बिहार

घर में भजन करना तो ठीक है, लेकिन…घुंघट की कैद से शोहरत के आसमान पर छा जाने की, शारदा सिन्हा के संघर्ष की दास्तां

पटना. बिहार की कोकिला शारदा सिन्हा का निधन दिल्ली एम्स में हुआ। शारदा सिन्हा 72 साल की थीं और 11 दिन से उनकी तबीयत खराब थी। सोमवार को उनका देहवासन हो गया और उसके बाद मंगलवार की रात छठ पर्व के नहाय खाय के दिन उनका देहवासन हो गया। शारदा सिन्हा ने मैथिली भोजपुरी फिल्मों में कई फिल्में देखीं और प्रमुख भूमिकाओं में उन्होंने पद्मश्री और पद्म रत्न से भी प्रतिष्ठित रही लेकिन उनकी यह यात्रा इतनी आसान नहीं थी। लोक वैज्ञानिक शारदा सिन्हा ने एक साक्षात्कार में बताया था कि गायन से लेकर पढ़ाई और नौकरी तक के दौरान उन्हें कठिन संघर्षों का सामना करना पड़ा था। एक साक्षात्कार में शारदा सिन्हा ने कहा था कि, ‘मेरे गायन को लेकर मुसलमानों में विरोध हुआ था। मेरा रायपुर घुँघट में भी मैंने इसके लिए संघर्ष किया। मेरे संघर्ष के कारण ही मेरे मित्र वाले मेरे गायन के लिए राजी हो गए।

शारदा सिन्हा ने कहा कि, मेरी सासु मां मेरे गाने के खिलाफ थी। परन्तु जब अन्य लोगों ने मेरी प्रशंसा की तो वे भी मन गए।’ शारदा सिन्हा ने अपने इसी साक्षात्कार में बताया कि ‘जब बाहर के लोगों ने मेरी सास के सामने मेरी सास को रखा तो उन्हें भी अच्छा लगा।’ बाद में एक ऐसा भी जहां आया कि मैंने मेरी सास से उनकी सास के जो गाने लिखे वो थे। उन्होंने मुझसे कहा कि ‘नहीं हो सकता।’ फिर भी मैंने पाठ्यपुस्तक और समाज के सामने अपनी गायकी को, गाने को रखा।

पिता ने बचपन में परख ली थी कि शारदा के गले में सरस्वती का वास है
असल में, शारदा सिन्हा की बचपन से ही संगीत में रुचि थी, जिसे देखकर उनके पिता भारतीय नृत्य कला केंद्र में प्रवेश करने गए थे, जब उनकी शादी हुई तो कई तरह की पाबंदियों का भी सामना करना पड़ा। एक पारंपरिक घर में उनकी शादी हुई थी जहां शुरुआती दौर में उनके सास ने कहा था कि घर में भजन करना तो ठीक है, लेकिन आगे गाना बजाना ठीक नहीं है। हमारे यहां घर की बहू ने आउटलाइन गाना नहीं बजाया तो आप भी नहीं गाओगी।

शादी के बाद शारदा ने किया कठिन संघर्ष, सासु मां नाराज नाराज, दो दिन तक खाना नहीं खाया
शारदा सिन्हा ने एक साक्षात्कार में बताया कि उनके प्रियजन को भजन कीर्तन बहुत पसंद था। शादी के पांच दिन ही हुए थे कि मेरे गांव के मुखिया ने मेरी पसंद से कहा कि तुम्हारी बहू बहुत अच्छी है। आप अपनी बहू से बोलिए कि वह ठाकुर बाबरी में भजन गाएं। इसके बाद पिट्ठू ने भजन गाने की इजाज़त दे दी, लेकिन मेरी सासू माँ नाराज़ हो गई। उन्होंने मेरे पूर्वजों से कहा कि तुम तो झूठ का अपना मन बढ़ा रहे हो, नई दुल्हन क्या मंदिर में भजन करेगी। इस पर शारदा सिन्हा ने अपनी सासु मां को मनाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानीं। बाद में पियॉजी आज्ञा की से मैं गीत गा गया। सिर पर पल्लू लेकर तुलसीदास जी के भजन गाने लगे- मोहे रघुवर की धि सुआई…गाने का सुख इतना बड़ा था कि भूल गया कि कहां हूं। सभी बुजुर्गों ने बहुत आशिष दिया, लेकिन सासु मां नाराज हो गईं और दो दिन तक खाना ही नहीं खाया।

शारदा से सासु माँ की मत दूर हुई तो गुरु भी बने, फिर तो सासु माँ की मृत्यु हो गई
शारदा सिन्हा ने आगे बताया कि, इसके बाद मेरे पति ने उन्हें मनाया। उसके बाद जब बाहर के लोगों ने अपनी (सासु माँ) कहा कि तुम्हारी बहू बहुत गाती है, तब जाकर उनका गुस्सा थोड़ा कम हुआ। शारदा सिन्हा ने कहा कि मैं अपने सासु मां से कहती हूं कि मैं अपने संस्कार भजन और विवाह गीत ही गाना चाहती हूं। उसके बाद सास ने पुराने लोकगीतों को सिखाया और उन्हें अपने तरीके से फिर से लिखा। शारदा सिन्हा ने कहा कि उनके पति बालकिशोर सिंह उन्हें हमेशा सपोर्ट करते रहे हैं। पति ने अपने साथ इस वजह से शुरू किया इन गानों का सफर हमेशा जारी रहेगा।

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