मध्यप्रदेश

एमपी जलियांवाला बाग हत्याकांड: लॉर्ड फिशर ने निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलवाईं, जानिए ऐतिहासिक कहानी

आखरी अपडेट:

छतरपुर समाचार: 4 जनवरी 1931 को मप्र के छतरपुर जिले के चरण पादुका सिंहपुर में बालाजी ने गोलियां चलाकर सैकड़ों निहत्थे लोगों को शहीद कर दिया। यह घटना जलियांवाला बाग कांड की तरह थी, जिसमें उर्मिल नदी का पानी…और पढ़ें

एक्स

हाल

शहीद स्थल चरण पादुका सिंहपुर

मप्र जलियांवाला बाग. मप्र का जलियांवाला बाग, जहां पर उर्मिल नदी से बलिदानियों का खून लाल हो गया था।
14 जनवरी 1931 को राजसी, छतरपुर जिले के चरण पादुका सिंहपुर में अंग्रेजी हुकुमत के राजनीतिक एजेंट कर्नल फिशर ने पंजाब के जलियांवाला बाग कांड को दोगुना कर दिया था। यहां निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवाईं गईं। शहीदों के रक्त से चरण पादुका में उर्मिल नदी का पानी लाल हो गया था। खिलौनों की बहार से पेड़ों के पत्ते गिरे हुए थे। तब से चरण पादुका सिंहपुर को बुंदेलखंड का जलियांवाला बाग कहा जाता है।

चरण पादुका सिंहपुर के जमींदार स्व. ठाकुर प्रसाद तिवारी के चित्र श्रवण टीवी 18 से बातचीत के संकेत हैं कि 1930 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित गांधीजी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर गांधीजी के समर्थन में जाने वाले मड़ोई कर, चराई कर, लगान के खिलाफ उर्मिल नदी के किनारे आसपास के गांव के लोग आम सभा कर रहे थे. लेकिन किसी ने इस महासभा की सूचना नौगांव नागालैंड के पॉलिटिकल एजेंट लार्ड फिशर को दे दी। जिसके बाद लॉर्ड फिशर अपनी फ़ौज लेकर उर्मिल नदी चरण पादुका तक पहुंच गया। जहां आमसभा कर रहे थे सभी लोगों को चारों ओर से ब्रिटिश ने घेर लिया और फिर अंडकोष का गोलाबारी शुरू हुई। अवलोकनों से पता चलता है कि लार्ड फिशर ने 40 राउंड गोलियाँ चलाई थीं, साथ ही हवाई हथियार भी थे।

गिलौहां निवासी रामदीन के लेख के अनुसार लार्ड फिशर की फोटोग्राफी में 100 से ज्यादा लोगों के शहीद होने का जिक्र है। हालाँकि, आम सभा कर रहे लोग लाठी-डंडा, सिक्का-भाला लेकर चले गए क्योंकि उन्हें डर था कि वे यहाँ आ सकते हैं। इसलिए इन बेरोजगारी सहायता से ब्रिटिश से लड़कर भाग ले सकते हैं। रगोली के रामसिंह परिहार ने अंग्रेजों की ही बंदूक छीनकर पहली फिल्म लार्ड फिशर पर छोड़ी थी।

चरण पादुका गोलकाण्ड के बाद नरेबाँ ने गोलियाँ बनाईं
अवलोकन से पता चलता है कि हमारे पिता ठाकुर प्रसाद तिवारी उस समय यहीं के मंदिर थे। चरण पादुका गोल कांड के बाद ब्रिटेन हमारे घर भी आए और चित्रों से बोले कि आप यहां के मंदिर हैं और आपने इस सभा की जानकारी शासन को नहीं दी। इसलिए आपके घर की लूट की जाएगी या मकान का प्लॉट। इसके बाद गिलौहां में सुंदर लाल सेठ की गोली मारी, बम्हौरी में शूटिंग की। हमारे घर में दो गोलियाँ चली गयीं। अंग्रेजी हुकूमत थी तो फिर हमें घर डूबने के लिए चांदी के 1500 रुपए चुकाने पड़े।

मस्जिद ठाकुर प्रसाद तिवारी के सहयोग से हुई थी आमसभा
अवलोकन कर रहे हैं कि जमींदारी स्व. ठाकुर प्रसाद तिवारी ने अंग्रेजी सरकार के टैक्स के विरोध में हो रही सभा में सभी लोगों के खान-पान की व्यवस्था को शामिल किया था। क्योंकि वह समय ग़रीबी बहुत थी। हतोत्साहित एक ओर भी कुछ लोग थे, महासभा कर रहे थे लोगों की मदद की थी। चरण पादुका सिंहपुर में 14 जनवरी 1931 की आमसभा के राष्ट्रपति गिलौहां के सरजू प्रसाद यादव ने की थी।

टीचर्स वैल्युएटर्स टीचर्स टीचर्स टीचर्स शहीद सिंह ने ही स्टेज पादुका के इस एतिहासिक स्थल के विकास पर ध्यान दिया है। उन्होंने ही शहीद स्मारक और भवन बनाया था। यहां हर साल नेता-मंत्री भी आते हैं लेकिन शहीद स्मारक बनने के अलावा यहां कोई विकास नहीं हुआ। देश की आजादी में यहां सैकड़ों लोगों ने अपना बलिदान दिया है। फिर भी रिकार्ड में सिर्फ छह गैर-जिम्मेदारी बताई गई है।

घरमध्य प्रदेश

मप्र जलियांवाला बाग हत्याकांड: निहत्थे लोगों पर लार्ड फिशर ने किया था अंधाधुंध घोल, जानें एतिहासिक किस्सा

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *