अपराजिता बिल क्या है? प्रासंगिक मामलों में ममता सरकार ले आई कठोर कानून, क्या जगह हरे आश्रम
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर से रेप और हत्या के खिलाफ हुए विशाल विरोध प्रदर्शन और रिसर्च को लेकर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार चौतरफा घिरी हुई है। इस बीच ममता सरकार पश्चिम बंगाल की विधानसभा ‘अपराजिता बिल’ लेकर आई है जिसे विधानसभा में पारित किया गया है। यह बिल भारतीय न्याय संहिता (बी शूज़) में बलात्कार और बाल यौन उत्पीड़न के मामलों में दंड और कठोर बनाने और इससे जुड़े लोगों को देशद्रोही बनाने का प्रस्ताव है। मंगलवार को विधानसभा में भारी आम जनता के बीच यह बिल पारित किया गया। बिल के पारित होने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र की मोदी सरकार पर शेयर शेयर करते हुए कहा कि मोदी की सरकार ने जो काम किया, उसने नहीं किया, उन्होंने यह दिखाया है। उन्होंने इस बिल को ऐतिहासिक बताया है। आइये जानते हैं अपराजिता बिल के फ्रेंड्स के बारे में।
अपराजिता बिल के प्रमुख प्रस्ताव
अपराजिता बिल में भारतीय न्याय संहिता (बी कॉन) में कई धाराओं में संशोधन का प्रस्ताव है। बी के सूइस के तहत रेप के दोषी को 10 साल की कठोर जेल की सजा दी जाती है, उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। बंगाल की विधायिका में उम्रकैद, आर्थिक तंगी या मृत्यु तक की सजा का प्रस्ताव दिया गया है। इसके अलावा, अल्पावधि ऐसा होना चाहिए जो कि कंक्रीट की चिकित्सा और न्यूनतम लागत को पूरा कर सके।
बिल बी डॉग्स की धारा 66 में भी संशोधन का प्रस्ताव है, जिसके तहत रेप के बाद कारागार की मौत हो जाने या उसे संकटपूर्ण राज्य में प्रवेश के लिए केंद्र के कानून में 20 साल की जेल, उम्रकैद और मौत की सजा का प्रस्ताव है। ऐसी स्थिति में अपराजिता बिल को केवल मृत्युदंड तक सीमित कर दिया गया। ग्रुप मामलों से संबंधित धारा 70 में 20 साल की जेल का विकल्प समाप्त कर दिया गया है और इसके लिए उम्रकैद की सजा या मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।
अपराजिता बिल में शूज़ बी की धारा 66 में भी बदलाव करने का प्रस्ताव है। बी क्रूज़ की धारा 66 के तहत बलात्कार के बाद डार्ट की मौत हो जाने या उसे संकटपूर्ण राज्य में डालने के लिए 20 साल की जेल, उम्रकैद और मौत की सज़ा का प्रावधान है। जहां अपराजिता बिल में इस उम्र कैद की सजा या मौत की सजा का प्रस्ताव है, वहीं अराजिता बिल में 20 साल की जेल के विकल्प को खत्म कर दिया गया है। का प्रस्ताव दिया गया है.
इसके अलावा, इस वैज्ञानिक में यौन हिंसा के पीड़ितों की पहचान को सार्वजनिक करने से संबंधित दंडों को भी नष्ट कर दिया गया है। बी सिद्धांत के तहत, ऐसे मामलों में दो साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है, जबकि अपराजिता बिल के तहत तीन से पांच साल की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही बाल यौन उत्पीड़न के मामलों में भी दंड का प्रावधान किया गया है। बिल में विशेष न्यायालयों और विशेष कार्यबलों की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा गया है जो यौन हिंसा के मामलों की सुनवाई और जांच करेगा।
राष्ट्रपति के पद पर अपराजिता बिल क्या है?
इस विधेयक को पश्चिम बंगाल विधानसभा में शामिल होने के लिए दुकानदारों और कांग्रेस दोनों का समर्थन प्राप्त है, लेकिन इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की स्वीकृति की आवश्यकता होगी। उल्लेखनीय है कि क्रिमिनल लॉ संविधान की समविद्या सूची में शामिल है, राज्य विधानसभा द्वारा पारित कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही लागू किया जा सकता है। वहीं राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्री परिषद की सलाह पर काम करते हैं। अब केंद्र यह तय करना चाहता है कि यह बिल कानून बने या नहीं।
हालाँकि, इस सुपरमार्केट को पश्चिम बंगाल में भाजपा का समर्थन प्राप्त है लेकिन केंद्र में भाजपा नीति गठबंधन की सरकार है। कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस और बीजेपी एक दूसरे के विरोधी हैं इसलिए अपराजिता बिल को हरी सदस्यता मिलने की संभावना कम है। इससे पहले आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र विधानसभाओं में भी बलात्कार और अपराधी मामलों में मौत की सज़ा का प्रावधान था, लेकिन इन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली।