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सहेली की किस बात से टूटा इंदिरा गांधी का दिल? 3 साल बाद ऐसे लिया था अमिताभ बच्चन की मां से बदला

इमरजेंसी (Emergency) के बाद जब साल 1977 में लोकसभा चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी को बुरी हार का सामना करना पड़ा. उनके बेटे संजय गांधी (Sanjay Gandhi) भी अमेठी से चुनाव हार गए जनता पार्टी की अगुवाई में गैर कांग्रेसी सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. इंदिरा गांधी को लग रहा था कि मोरारजी देसाई की सरकार अब उनसे और उनके परिवार से बदला लेगी. जेल में डाला जा सकता है. इसलिये वह अपने पक्ष में जन समर्थन जुटाने की कोशिश करने लगीं. इस मुश्किल वक्त में इंदिरा गांधी को अपनी एक पुरानी सहेली की याद आई. वो थीं तेजी बच्चन.

गांधी और बच्चन परिवार की दोस्ती इलाहाबाद के ‘आनंद भवन’ से शुरू हुई. हरिवंश राय बच्चन, जवाहरलाल नेहरू के करीब थे. तो उनकी पत्नी तेजी बच्चन और इंदिरा गांधी के बीच गहरी दोस्ती थी. दोनों परिवार जब दिल्ली आए तो अगली पीढ़ी के बीच भी वैसी ही दोस्ती पनपी. अमिताभ बच्चन और उनके भाई अजिताभ की इंदिरा गांधी के बेटों राजीव और संजय से गहरी दोस्ती हुई. राजीव और संजय गांधी जब छुट्टियों में दून स्कूल से दिल्ली लौटते एक पल भी बंटी (अजिताभ बच्चन) और अमिताभ के बिना नहीं रह पाते. चारों, साथ में तीन मूर्ति भवन के लॉन में खेला करते थे.

इंदिरा गांधी को सहेली ने क्या जवाब दिया?
इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी ने एक जनसभा करने का मन बनाया. संजय गांधी ने अपनी मां इंदिरा से कहा कि वह तेजी बच्चन से बात करें और उनसे जनसभा में आने को कहें. स्टेज पर बच्चन परिवार के होने से लोगों का भरोसा और बढ़ेगा. संजय गांधी को यकीन था कि इंदिरा के सिर्फ एक बार कहने पर तेजी बच्चन हां कह देंगी, लेकिन जो जवाब मिला वो आगे चलकर दोनों परिवारों के रिश्ते में दरार की वजह बना.

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वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई अपनी किताब ‘नेता-अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स’ में संजय गांधी के बेटे वरुण गांधी के हवाले से लिखते हैं कि इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी की सत्ता गई और जनता पार्टी की सरकार आई, तब गांधी परिवार ने एक जनसभा रखी. तय किया कि इसमें बच्चन परिवार को बुलाया जाए. हालांकि तेजी बच्चन ने यह कहते हुए उस जनसभा में आने से इनकार कर दिया कि इससे उनके बेटे अमिताभ के फिल्मी करियर पर बुरा असर पड़ेगा.

इंदिरा गांधी ने कैसे लिया था बदला?
रशीद किदवई लिखते हैं कि इससे गांधी परिवार को बहुत आघात पहुंचा. इंदिरा गांधी को अपनी सहेली तेजी से इस तरह के जवाब की कतई उम्मीद नहीं थी. इंदिरा गांधी ने साल 1980 में एक तरीके से इसका बदला भी लिया. उन्होंने तेजी बच्चन को दरकिनार करते हुए नरगिस को राज्यसभा में भेज दिया.

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अमिताभ को लेकर क्या चेतावनी दी थी?
इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के निधन के बाद राजीव के कहने पर अमिताभ राजनीति में आए. हालांकि इंदिरा गांधी जीवित थीं, तो नहीं चाहती थीं कि अमिताभ कभी राजनीति में आएं. उन्होंने अपने बेटे राजीव को इसे लेकर चेताया भी था. कांग्रेस नेता माखनलाल फोतेदार अपने संस्मरण में लिखते हैं कि एक मौके पर इंदिरा गांधी, राजीव, अरुण और मैं लोकसभा चुनाव को लेकर चर्चा कर रहे थे. इसी दौरान इंदिरा गांधी, राजीव की तरफ मुड़ीं.

उनसे कहा कि दो बातें हमेशा ध्यान रखना. पहला- तेजी बच्चन के बेटे अमिताभ को कभी चुनावी राजनीति में नहीं लाना और दूसरा ग्वालियर के पूर्व महाराज माधवराव सिंधिया से एक हाथ की दूरी बनाकर रखना. राजीव गांधी को अपनी मां की बात पर भरोसा नहीं हुआ. चुपचाप सुनते रहे, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया.

टैग: Amitabh Bachachan, इंदिरा गांधी, Rajiv Gandhi

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