उत्तर प्रदेश

162 साल पहले नासिक में खुली बड़ी स्वदेशी प्रिंटिंग प्रेस, घर-घर में छपाई रामचरित मानस और कुरान, लंदन तक कार्यालय

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ये टैब देश के सबसे बड़े प्रिंटिंग प्रेस में एक था, बेशुमार किताबें छापींमिर्ज़ा ग़ालिब की किताबें यहां चटाईं थीं तो कुरान और रामचरित मानस भी पहली बार छापीइस प्रेस का नाम था नवल टीजन प्रिंटिंग प्रेस, देश का पहला आधुनिक और बड़ा छापीखाना

1857 की क्रांति के एक साल बाद नासिक में एक प्रेस का प्रकाशन रद्द कर दिया गया। जो मेनटौर पर सीनियर्स से जॉबवर्क लेने और एक अखबार के प्रकाशन के लिए चला गया लेकिन समय के साथ ये प्रिंटिंग प्रेस बड़ी हो गई और आधुनिक भी हो गई। ये देश की पहली बड़ी स्वदेशी प्रिंटिंग प्रेस बनी। जो बेशुमार किताब छापीं। बहुत ही प्रामाणिक कीमत पर पहली बार रामचरित मानस और कुरान को छापकर तब घर-घर में बरकरार रखा गया।

इसका नाम नवल टीन प्रिंटिंग प्रेस था। इसके मालिक क्रिएटिव के रहने वाले नवल किशोर थे। पता नहीं लाइसेंस में उनके बारे में कोई जानकारी भी नहीं होगी। हां यूपी की एक सड़क का नाम जरूर बताएं उनका नाम अब भी है। उन्हें भारतीय मुद्रण के राजकुमार ने कहा तो कुछ शहंशाह थे। इनका ये प्रेस एशिया का सबसे पुराना प्राचीन प्रेस मणि है।

इस प्रेस ने सबसे पहले ब्लैक एंड व्हाइट चपाई की। फिर धीरे-धीरे रंगीन मुद्रण भी शुरू हो गया। ऐसा माना जाता है कि नवल प्रिंटिंग प्रेस ने 5000 से अधिक दामो में सऊदी अरब की राजधानी स्थापित की थी।

वैसे तो भारत में मुद्रण का इतिहास 1556 में शुरू हुआ, जबकि पुर्तगाल से आई ईसाई मिशनरी ने गोवा में पहला मुद्रण प्रेस स्थापित किया। इस प्रेस ने 1577 में एक प्रदर्शन पुस्तक का तमिल अनुवाद छापा। टैब पहली बार कोई चीज़ भारतीय भाषा में प्रिंट हुई।

उसके बाद अगले 200 वर्षों तक भारत में किसी भी भारतीय ने प्रिंटिंग प्रेस की दुनिया में कदम नहीं रखा। हालाँकि तब यूरोप से आए व्यापारी भी भारत में व्यापार फैला रहे थे। ईस्ट इंडिया कंपनी भी भारत में आ गई थी। दक्षिण में हालैंड और फ्रांस अपना उपनिवेश बनाये हुए थे। तब मुगल दरबार उर्दू की चीजें हाथ से कैलियोग्राफिक द्वारा लिखी गई थीं। उर्दू की किताबें भी इसी तरह की बनाई जाती हैं।

नवल किशोर ने 22 साल की उम्र में ही लखनऊ में ऐसा प्रिंटिंग व्यवसाय शुरू किया, जो कुछ ही समय में बड़ी और आधुनिक तकनीक से लैस हो गया। उनका आदर्श खाना बड़ा और सबसे बेहतरीन था। (फोटो- न्यूज18 ग्राफिक)

प्रिंट को तैयार किया गया
18वीं सदी के आखिर तक भारतीयों को जो एहसास हुआ कि जिस पर वे प्रभाव डालते हैं, उनकी अलग ताकत है। 19वीं सदी के मध्य में कई भारतीय प्रेस की शुरुआत हुई। मुंशी नवल किशोर निश्चित रूप से भारत में प्रिंट डिजायन के पायनियर थे। ना तो वह प्रसिद्ध लेखक थे और ना ही वो उन लोगों में थे। बौद्ध के तब विद्रोह की मशाल जलाई थी। अलबत्ता ने लेखक की किताब और उन्हें जनता तक के दस्तावेज़ का काम शुरू किया। वह तब एक ताकत बनी की छपाई करता था।

प्रिंटिग को व्यवसायिक बनाया गया
उन्होंने भारत में प्रिंटिंग को कामर्शियलाइज़ किया। लोगों तक का ध्यान ताकि लोगों का ज्ञान बढ़े.साहित्य से लेकर विज्ञान तक में उनकी रुचि जगे. उनके प्रेस ने बहुत सी कलाकृतियाँ हिंदी और अरबिया में छापीं, जो उस समय की शिकायत से एक बड़ा योगदान था।

रचनात्मकता से संग्रहालय परिवार से गोदाम
नवल किशोर रचनात्मकता के बारे में पढ़ें उनके परिवार में उनके पुरखों ने मुगलों के यहाँ अच्छी खेती में गाँव की जगह बनाई। परिवार में संस्कृत पढ़ने की परंपरा थी। युवा नवल किशोर ने भी नाम दिया। मुगल साम्राज्यों के महल से स्पष्ट है कि फ़्रेज़ी भी उन्हें बहुत पसंद करती थी। उन्होंने 1852 में आगरा कॉलेज में दाखिला लिया। उन्होंने वहां अंग्रेजी और फ़ारसी पढ़ी।

