जम्मू और कश्मीर

‘एलजी 5 विधायक मनोनीत कर सकते हैं या नहीं, हमें नहीं पता’; SC ने दाखिल सूची को खारिज क्यों किया?

तीर्थयात्रियों में नेशनल कॉन्फ़्रेंस और कांग्रेस गठबंधन ने 90 अवशेष विधानसभाओं में 49 तीर्थयात्राएं की हैं। एनसी ने 42, कांग्रेस ने 6 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने एक सीट हासिल की, जिससे गठबंधन की संख्या 49 हो गई।

सुप्रीम कोर्ट ने आज (सोमवार को) उस याचिका पर सुनवाई को खारिज कर दिया, जिसमें जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल (एलजी) के उस अधिकार को चुनौती दी गई, जिसके तहत उप राज्यपाल विधानसभा में पांच विधायक मनोनीत कर सकते हैं। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी से दो टूक ने कहा, “वे मनोनीत कर सकते हैं, या नहीं भी कर सकते हैं… हमें नहीं पता। आप हाई कोर्ट जाएं। हर बात सीधे सुप्रीम कोर्ट मुझे नहीं आना चाहिए।” सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी तब आई है, जब इस केंद्र में शामिल होकर प्रदेश में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं।

सिंहवी जम्मू-कश्मीर निवासी रेजिडेंट आर अध्यामी कुमार शर्मा की पैरवी कर रहे थे। शर्मा ने अपनी याचिका में जम्मू-कश्मीर पुनर्वास अधिनियम, 2019 की धारा 15, 15ए और 15बी को चुनौती दी है। इस एलजीबीटी समुदाय को विधानसभा में पांच समूहों को नामित करने का अधिकार दिया गया है, जो समुदाय के रूप में निकाय की संरचना को बदल सकते हैं। वरिष्ठ वकील सुनील फर्नांडिस की सहायता से सिंघवी ने इस मुद्दे पर संपर्क करने की कोशिश की। उन्होंने तर्क दिया कि यह संविधान के मूल पुस्तकालय से संबंधित है, और चुनावी प्रतिष्ठा के लिए बड़ा खतरा है।

सिंघवी ने कहा, ”मानो आपके पास 90 की ताकत है। यह बहुमत से तीन बहुमत है। यदि एलजीबीटी पांच समूहों को नामित किया जाता है, तो दूसरी तरफ सभी समूहों की कुल संख्या 47 हो सकती है और यह बहुमत से केवल एक कम रह सकता है। अगर भविष्य में वे नामांकन को पांच से दस करने का निर्णय लेंगे तब इस शक्ति का उपयोग वो नामांकन को पूरी तरह से बदल सकते हैं।”

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इस पर पलटवार ने कहा, ”पहली बात कि उन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है. दूसरी बात, इन उद्यमियों के कारण के पीछे उनके पास कुछ होना चाहिए। हाई कोर्ट की इन जांच रिपोर्ट में ऐसा लगता है कि यह याचिका पहले ही तैयार की जा चुकी है।” इसके बाद अपने आकर्षक आदेश में पीठ ने कहा, ”हम संविधान के अनुच्छेद 32 (रीट क्षेत्र संबंधित) के तहत इस आवेदन पर विचार करने की कोई इच्छा नहीं है। हम निबंध 226 (रीट) के तहत क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता देते हैं।”

इस पर सिंघवी ने सवाल करते हुए कहा कि अगर इस मामले में कुछ बड़ी बात होती है तो उन्हें वापस आ जाना चाहिए। इसके जवाब में प्रियंका ने कहा, ‘अभी तक ऐसा नहीं हुआ है और हम भी कह सकते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए।’

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