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गिलोय: आयुर्वेद की चमत्कारी औषधि, जानें इसके फायदे और उपयोग.

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आयुर्वेद के अनुसार, गिलोय पाचन क्रिया को दुरुस्त करती है और भूख बढ़ाती है. इसे खाने से रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ती है और यह आंखों के लिए भी फायदेमंद है. गिलोय का रोजाना सेवन करने से प्यास, जलन, डायबिटीज, कुष्ठ…और पढ़ें

गिलोय के हैं अनगिनत गुण, रोजाना थोड़ा सा सेवन रखेगा सभी बीमारियों से दूर

हाइलाइट्स

  • गिलोय पाचन क्रिया को दुरुस्त करती है और भूख बढ़ाती है.
  • गिलोय का सेवन डायबिटीज, पीलिया, बवासीर में फायदेमंद है.
  • गिलोय का रस आंखों की रोशनी बढ़ाने में मदद करता है.

नई दिल्ली. कोविड के समय जब पूरी दुनिया परेशान थी, तब हमारे आयुर्वेद की एक खास औषधि गिलोय चर्चा में आई. इसे अमृत के समान माना जाता है. यह एक ऐसी जड़ी-बूटी है जो बहुत सी बीमारियों को दूर करने में मदद करती है. यह शरीर के तीन दोषों – वात, पित्त और कफ को संतुलित करती है, इसलिए इसे त्रिदोष शामक औषधि भी कहा जाता है.

आयुर्वेद, चरक संहिता और घरेलू नुस्खों में इसे बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि माना गया है. यह सिर्फ बीमारियों को ही दूर नहीं करती बल्कि पूरे शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करती है. सुश्रुत संहिता में भी इसके गुणों का वर्णन है. गिलोय के पत्ते कसैले और कड़वे जरूर होते हैं, लेकिन इनके फायदे बहुत हैं.

आयुर्वेद के अनुसार, गिलोय पाचन क्रिया को दुरुस्त करती है और भूख बढ़ाती है. इसे खाने से रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ती है और यह आंखों के लिए भी फायदेमंद है. गिलोय का रोजाना सेवन करने से प्यास, जलन, डायबिटीज, कुष्ठ रोग, पीलिया, बवासीर, टीबी और मूत्र रोग जैसी समस्याओं में आराम मिलता है. महिलाओं में होने वाली कमजोरी को दूर करने के लिए भी यह बहुत फायदेमंद है.

सुश्रुत संहिता में इसके औषधीय गुणों के बारे में विस्तार से बताया गया है. यह एक लता होती है, जिस पेड़ पर भी चढ़ती है, उसके कुछ गुण भी अपने अंदर ले लेती है. इसलिए नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय सबसे अच्छी मानी जाती है.  गिलोय का तना रस्सी की तरह दिखता है और इसके पत्ते पान के पत्तों जैसे होते हैं. इसके फूल पीले और हरे रंग के गुच्छों में खिलते हैं, जबकि इसके फल मटर के दाने जैसे होते हैं. आज के आयुर्वेद में इसे एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल और रोगाणु नाशक औषधि माना जाता है.

गिलोय के सेवन से आंखों की रोशनी तेज होती है. इसके रस को त्रिफला के साथ मिलाकर पीने से आंखों की कमजोरी दूर होती है. इसके अलावा, कान की सफाई के लिए गिलोय के तने को पानी में घिसकर गुनगुना करके कान में डालने से कान का मैल साफ हो जाता है. हिचकी आने पर इसका सेवन सोंठ के साथ करने से आराम मिलता है.

आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार अश्वगंधा, शतावर, दशमूल, अडूसा, अतीस आदि जड़ी-बूटियों के साथ इसका काढ़ा बनाकर पीने से टीबी के रोगी को लाभ मिलता है. इसके अलावा, एसिडिटी से राहत पाने के लिए गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर पीने से उल्टी और पेट की जलन से छुटकारा मिलता है. कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए गिलोय रस के साथ गुड़ का सेवन करना फायदेमंद होता है. बवासीर की समस्या में भी गिलोय बहुत फायदेमंद है. हरड़, धनिया और गिलोय को पानी में उबालकर बनाया गया काढ़ा पीने से बवासीर में आराम मिलता है.

यही नहीं, लीवर से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए भी गिलोय बहुत फायदेमंद मानी जाती है. ताजा गिलोय, अजमोद, छोटी पीपल और नीम को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से लीवर की समस्याएं दूर होती हैं. इसके साथ ही, यह डायबिटीज को नियंत्रित करने में भी मददगार है. मधुमेह रोगियों के लिए गिलोय का रस बहुत फायदेमंद होता है. इसे शहद के साथ मिलाकर लेने से शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है हाथीपांव या फाइलेरिया जैसी बीमारी में भी गिलोय बहुत असरदार है. इसके रस को सरसों के तेल के साथ मिलाकर खाली पेट पीने से इस रोग में आराम मिलता है.

हृदय को स्वस्थ रखने के लिए भी गिलोय बहुत फायदेमंद मानी जाती है. काली मिर्च के साथ इसे गुनगुने पानी में लेने से हृदय रोगों से बचाव होता है. कैंसर जैसी गंभीर बीमारी में भी गिलोय एक असरदार औषधि मानी जाती है. पतंजलि के शोध के अनुसार, ब्लड कैंसर के मरीजों पर गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस मिलाकर देने से बहुत फायदा हुआ है. गिलोय के सेवन की मात्रा का ध्यान रखना चाहिए. आमतौर पर काढ़े की मात्रा 20-30 मिली ग्राम और रस की मात्रा 20 मिली ही लेनी चाहिए. हालांकि, अधिक लाभ के लिए इसे आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से लेना चाहिए.

हालांकि, इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं. यह ब्लड शुगर को कम करता है, इसलिए जिनका शुगर लेवल कम रहता है, उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान भी इसका सेवन करने से बचना चाहिए. डॉक्टर की सलाह लेकर ही इसका इस्तेमाल करना चाहिए. भारत में गिलोय लगभग हर जगह पाई जाती है. कुमाऊं से लेकर असम तक, बिहार से लेकर कर्नाटक तक यह प्रचुर मात्रा में मिलती है. यह समुद्र तल से 1,000 मीटर की ऊंचाई तक उगती है.

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17/03/25