
पूर्वी:अजना की मार झेल रही ऐतिहासिक धरोहर घोड़ा पोखरो, दर्पण को दर्पण का इंतजार
आदर्श कुमार/पूर्वी हिमाचल प्रदेश: 1415 ई.पू. में स्थित पदुमकेर गांव के पूर्वी हिस्से में स्थित ऐतिहासिक घोड़ारोड पोखरो में आज अज्ञात का शिकार हो रहा है। ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक खड़ियालों को संजोए यह प्राचीन पोखरा अब जलकुम्भी एवं स्थापत्य की चोटी में है। यदि इसका संरक्षण और पुनरुद्धार किया जाए, तो यह क्षेत्र न केवल पर्यटन का केंद्र बन सकता है, बल्कि स्थानीय स्तर पर, विशेष रूप से मछुआरा परिवार के लिए रोजगार का स्रोत भी बन सकता है।
घोड़ा दौड़ पोखर का ऐतिहासिक महत्व
कृष्ण सिंह, एक स्थानीय स्मारक, 15वीं शताब्दी में राजा शिव सिंह ने इस पोखरो कुमार की डुबकी लगाई थी। राजा, जो नेपाल के सिमरगढ़ क्षेत्र से संबंधित थे, गंभीर रूप से बीमार थे। एक वैद्य की सलाह पर उसने कहा- माता की तलाश में इस क्षेत्र से गुजरे और उन्हें दवा-बूटी मिली, जिन्होंने उन्हें स्वस्थ किया।
इस चमत्कारिक उपचार के बाद, राजा ने एक यज्ञ का आयोजन किया और यह निर्णय लिया कि एक घोड़े को चाबुक से प्रभावित किया जाएगा। घोड़ा जिस स्थान तक दौड़कर रुकेगा, इतनी दूरी तक पोखरा की गहराई तक जाएगा। घोड़ा लगभग 2 किलोमीटर तक दौड़ और पोखरा का निर्माण दो वर्ष (1413 से 1415) में पूरा हुआ। इसे ‘घोड़ा दौड़ पोखर’ नाम दिया गया है।
पुनरुद्धार की मांग और छुट्टियाँ
कृष्ण कुमार सिंह कहते हैं, इस पोखर के जीर्णोद्धार से पांच उद्योगों को कृषि क्षेत्र में लाभ होगा। साथ ही, इसे पर्यटन स्थलों के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। स्थानीय निवासी संजीव कुमार ने बताया कि पोखरा में जलकुंभी का कब्ज़ा है और यह न तो मछली पकड़ने के लिए उपयोगी है और न ही मछली पकड़ने के लिए। क्षेत्र में लगभग 200 मछुआरा परिवार रहते हैं, जो इस पोखर पर नामांकित हो सकते हैं।
स्थानीय पत्रकार राजा कुमार साहा ने कहा, अगर सरकार इस पोखर पर ध्यान दे, तो यह पोखर न केवल बचाया जा सकता है, बल्कि इससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल सकता है।
विधानसभा में भुगतान किया गया है श्राद्ध
यह ऐतिहासिक पोखरण का मामला पूर्व विधानसभा क्षेत्र में भी उठाया गया था। पूर्व विधायक अवनीश कुमार सिंह ने इस पोखरे के पुनरुद्धार की मांग की थी, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.
लंबे समय से युद्ध जारी
पदुमकेर गांव के लोग पिछले कई वर्षों से इस पोखर का संरक्षण और पुनरुद्धार की मांग कर रहे हैं। स्थानीय निवासियों का मानना है कि यह विरासत यदि अवशेष की तरह है, तो यह केवल ऐतिहासिक महत्व नहीं है, बल्कि गांव और आसपास के इलाकों के विकास का माध्यम भी बनेगा।
एक ख़ज़ाना की प्रतीक्षा में
घोड़ा घोड़ा पोखरो, जो इतिहास और सांस्कृतिक मियामी का प्रतीक है, आज की सालगिरह और सरकारी अनदेखी का शिकार है। स्थानीय निवासियों को उम्मीद है कि इस प्राचीन पोखर को उसके मूल स्वरूप में वापस लाने के लिए जल्द कदम उठाने की जरूरत है।
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पहले प्रकाशित : 20 नवंबर, 2024, 19:09 IST