए-इस्लामी (जेईआई) पर उस समय के रिपब्लिकन प्रमुख दल और उसके स्वामित्व को बंद करने का भी आरोप लगाया गया था। अब हजरत-ए-इस्लामी ने पांच साल के प्रतिबंध के बाद चुनाव में हिस्सा लेने का फैसला किया है। पूर्व मुख्यमंत्री और नेकन के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में इस्लामाबाद के चुनाव में लड़ाई के फैसले का स्वागत किया, लेकिन उन्होंने अपने रुख को खारिज करते हुए पुराने रुख की आलोचना की। उन्होंने कहा, ”पहले कहा जाता था कि चुनाव हराम हैं। अब यही कहा जा रहा है कि चुनाव में हिस्सा बेहतर लिया जाए।”
इस बीच, पूर्व सरकारी नगर निगम के मेयर जुलैनिद अजीम मट्टू नेकन और पीडीपी दोनों की राजनीति पर सवाल खड़े हैं। मट्टू ने कहा, ”परंपरागत मुख्यधारा पूरी तरह से विरोधाभास से भरी हुई है। अन्य राज्यों में विरोधाभासों के राजनीतिक परिणाम होते हैं, लेकिन कश्मीर में ये जीवन और स्थिरता की कीमत पर होती हैं।” इस विवाद के बीच, जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक सिद्धांतों के बीच ‘हलाल’ और ‘हराम’ की विचारधारा का इस्तेमाल राजनीतिक राजनीति में एक नई दिशा और प्रतीक का संकेत दे रहा है। यह देखने पर यह देखने को मिलेगा कि यह विवादित आगामी चुनाव पर किस तरह का असर डालता है।