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एनसीईआरटी ने इस कक्षा की पाठ्य पुस्तक में विषय परिवर्तन किया सिंधु सरस्वती सभ्यता

एनसीईआरटी ने कक्षा 6 की पाठ्यपुस्तक में संशोधन किया है. अब इसमें उज्जैन को ग्रीनविच से पहले की मध्य रेखा के रूप में शामिल किया गया है. जातिगत भेदभाव के बारे में उल्लेख नहीं है. हड़प्पा सभ्यता को अब “सिंधु-सरस्वती” सभ्यता कहा जाएगा, जिसमें सरस्वती नदी पर ध्यान दिया गया है.

भारत में ग्रीनविच मध्यरेखा से पहले ‘मध्यरेखा’ नामक प्रधान मध्यरेखा उज्जैन से गुजरती थी. ग्रीनविच पहली प्रधान मध्यरेखा नहीं थी, बल्कि अतीत में अन्य भी थीं. भारत में उज्जयिनी शहर से होकर गुजरने वाली ‘मध्य रेखा’ प्राचीन काल में भारत की प्रधान मध्यरेखा थी, जो यूरोपीय मध्यरेखा से पहले अस्तित्व में थी. यह उज्जैन को खगोल विज्ञान के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित करती थी.

नए पाठ्यक्रम के अनुसार विकसित पाठ्यपुस्तक में जाति-आधारित भेदभाव का कोई उल्लेख नहीं किया गया है. भेदभाव के बारे में बी आर आंबेडकर के अनुभव के संदर्भ में बदलाव किया गया है. वेदों का विवरण दिया गया है. महिलाओं और शूद्रों को इन ग्रंथों का अध्ययन करने का अधिकार नहीं था.

पाकिस्तान में इस नाम से जाना जाता है?

नई पाठ्यपुस्तक में हड़प्पा सभ्यता को सिंधु-सरस्वती सभ्यता कहा गया है. “भारतीय सभ्यता की शुरुआत” अध्याय में सरस्वती नदी का बार-बार उल्लेख किया गया है. सरस्वती नदी घाटी में राखीगढ़ी और गणवेरीवाला जैसे बड़े शहरों के अलावा, कई छोटे शहरों और कस्बों का अस्तित्व था, जो इस सभ्यता के व्यापक प्रसार को दर्शाता है. इसके मुताबिक आज इस नदी को भारत में ‘घग्गर’ के नाम से और पाकिस्तान में ‘हाकरा’ के नाम से जाना जाता है और अब ये बस मौसमी नदी है.

पुजारियों ने लोगों को चार समूह में किया था विभाजित

बताते चलें कि पुरानी किताब में बताया गया था कि कुछ पुजारियों ने लोगों को चार समूह में विभाजित किया था जिसे वर्ण व्यवस्था कहा जाता था. महिलाओं व शूद्रों को वैदिक अध्ययन की अनुमति नहीं हुआ करती थी. तब महिलाओं को भी शूद्रों वर्ग में रखा जाता था. एनसीईआरटी निदेशक दिनेश सकलानी ने बताया कि नई पुस्तक में पिछली पाठ्यपुस्तक के चार अध्यायों को हटा दिया गया है, जिनमें अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यों, चाणक्य की भूमिका और उनके अर्थशास्त्र, साथ ही गुप्त, पल्लव और चालुक्य राजवंशों और कालिदास के कार्यों को शामिल किया गया था.

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