बिना झूला झूले अधूरा होता है हरियाली तीज का व्रत, अयोध्या के ज्योतिष से जानना जरूरी है
: …: हरित तीज का व्रत भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। राक्षसी महिलाओं के लिए यह पर्व न केवल पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना के लिए रखा जाता है, बल्कि इसमें झूला झूलने की परंपरा भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। एक सिद्धांत यह भी है कि बिना झूला झूले यह व्रत अधूरा रहता है।
हरित तीज और झूला झूलने की परंपरा
उत्तर भारत में हरियाली तीज मनाई जाती है और इसे प्रकृति के सौंदर्य के साथ जोड़ा जाता है। इस दिन महिलाएं साज-धज कर हरे, रेगिस्तानी गीत गाकर और झूला झूलकर इस त्योहार को मनाती हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित कल्कि राम के अनुसार झूला झूलना हरियाली तीज का सिद्धांत है। क्योंकि यह प्रकृति के साथ समरसता और समृद्धि का प्रतीक है। झूला झूलने से महिलाओं को एक विशेष आनंद की अनुभूति होती है, जो उनके व्रत की सफलता और सुख की कामना में सहायक होती है।
बिना झूला झूले अधूरा है तीज व्रत
ज्योतिषाचार्य के अनुसार, हरियाली तीज का व्रत और उत्सव बिना झूला-झूला अधूरा माना जाता है। यह न केवल एक सांस्कृतिक परंपरा है, बल्कि यह आध्यात्मिक महत्व भी है। झूला झूलने से मन को शांति मिलती है और व्रत के दौरान ध्यान केंद्रित करने में सहायता मिलती है। इसलिए, हरियाली तीज पर झूला झूलना अनिवार्य माना जाता है।
पार्वती के 107 जन्म की कहानी
हरित तीज का संबंध माता पार्वती और भगवान शिव की कथा से भी है। कथा के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को 107 जन्मों तक प्राप्त किया और हर जन्म में कठिन तपस्या की। यह तपस्या और भक्ति का प्रतीक है. 108वें जन्म में पार्वती ने कठिन तपस्या कर शिव की आराधना की और उन्हें पति के रूप में प्राप्त किया।
क्या है कथा का महत्व
ज्योतिष कथाएँ हैं कि पार्वती की यह हमें गंभीरता, दान और भक्ति की महत्वपूर्ण शिक्षा देती है। हरित तीज पर इस कथा का स्मरण और झूला झूलना दोनों ही व्रतधारी महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पर्व उनकी भक्ति और दान को दर्शाता है।
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पहले प्रकाशित : 6 अगस्त, 2024, 08:45 IST
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