उत्तर प्रदेश

कितनी बदल गई भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा, पद्मश्री विजेता से समझें फर्क

मथुरा. जिन सड़कों पर कभी दूध-दही और माखन-मिश्री की भरमार रहती थी, उन दुकानों में अब जाम के स्वाद रहते हैं। मीलों दूर तक की सड़कें खुली नजर आईं। आज के दौर में वीकेंड पर ब्रेड्स के हॉर्न कोलाहल करते हुए कहा गया है। मथुरा का इतिहास द्वापर काल से शुरू हुआ है।

इस शहर का अपना पौराणिक इतिहास रहा है, लेकिन अब आधुनिकता की झलक दिखती है और मथुरा में अब बहुत कुछ बदल गया है। पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने मथुरा में विभिन्न प्रकार के बदलाव लाए हैं, जिसे लेकर लोकल 18 के माध्यम से जानकारी साझा की गई है।

तुलसी वन की जगह वास्तुशिल्प ने ली ली है जगह

पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने स्थानीय 18 में प्राचीन मथुरा के बारे में बताया है कि सात पुरियों में से प्रमुख सम्पूर्ण मथुरा को भी माना जाता है। प्राचीन प्राचीन आभूषण, बोलचाल, शिक्षा और वाणी का सहज रूप था। ब्रज में भाषा माथा था. आज यह सब ख़त्म हो गया है। वृन्दावन का अर्थ है तुलसी का वन, यहाँ तुलसी के वन का उद्देश्य बहुमंज़िला नामक स्थान लिया गया है। उन्होंने बताया कि प्राचीन मथुरा में महिलाएं टॉली बनाकर अभिनय करती थीं और गीत गुनगुना कर जाती थीं। पनघट आज सुना हो गया है और कहीं भी महिलाएं एक साथ नहीं दिखती हैं। उन्होंने बताया कि संभ्रांत परिवार की महिलाएं जब आदिवासियों थी, तो वह गीत गुनगुनाया करती थी। पुराना तोय तो चामरिया भावे। यानी मैं घर में एक खूबसूरत महिला हूं, लेकिन मेरी पत्नी की दूसरी लड़की ही अच्छी लगती है।

ब्रज से भाषा का नाम हो चुका है खोया हुआ

पद्मश्री मोहन स्वरूप ने बताया कि मथुरा में प्राचीन काल में ब्रज की एक अलग ही झलक देखने को मिलती थी। ब्रज प्राचीन भाषा में लोग बोलते थे, वो ब्रज भाषा में अब लोग नहीं बोलते हैं। ब्रज की भाषा में एक माखन थी, आज वो माखाई गम हो गई है। लोगों के अपने अंदर-बाहर और बोलने का तरीका धीरे-धीरे बदलता जा रहा है। प्राचीन काल के यमुना महारानी की बात करें तो कृष्ण की पटरानी यमुना अपने स्वच्छ और अविरल जल के लिए जानी जाती थी। शहर और गाँव के लोग यमुना के जल को आचमन के साथ-साथ पीने में उपयोग करते थे। आज के दौर में यमुना का पानी इतना विशाल हो गया है कि स्थापत्य तो दूर अब लोग आचमन करने से कतराते हैं।

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