अखबार में नौकरी से लेकर व्यवसाय शुरू हुआ
1854 में वह लाहौर चले गये। वहां उन्होंने कोह-ए-नूर प्रेस में नौकरी कर ली। जो तब पंजाब का पहला अरबी अखबार “कोह-ए-नूर” छापता था। एक साल वे यहां अप्रेन्टिसशिप की। इसके बाद भविष्य में वो काम किया, जिन्होंने उन्हें देश में प्रिटिंग का पायनियर बनाया। जब फिर से उन्होंने अपना खुद का अखबार “साफिर ए आगरा” शुरू किया।

लखनऊ में मुद्रणालय मुद्रणालय
इस बीच उन्होंने ब्रिटेनियों का दिल जीत लिया। 1857 की क्रांति हुई थी. इसके बाद देश में तेज बदलाव हो रहे थे. तकनीक बदल रही थी. हालाँकि, लखनऊ वो शहर था, जिसने 1857 की क्रांति में वृद्धि-चढ़कर का हिस्सा लिया था। इस क्रांति को बढ़ावा देने के बाद ब्रिटेन अब इस शहर की फिज़ां में शामिल हो गया।

वह 1858 में लखनऊ चले आये। तब ये शहर ब्रितानियों की स्थापना में आर्थिक से लेकर सांस्कृतिक स्तर पर बदलाव देख रहा था। नवंबर 1858 में उन्होंने यहां ब्रिटिश निकोलस के एक प्रेस से सहमति व्यक्त की। उन्होंने उत्तर भारत का पहला अरबी अखबार “अवध” निकाला। शीघ्र ही अंग्रेजी प्रशासन ने उन्हें बड़े पैमाने पर डिजिटल वर्क प्रदान किया। 1860 में उन्हें भारतीय नमूना कोड को अरबी में छापने का काम मिला।

मिर्ज़ा ग़ालिब के भी प्रकाशक बने
इसके बाद कोटेशन छापने में लग गए। एक के बाद दूसरी किताब. इसी दौरान उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब से संपर्क साधा। उनका प्रकाशन बन गया। 1869 में उनके प्रेस ने पहला अरबी का उपन्यास छापा, जिसे नजीर अहमद ने लिखा था। इसी दौरान उन्होंने निर्णय लिया कि वो कुरान का संस्करण बहुत सारी भाषाओं में छापेंगे। इसका नाम तब रिकार्ड रखा गया। ये बहुत बढ़िया बिकी. आम मुसलमानों तक इसकी पहुंच हुई।

कई शेयरों में किताबें छापीं
अगर वह किताबों की किताब छाप रहे थे तो हिंदी की किताबें भी प्रकाशित की गईं। तुलसीदास की रामचरित मानस भी उनके प्रेस ने छापी, जो 1873 में 50,000 बिकीं। सूरदास के सूर सागर भी उनके प्रेस से छपी। 1880 में उनके प्रेस ने तुलसीदास का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया। 1870 के दशक के अंत तक उन्होंने करीब 3000 किताबें छापी थीं, जो हिंदी, अरबी, फारसी और संस्कृत में थीं। बहुत सी किताबें मराठी और दार्शनिक में भी। अधिकांश पुस्तकें दस्तावेज़ वो विज्ञान की हो या साहित्य उसे अंग्रेजी से भी डाउनलोड करके छापी गई हैं।

प्रिटिंग प्रेस की बिज़नेस फेलोशिप
1877 में उनके प्रेस से हो रहा अख़बार डेली प्रकाशित हुआ। नवल किशोर ने अपने प्रेस की अंतिम यात्रा में कानपुर, गोरखपुर, पटियाला और कपूरथला तक का समय लिया। लंदन में एक एजेंसी की स्थापना की गई। उन्होंने अपनी फिल्म की बिक्री पर भी काम कर रहे थे। उनकी प्रेस मार्केटिंग और एडवरटाइजिंग भी आगे थी। उनके प्रेस ने कहा कि वे न केवल आधुनिक थे बल्कि नई तकनीक से भी लैस थे।

प्रिंटिंग बिजनेस को खास मुनाफ़े में बदला
उत्तर भारत में कदम रखने के बाद वह कोलकाता चले गये। वहाँ प्रेस. कई किताबें छापीं. प्रिटिंग की दुनिया में तब उन्हें देश में शंहशाह माना जाने लगा। वह आगरा अंबेडकर समिति में भी थे। कई आदर्श, शिक्षा में संरक्षक की भूमिकाएँ प्रमुख हैं। 1895 में उनका निधन हो गया। उनके द्वारा स्थापित प्रेस व्यवसाय बहुत उन्नति दे रहा था। उन्होंने उस दौरान लोगों के पढ़ने की आदत को भी शर्मसार कर दिया। टैब लोग ज्यादातर जो किताब पहली बार देखी गई थी, वो नवल टीनएजर प्रेस से प्रकाशित हुई थी।

बाद में भारत सरकार ने उन पर डाक टिकट आउटपोस्ट जारी किया। हालाँकि उनके निधन के बाद नवल टीनएजर्न प्रेस का सितारा डूब गया। बाद में ये उनकी उत्तराधिकारियों में बंटवारा हो गया। अब तो ये बंद हो गया है लेकिन देश में जब भी प्रिंट का इतिहास लिखा जाएगा, वो उनके अधूरे रहेंगे।

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