शोध: सूरजकुंड के बैक्टीरिया लाएंगे क्रांति! तेजी से भरेगा शरीर का गहरा जख्म, पेस्ट को पेटेंट के लिए भेजा
रुपांशु चौधरी-शिखा श्रेया/हजारीबाग-रांची: झारखंड में हजारीबाग के बरकट्ठा प्रखंड स्थित सूरजकुंड अपने धार्मिक इतिहास और पर्यटन के लिए जाना जाता है. यहां ऐसी मान्यता है कि इस गर्म कुंड के पानी में नहाने मात्र से 66 तरह के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं. लेकिन, हाल ही में किए गए एक शोध में सूरजकुंड के पानी में थर्मोफीलिक बैक्टीरिया चिन्हित किए गए हैं, जो कई प्रकार की गहरी चोट और शरीर पर लगे दाग को मिटाने में कारगर हैं.
बीआईटी मेसरा की असिस्टेंट प्रोफेसर शुभा रानी शर्मा और उनके छात्रों ने इस बैक्टीरिया को चिन्हित कर इसे चूहे के ऊपर प्रयोग भी किया है. इस खोज पर शोध पत्र का प्रकाशन भी हो चुका है. साथ ही इसके लिए भारत सरकार के पास पेटेंट अप्लाई किया गया है. शुभा रानी शर्मा ने लोकल 18 को बताया कि वह 14 वर्षों से राज्य के बीआईटी मेसरा के डिपार्टमेंट ऑफ बायो इंजीनियरिंग एंड बायो टेक्नोलॉजी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.
सहयोगी ने दी यहां काम करने की सलाह
आगे बताया कि वह पहले भी कई प्रकार के बैक्टीरिया और एंजाइम पर काम कर चुकी हैं. इस क्रम में वह राजस्थान की सांभर झील पर काम कर रही थी, जिस दौरान उन्हें विश्वविद्यालय की केमिस्ट्री के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर उषा झा ने झारखंड पर काम करने का सुझाव दिया. इसके बाद उन्हें इंटरनेट पर हजारीबाग के बरकट्ठा प्रखंड स्थित सूरजकुंड के बारे में जानकारी मिली.
इतना कारगर है ये बैक्टीरिया
इसके बाद वह सह परिवार यहां घूमने आईं और साथ ही यहां से कई सैंपल लेकर गईं. सूरजकुंड के पानी पर शोध करने पर उसमें थर्मोफीलिक बैक्टीरिया चिन्हित किया गया. इस खास बैक्टीरिया में एक्स पॉलीसैकराइड एंजाइम मौजूद हैं जो तेजी से घाव भरने में कारगर हैं. अमूमन जिस जगह पर चोट लगती है, वहां बाल नहीं आते हैं लेकिन इस एंजाइम की मदद से वहां बाल भी उग आते हैं.
बाल उगाने में कारगार
उन्होंने आगे बताया कि अभी इसका प्रयोग केवल चूहों के ऊपर किया गया है. आगे चलकर इसके इंसानों के ऊपर भी आजमाया जाएगा. यह चोट भरने के साथ-साथ उस जगह पर बाल उगाने में कारगार है. इस एंजाइम में बिना कुछ मिलाए तैयार पेस्ट से इसे चूहों के ऊपर आजमाया गया है. घाव भरने वाले एक्जो पॉलीसैकराइड का लैब टेस्ट से बने पेस्ट का पेटेंट का लिए अप्लाई किया गया है.
पूरी टीम का सहयोग
डॉ. शुभा रानी शर्मा आगे बताती हैं कि यह महत्वपूर्ण खोज कई चीजों में कारगर हो सकती है. इस खोज में उनके साथ कई लोगों का हाथ है. उनके छात्रों ने इस शोध के लिए दिन-रात एक कर दिया था. उनकी छात्रा रजनी शर्मा, स्नेही और ऊषा लकड़ा ने इस खोज में अहम योगदान निभाया है.
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पहले प्रकाशित : 7 अक्टूबर, 2024, 10:20 IST