काम करते-करते ऑफिस में हो रही मौत… जापान ने तो रोकने के लिए बना दिया कानून, भारत में क्या नियम?
कार्यस्थल मृत्यु कानून. भारत में वर्क लोड की वजह से हो रही मौतों का आंकड़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा रहा है. पुणे की एक 26 साल की लड़की अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल और एचडीएफसी बैंक लखनऊ में कार्यरत 45 वर्षीय सदफ फातिमा की मौत ने कई सवालों को जन्म दिया है. सिर्फ 4 महीने की नौकरी में पुणे की अन्ना सेबेस्टियन पर काम का इतना बोझ पड़ गया कि उसकी जान चली गई. वहीं, एचडीएफसी बैंक में काम करने वाली फातिमा कुर्सी पर बैठे-बैठे गिरी तो कभी नहीं उठी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत में ऑक्यूपेशनल डेथ के आंकड़े आने वाले दिनों में और बढ़ेंगे? क्या ऑक्यूपेशनल डेथ में हो रही मौतों पर कंपनियां मुआवजा देती हैं? ऑक्यूपेशनल डेथ को लेकर भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के गाइडलाइंस क्या हैं?
अन्ना सेबेस्टियन की मां ने बेटी की मौत के लिए टॉक्सिक वर्क कल्चर को जिम्मेदार ठहराया है. अन्ना की मां ने खुलासा किया, ‘उसकी बेटी पर काम का प्रेशर इतना था कि उसे भूख-प्यास सब खत्म हो गया था. दिन-रात कम करने की वजह से मेरी बेटी की नींद गायब हो गई थी. इन्हीं वजहों से मेरी बेटी की मौत हुई है.’ हालांकि, अन्ना की मौत पर हो रहे बवाल के बाद भारत सरकार ने कंपनी से जवाब मांगा है और जांच के आदेश दिए हैं.
अन्ना और फातिमा की मौत के बाद देश में वर्कलोड कल्चर को लेकर चर्चाओं का दौड़ शुरू हो गया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
अचानक मौतों के लिए कौन जिम्मेदार?
अन्ना और फातिमा की मौत के बाद देश में वर्कलोड कल्चर को लेकर चर्चाओं का दौड़ शुरू हो गया है. राजनीतिक दलों के साथ-साथ बड़े-बड़े डॉक्टरों ने भी सरकार को चेताया है. डॉक्टरों की मानें तो भारत में ओवरवर्क का ट्रेंड बेहद कॉमन है. भारत में हाल के दिनो में ऑफिस और फक्ट्रियों के कर्मचारियों पर काम के दबाव के कारण मौत के कई मामले सामने आए हैं. रिसर्च में खुलासा हुआ है कि ज्यादातर युवाओं की मौतें वर्क लोड की वजह से हुई हैं. इसे डॉक्टर ऑक्यूपेशनल डेथ कहते हैं.
सडन डेथ वर्क ओवर लोड का नतीजा- विशेषज्ञ
लंदन से ऑक्यूपेशनल मेडिसिन की पढ़ाई करने वाले और सेंटर फॉर ऑक्यूपेशनल एंड एनवायरमेंटल हेल्थ मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के सीनियर सलाहकार डॉ. टी के जोशी न्यूज 18 हिंदी के साथ बातचीत में कहते हैं, ‘हाल के दिनों में दो ऐसी मौतें हुई हैं, जिसे हम सडन डेथ कहते हैं. यह ऑक्यूपेशनल डेथ है. ये मौतें काम करते-करते हुई हैं. इनको वर्क रिलेटेड डेथ ट्रीट किया जाना चाहिए. इनको मुआवजा मिलनी चाहिए. आने वाले दिनों में भारत विकसित देश बनेगा तो कंपनियां और फैक्ट्रियों में इस तरह की घटनाएं और बढ़ेंगी. इसलिए भारत सरकार को इसके लिए तुरंत ही कानून लाना चाहिए.’
