
मोहम्मद शहाबुद्दीन की बात नहीं बिगड़ी क्यों दिखाते थे यादव यादव, कैसे हुई थी राबड़ी सरकार की किरकिरी? डीपी ओझा से जुड़ी दिलचस्प कहानी
डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर कासा था इलेक्ट्रानिक, बिहार के किले में गिरफ़्तार। अपने एक्शन से इबादत यादव और राबड़ी देवी के लिए संकट बन गए थे रियासत डीपी ओझा।
पटना. डीआईपी इज़ाफ़ा 1 फरवरी 2003 को बिहार के पुलिस विभाग को स्वामित्व दिए गए थे। 6 दिसंबर 2003 को आईपी निजामुद्दीन की प्रमुख राबड़ी देवी को रियासत के पद से हटा दिया गया था। इन 10 महीने की छोटी से रियासत में पुतिन ने ‘सीवान के साहब’ नाम से मशहूर बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन की नाक में दम कर दिया था। असल, वर्ष 2003 में मोहम्मद शहाबुद्दीन ने गुलाम यादव से वारिस हयात खान को रियासत बनाने के लिए कहा था, लेकिन गुलाम यादव ने सबसे वरिष्ठ होने के आधार पर रियासत हयात खान को रियासत बना दिया था। लेकिन, अचल बनने के बाद डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन पर इतनी सख्ती कर दी कि विश्वास यादव गुट खुलेआम बेहाल हो गए थे। तब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं, लेकिन सरकार बनाने में एक दिन में भारी कमाई हुई थी। स्थिति यह बताई गई कि आईपी फरवरी 2004 तक रियासत के पद पर रहने वाले थे, लेकिन बीच में ही हटा दिए गए।
इसके बाद रियासत पद से निकलने से पहले खफा खरीदा डी.पी सबसे पहले भारतीय पुलिस सेवा से छुट्टी दे दी। लेकिन, मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ उन्होंने जो इसके निर्माण के लिए तैयार किया था, उसके बाद के दिनों में भी शहाबुद्दीन को चेन नहीं मिला। कट्टर, शहाबुद्दीन के खिलाफ़ अलगाववादी, कट्टरपंथियों जैसे कई संगीन आपराधिक मामले दर्ज थे। डीपी मिर्जा के नेतृत्व में शहाबुद्दीन के खिलाफ पुलिस ने लूट और अपराधी अभियान को अंजाम दिया।
वो कटाक्ष पर डीपी ओझा का वफादार यादव!
साल 2003 में खत्म होते-होते आईपी मिर्जा के जमींदार नेता और खास कर शहाबुद्दीन की नजर में खटकने लगे थे। शहाबुद्दीन जब जेल में बंद थे तो धार्मिक प्रसाद यादव से उनकी मुलाकात जेल पहुंच गई। इस पर कटाक्ष करते हुए डीपी मिर्जा ने सार्वजनिक कार्यक्रमों में कहा था कि बिहार के लोगों ने लफंगों के हाथों में हाथ डाल दिया है, जगह-जगह के नेता भी प्रतिष्ठानों के मंच पर पहुंच रहे हैं। उनके ये स्ट्रेंथ-सीधा यादव और शहाबुद्दीन के रिश्ते को लेकर थे।
आई पी ईजाज़त के विश्विद्यालय के प्रशंसकों में फंसे शहाबुद्दीन
डीपी आईएसओ की तैयार की गई रिपोर्ट और शहजाद के खिलाफ केसों को तैयार की गई रिपोर्ट बाद में 2005 में लाइब्रेरी-राबड़ी सरकार चली गई और जब नीतीश सरकार आई तो शहाबुद्दीन पर कानून का असर पड़ा और अंत-अंत तक वह कानूनी पचड़ों में उलझे रहे। आलम यह रह रहा है कि शहाबुद्दीन की जब मौत हुई तो वह भी कानून की दुकान में ही थे।
बेवकूफ यादव के साथ 1 मिनट भी काम क्यों नहीं करना चाहते थे आई.डी.पी.
हालाँकि, 2 महीने पहले ही डीआईपी ओझा ने आइपीएस आइपीएस को बढ़ावा देने और बिहार सरकार को खुलेआम नकारात्मक बातें करने का कारण बताया था। उनके स्थान पर वही विरासत हयात खान यानी डब्ल्यू एच खान को विरासत में मिली थी, ईएसपी डेटाबेस से पहले शहाबुद्दीन रियासत खान को देखना चाहते थे। शहाबुद्दीन ने सबसे पहले इस पद को हटा दिया था जिसके बाद डीपी ओझा ने प्लेसमेंट ले लिया था और कहा था कि सरकार के अंदर वह 1 मिनट के लिए काम नहीं करना चाहते।
नहीं साध सके डीपी डायनासोर के राजनीतिक लक्ष्य
हालाँकि, ऐसा लगता है कि वह इस स्थिति के लिए तैयार ही थे। संभवतः उनकी राजनीतिक व्यवस्था भी रही थी। शहाबुद्दीन पर एक्शन के लेकर लालू और राबड़ी देवी की सरकार की नजर में किरकिरी बने आईपी ओझा को विरोधी विचारधारा के बीच लोकप्रियता मिली थी। अन्य के लिए, डीपी ओझा ने 2004 में लैंडहार बाबुल बिजनेस सीट से चुनाव भी लड़ा, लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई। डीपी सुजुकी को 6000 से भी कम वोट मिले थे। इस चुनाव में राइफलमैन के ललन सिंह ने कांग्रेस के कृष्ण रॉयल को लगभग 20,000 से हराया था।
अपने अनुबंध के कारण अमित इतिहास हो गया, डीआईपी इज़ाफ़ा
भूमिहार जाति से आने वाले डीपी इज़ाफ़ा 1967 के बैकफ़िले अधिकारी थे जिनका झुकाव अलग की ओर हो रहा था। डीपी ओझा का 6 दिसंबर 2024 को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। 7 दिसंबर को उनका अंतिम संस्कार पटना के गुलाबी घाट पर किया गया। उन्होंने अपने आदेश में जिन के कार्यों को अंजाम दिया वह बिहार एंटरप्राइज़ प्रकार की सेवा में अमित हो गया है। लोग जब भी बाबा साहब प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के राजघराने को याद करेंगे और मोहम्मद शहाबुद्दीन का ज़िक्र होगा तो राबड़ी देवी की सरकार के लिए एक दिन में भारी गिरावट हुई थी।
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पहले प्रकाशित : 8 दिसंबर, 2024, 12:10 IST