बिहार

ये महिलाएं आत्मनिर्भरता की दे रही नई मिसाल, बनी रही हैं इको फ्रेंडली मूर्तियां

अधिकार: बिहार के देव खंड के पिपरा पंचायत की महिलाएं इस इको फ्रेंडली लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां, दीये, स्वास्तिक और अन्य प्राकृतिक उत्पाद बनाती हैं। इन छह महिलाओं की टोली में लक्ष्मी मिश्रा, प्रमिला देवी, सोनी देवी, सान्या कुमारी, रचना देवी और विभा देवी शामिल हैं, जिनकी जिले भर में चर्चा का विषय बनी हुई है। महिलाएं बताती हैं कि वे गोबर और मिट्टी से कई तरह की मूर्तियां तैयार कर रही हैं।

गौमय उत्पाद संस्थान के प्रशिक्षक प्रशांत ओझा ने इन महिलाओं को इको फ्रेंडली बनाने का प्रशिक्षण दिया है। प्रशांत ओझा ने बताया कि महिलाएं दीये, मूर्तियां, तोरण, स्वास्तिक, शुभ लाभ, मंगल, और एंटरप्राइज चिप समेत कई वस्तुओं का निर्माण कर रही हैं। इन उत्पादों को बनाने में गोबर, गौमूत्र, मैदा, लकड़ी, और कोयला जैसे प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग होता है। उन्होंने बताया कि इनके उपयोग से प्राकृतिक तत्वों को कोई नुकसान नहीं होता है। मिट्टी से बनी दीये और मूर्तियां जल में विसर्जन के बाद जलीय भंडार के लिए भोजन बन जाती हैं, और कुछ उत्पाद में रखे गए खाद का काम करते हैं।

महिलाओं ने शुरू किया व्यवसाय
महिला प्रोटोटाइप प्रमिला देवी ने कहा कि इन मूर्तियों को बनाने के लिए गोबर, गौमूत्र, मैदा, लकड़ी और कोयले का उपयोग किया जाता है। इसके लिए वे आस-पास के विश्वविद्यालयों से गोबर और गौमूत्र लाती हैं। गोबर को मशीन से सुखाकर पाउडर बनाया जाता है, फिर गौमूत्र का उपयोग कर उसके पेस्ट साँचे में लकड़ी के टुकड़े तैयार किये जाते हैं। प्रमिला ने बताया कि गौमूत्र और गोबर के उपयोग से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, यही कारण है कि इन मूर्तियों की मांग कई शहरों में अधिक है।

दूसरी छूट से भी भारी मांग
महिला पौराणिक लक्ष्मी मिश्रा ने बताया कि इको फ्रेंडली चर्च की मांग जिले के बाहर भी बढ़ रही है। संस्था द्वारा निर्मित दीये, लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां, तोरण और स्वास्तिक की कीमत बाजार के बराबर है। ये उत्पाद बैंगलोर, डाल्टनगंज, रांची, छत्तीसगढ़ और अन्य बड़े शहरों में भेजे जाते हैं। लक्ष्मी ने कहा कि बैंगलोर और दक्षिण भारत में इन मूर्तियों की मांग बहुत अधिक है, और ग्राहक अच्छे दाम की डिलीवरी भी तैयार कर रहे हैं।

टैग: बिहार समाचार, स्थानीय18

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