दुनिया में इस तरह की पहली जो मौत हुई थी वह जापान में हुई थी. (फाइल फोटो)
दुनिया में पहली मौत जापान में
डॉ जोशी कहते हैं, ‘दुनिया में इस तरह की पहली जो मौत हुई थी वह जापान में हुई थी. साल 1969 जापान में एक 29 साल का लड़का न्यूज पेपर के शिपिंग डिपार्टमेंट में काम करते-करते मर गया था. उस लड़के के मरने के बाद उसकी पत्नी ने कंपनी से मुआवजा मांगा. कंपनी ने मुआवजा नहीं दिया तो इसको लेकर एसोसिएशन बना. धीरे-धीरे कई और लोग भी सामने आए. इसके बाद यह मांग पश्चिम के देशों में भी उठने लगी. इसके बाद एक डेथ ड्यू टू ओवर वर्क एसोसिशन बना. बाद में डब्ल्यूएचओ ने भी माना कि लांग वर्किंग आवर्स की वजह से दुनिया में 60 लाख से ज्यादा लोग हर साल मरते हैं. यहां तक डेथ ड्यू टू ओवर वर्क में कोई शख्स सुसाइड करता है तो भी उसके परिवारवालों को अब जापान में मुआवजा मिलता है.’
जापान में अब क्या है कानून
जोशी आगे कहते हैं, ‘साल 2014 में जापान की सरकार ने एक एक्ट लाया है, जिसे karoshi एक्ट कहते हैं. इस एक्ट के तहत वर्क रिलेटेड डेथ ऑक्यूपेशनल डेथ को लेकर कई सारी गाइडलाइंस हैं, जिसे वहां की कंपनियां फॉलो करती हैं. जैसे साल 2018 के बाद जापान ने ओवरटाइम घंटों को सीमित कर दिया है.एक वर्कर महीने में 45 घंटे सेज्यादा और साल में 360 घंटे तक ही ओवरटाइम कर सकता है.’
युवाओं के उज्जवल भविष्य के लिए एक्ट जरूरी
जोशी आगे कहते हैं, ‘हमारे देश में अभी यह एक्ट नहीं माना गया है. सरकार को चाहिए कि अगर अपने युवा बच्चों का भविष्य उज्जल हो तो इस एक्ट को भारत में भी लागू किया जाए. हमारे समझ से समाज आगे बढ़ रहा है. अगर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो ये नंबर बढ़ने वाला है. आज नहीं रोका गया तो हमारे कई यंग लाइफ का जीवन खत्म हो जाएगा.’
आईटी कंपनियों में डबल वर्क करने पर ज्यादा मौतें हो रही हैं.
क्या है श्रम मंत्रालय के गाइडलाइंस
आपको बता दें कि भारत में जितनी भी कंपनियां हैं या फैक्ट्री हैं, सभी श्रम संसाधन मंत्रालय के अंदर आती है. खासकर आईटी कंपनियों में डबल वर्क करने पर ज्यादा मौतें हो रही हैं. ये कंपनियां घर में भी डबल वर्क लेती है. जबकि, लेबर मीनिस्ट्री की गाइडलाइंस है कि जिस कंपनी या फैक्ट्री में 500 कर्मचारी रहते हैं वहां पर ऑक्यूपेशनल हेल्थ सेंटर होने चाहिए. एक डॉक्टर, एक सेफ्टी ऑफिसर, एक ऑक्यूपेशनल हाईजिनिस्ट होना चाहिए. अगर किसी को हार्ट से संबंधित समस्या आती है तो ये तुरंत उसका इलाज करते हैं. इसके साथ फैक्ट्री में अलग-अलग इश्यू हैं, इनका काम होता है कि इन वर्कर्स में अवेयरनेस लाए.
Explainer: लांग वर्किंग आवर्स से कैसे भारत में सबसे ज्यादा मौतें, कई तरह की बीमारियां
लेकिन, भारत में अभी तक ऑक्यूपेशनल हेल्थ सेंटर 5 प्रतिशत भी कंपनियों और फैक्ट्रियों में नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि भारत में कितने डॉक्टरों को ऐसी स्थिति से निपटने के लिए ट्रेंड किया जाता है? साल में कितने सेफ्टी ऑफिसर ट्रेंड होते हैं? भारत सरकार वर्करों के लिए सेफ्टी नॉर्म्स और साइकोलॉजिकल इश्यू को लेकर कितना काम कर रही है? वर्क रिलेटेड डेथ जैसे ब्रेन हेमरेज हार्ट अटैक, एम्यूनिटी खराब, नींद खराब होने से रोकने के लिए क्या भारत भी जापान की तरह करोशी अधिनियम लागू करेगी?
टैग: दिल का दौरा, श्रम कानून, श्रम सुधार, जीवन शैली
पहले प्रकाशित : 30 सितंबर, 2024, 8:24 अपराह्न IST