जम्मू और कश्मीर

भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में बदलाव की रणनीति बनाई, घाटी के सभी मोर्चे पर लड़ाई नहीं होगी

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भाजपा का सबसे बड़ा जोर जम्मू क्षेत्र पर ही है। इसे भाजपा का गढ़ माना जाता है। घाटी में भाजपा का बहुमत नहीं है, इसलिए वहां पार्टी की ओर से अपने दावेदारों को समर्थन देने के बजाय कुछ राहतों और स्थानीय जनजातियों को अघोषित समर्थन दिया जा सकता है।

ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए भी दांव खेलें
बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में राज्य की जनता को संबोधित करने के लिए कई घोषणाएं की हैं। पार्टी ने जम्मू को आगे बनाए रखने और ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए भी दांव खेला है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय अमित शाह ने शनिवार को विशाल कार्यकर्ता सम्मेलन के जरिए चुनावी प्रचार अभियान की शुरुआत की। इस सम्मेलन में शाह ने जोर देकर कहा कि जम्मू-कश्मीर की अगली सरकार जम्मू-कश्मीर के चरित्र बनाएगी।

घाटी में भी पिछले 10 सालों में जो बदलाव हुए हैं और बीजेपी ने महिलाओं के लिए जो घोषणा की है, उसे देखते हुए कांग्रेस और राष्ट्रीय राष्ट्रीय गठबंधन को भी परेशानी हो सकती है। पीआईपी तो चुनावी अलग लड़की रही है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर कई प्रभावशाली नेता या अपने छोटे आश्रमों के साथ चुनावी मैदान में उतरे हैं।

जम्मू-कश्मीर का चुनाव इस बार काफी कठिन है
भाजपा के रणनीतिकारों का मानना ​​है कि इस बार जम्मू कश्मीर का चुनाव काफी कठिन है, क्योंकि विरोधी खेमा जम्मू कश्मीर के लोगों की चिंता के बजाय उन्हें भड़काने में लगा है।

जनता को अपने पक्ष में जोर
भाजपा को उम्मीद है कि इस विधानसभा चुनाव में भी राज्य की जनता ने जैसा उत्साह दिखाया, वैसा ही नजारा इस विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा। टिकटों में भी भाजपा ने काफी सावधानी बरती है, हालांकि कई जगह विरोध भी हुआ है। अब पूरा फोकस जनता को अपने पक्ष में लाना है। पार्टी गुर्जर बकरवाल और दलित समुदाय को पूरी तरह से अपने साथ खींचने में शामिल किया गया है।

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