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स्‍ट्रोक के मरीजों को लेकर आया सर्वे, 10 में से 9 को लकवा का खतरा, रिहेबिलिटेशन सेंटर्स को लेकर हुआ बड़ा खुलासा

सर्दियों का मौसम आते ही स्‍ट्रोक के मरीजों की संख्‍या में भी बढ़ोत्‍तरी होने लगती है. इन मरीजों को बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के लिए रिहेबिलिटेशन सेंटर्स में रखा जाता है. जबकि कुछ लोग अस्‍पताल से छुट्टी मिलने के बाद घर पर स्‍वास्‍थ्‍य लाभ लेते हैं, हालांकि हाल ही में हुए सर्वे में स्‍ट्रोक के बाद बचे मरीजों को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.

स्‍ट्रोक को लेकर एचसीएएच के सर्वे के अनुसार 73 प्रतिशत लोगों का मानना है कि घर की तुलना में विशेष पुनर्वास केंद्रों में स्वास्थ्य लाभ अधिक प्रभावी होता है. ये केंद्र स्‍ट्रोक के मरीजों को संरचित वातावरण और उन्नत उपचार प्रदान करते हैं, घरेलू देखभाल में अक्सर जिनकी कमी होती है.

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स्‍ट्रोक भारत में मृत्‍यु का तीसरा प्रमुख कारण
एनसीबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्ट्रोक भारत में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण और विकलांगता का छठा प्रमुख कारण है. हाई ब्‍लड प्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, तंबाकू का सेवन और वायु प्रदूषण जैसे जोखिम कारकों को कम करने पर केंद्रित जन स्वास्थ्य पहल स्ट्रोक के मामलों को कम करने के लिए जरूरी है.

पैरालिसिस है बड़ा खतरा
वहीं जॉन्स हॉपकिन्स मेडिसिन, अमेरिका के शोध से पता चलता है कि स्ट्रोक से बचे 10 में से 9 लोगों को पैरालिसिस का अनुभव होता है, जिसे अक्सर स्थायी माना जाता है. हालांकि, पहले 90 दिनों के भीतर पुनर्वास शुरू करने को गोल्डन पीरियड के रूप में जाना जाता है जो महत्वपूर्ण है. इस समय के दौरान, मस्तिष्क की न्यूरोप्लास्टिसिटी अपने चरम पर होती है, जो इसे अपनी क्षमता को फिर से पाने के लिए बेहतर अवधि बनाती है.

सर्वे में ये है महत्‍वपूर्ण
. सर्वे में शामिल केवल 40 प्रतिशत लोग अस्पताल में भर्ती होने से पहले स्ट्रोक के प्रमुख लक्षणों की पहचान कर पाते हैं.
. पुनर्वास केंद्रों में स्वास्थ्य लाभ ले रहे 92 प्रतिशत मरीज तीन महीने के भीतर ठीक हो गए.
. घर पर ठीक होने वाले मरीजों में से 70 प्रतिशत को ठीक होने में चार महीने से अधिक का समय लगा.

क्‍या बोले एक्‍सपर्ट
इंद्रप्रस्‍थ अपोलो अस्‍पताल के न्‍यूरोलॉजी विभागाध्‍यक्ष डॉ.सुधीर कुमार त्यागी कहते हैं कि संरचित पुनर्वास वातावरण स्ट्रोक से बचे लोगों की प्रभावी रिकवरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ये केंद्र एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं जिसमें न केवल फिजिकल थेरेपी बल्कि जरूरी भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक सपोर्ट भी शामिल है, जो पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के महत्वपूर्ण घटक हैं, एक पुनर्वास केंद्र में, मरीजों को एक्‍सपर्ट डॉक्‍टरों की टीम से लाभ होता है जो विशेष उपकरणों और तकनीकों के साथ स्वास्थ्य लाभ के प्रत्येक चरण में उनका मार्गदर्शन करते हैं. जबकि घरेलू सेटिंग्स में इस पूरे दृष्टिकोण की अक्सर कमी होती है.विशेष इक्विपमेंट और प्रोफेशनल मार्गदर्शन की कमी स्वास्थ्य लाभ में काफी बाधा डाल सकती है और ठीक होने का समय बढ़ा सकती है.

वहीं फोर्टिस अस्‍पताल गुड़गांव के न्‍यूरोलॉजी प्रमुख डॉ. प्रवीण गुप्ता कहते हैं कि मरीज़ों और उनके परिवारों के साथ मिलकर व्यक्ति विशेष की जरूरतों के अनुसार देखभाल मिलनी चाहिए.ये उपचार महत्वपूर्ण न केवल शारीरिक सुधार के लिए, बल्कि भावनात्मक कल्याण के लिए भी होना चाहिए. मरीजों को सामान्य जीवन में लौटने में मदद करने और सेकंडरी स्ट्रोक को रोकने के लिए, प्रत्येक व्यक्ति की जरूरतों के अनुरूप व्‍यक्तिगत पुनर्प्राप्ति योजनाएं विकसित करना जरूरी है. जबकि घरों में सीमित संसाधन होते हैं.

सर्वे करने वाले एचसीएएच के सह-संस्थापक और सीओओ डॉ. गौरव ठुकराल ने कहा, ‘हमारा स्ट्रोक पुनर्वास दृष्टिकोण पैरालिसिस यानि लकवा से उबरने के समय को काफी कम करने के लिए विशेषज्ञों और उन्नत उपकरणों की एक टीम के साथ-साथ फिजिकल थेरेपी और पुनर्वास (PMR) विशेषज्ञों को एकीकृत करता है. मरीजों और उनके परिवारों के साथ मिलकर हम व्यक्तिगत देखभाल योजनाएं सुनिश्चित करते हैं, ताकि स्ट्रोक से बचे प्रत्येक व्यक्ति को उनकी जरूरतों के अनुरूप देखभाल मिले.

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