उत्तर प्रदेश

सांझी कला: ब्रज की सांझी कला हो रही जीवित, कृष्ण से जुड़ी लीलाएं हैं बिज्जू

निर्मल कुमार राजपूत/मथुरा: ब्रज से होने वाली साँझी कला लुप्त हो गई थी। इस सांझी कला को अब धीरे-धीरे बढ़ावा दिया जा रहा है। धार्मिक आयोजन में सांझी कला की दीवारें उकेरा जाती हैं। यह कला देखने में बहुत ही आकर्षक और खूबसूरत है। भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी हुई लीलाओं के दर्शन इस कला में आपको देखने को मिलते हैं। सांझी कला को ब्रज की सबसे लोकप्रिय कला भी कहा जाता है।

ब्रज में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का दीदार आपको हर जर्रे जर्रे पर मिल जाएगा। कृष्ण की लीलाओं से जुड़े हुए सभी सांझी को ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने संजोकर रखा है। कृष्ण की लीलाओं को भी सांझी कला के माध्यम से लोग अब तक पसंद कर रहे हैं। सांझी कला को ब्रज की कला के नाम से भी जाना जाता है। इस कला के नीचे की जमीन और दीवारों पर पारंपरिक तरीके से साझी का निर्माण किया जाता है। सांझी कला को सरकार लगातार बढ़ावा दे रही है।

इस कला को बढ़ा रही है ये संस्था
मथुरा की एक संस्था इस कला को भी बढ़ावा देने में अपना योगदान दे रही है। इस लड़की ने कड़ी मेहनत से बहादुरी की कला को संजोकर रखा है। यह संस्था आज भी सांझी कला के माध्यम से लोगों को ब्रज की कला के बारे में बताती है। यह कला महल की दीवारें और जमीन पर उकेरी मौजूद है। सांझी कला भगवान श्री कृष्ण की उन अनेकों लीलाओं को याद किया जाता है, जो श्री कृष्ण ने बाल्यावस्था से युवावस्था तक की थी। सांझी कला में यह दिखाया गया है कि भगवान श्री कृष्ण की अनेकों लीलाओं में से कुछ लीलाएँ जो प्रमुख थीं। उन लीलाओं में सांझी कला के माध्यम से दीवारों और जमीन पर रूपांकन किया गया।

साँझी कला के माध्यम से लोग कर सहयोगी
तनिष्का पंडित नाम की यह संस्था सांझी कला को आज भी बढ़ावा दे रही है। जहां भी यह संस्था है वहां सांझी कला लोगों को प्रेरित करती है। सांझी कला मथुरा में कृष्ण के गृहनगर से स्टैंसिल की पारंपरिक कला है। यह कला 16वीं और 17वीं सदी में भव्यता से बनाई गई, जब दीवारों और दीवारों को साँचे में बाँट दिया गया। सांझी शब्द को हिंदी शब्द से लिया गया है, जो शाम के समय की कला से जुड़ा है। तनिष्का ने इस कला को फिर से जीवित कर लिया है। सांझी कला में यह विभिन्न चित्र दीवारों पर उकेरती है।

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