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‘सबका साथ’ के एजेंडे पर कैसे चल रहे राहुल गांधी, पुरानी इमेज को भी कहा Tata Bye-Bye

चार जून को आए लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी नए अवतार में दिखाई दे रहे हैं। सड़क से लेकर संसद तक, राहुल गांधी का कॉन्फिडेंस काफी बढ़ गया है। पिछले तीन महीने में राहुल ने केंद्र सरकार को कई मुद्दों पर घेरा है, जिसके बाद उसे अपने कदम वापस खींचने पड़े हैं। फिर चाहे लेटरल एंट्री का मुद्दा हो या फिर वक्फ बोर्ड बिल का। सरकार ने राहुल गांधी के मुद्दे को उठाए जाने के बाद से ही अपने फैसले में बदलाव किया। राहुल अपनी पुरानी इमेज को टाटा, बाय-बाय बोलते दिख रहे हैं। राहुल की नई छवि सिर्फ संसद के भीतर ही नहीं दिख रही, बल्कि वह इंडिया गठबंधन में भी सर्वमान्य नेता बन गए हैं। कुछ सालों पहले तक जहां कई बड़े नेता राहुल से ज्यादा सोनिया गांधी से राजनैतिक मुद्दों पर बात करने को तरजीह देते थे, तो अब यह स्थिति बदल गई है। राहुल भी सबको साथ लेकर चलने के एजेंडे पर चल रहे हैं।

सबको साथ लेकर चल रहे राहुल गांधी

साल 2023 में जब इंडिया गठबंधन बना था, तब उसमें ऐसे कई दल थे, जोकि राज्यों में एक-दूसरे दलों के खिलाफ चुनाव लड़ते थे। उस समय यह तय किया गया था कि गठबंधन सिर्फ राष्ट्रीय स्तर के लोकसभा चुनाव के लिए ही है, जबकि विधानसभा चुनाव के समय ये दल अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे। लेकिन चार जून को मिली सफलता के बाद अब हालात बदल गए हैं। आम आदमी पार्टी से लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस तक, राहुल गांधी ज्यादा से ज्यादा दलों को विधानसभा चुनाव में भी साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में जहां कांग्रेस और एनसी का गठबंधन हो गया है तो वहीं, हरियाणा में कांग्रेस-आप के बीच चर्चा जारी है। सूत्रों के अनुसार, हरियाणा में आम आदमी पार्टी नौ सीटों की मांग कर रही है, जबकि कांग्रेस सात सीटें देने के लिए राजी हो गई है। अभी बातचीत का दौर जारी है और लगभग तय है कि दोनों दल एक साथ मिलकर हरियाणा में चुनाव लड़ने उतरेंगे। सूत्रों के अनुसार, आप और कांग्रेस के बीच संभावित अलायंस के पीछे भी राहुल गांधी ही हैं, जिन्होंने अकेले चुनाव लड़ने के बजाए साथ में मैदान में उतरने को ज्यादा तरजीह दी है।

विपक्षी नेताओं संग राहुल की केमिस्ट्री हुई बेहतर

कुछ सालों पहले तक राहुल गांधी पर आरोप लगता रहा कि वे फुल टाइम राजनेता नहीं हैं। कई बार विदेश दौरों को लेकर भी सवाल खड़े हुए। इसके अलावा, यह भी कहा जाता रहा कि लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी समेत कई विपक्षी दल के नेता कांग्रेस में सोनिया गांधी से राजनैतिक मुद्दों पर बातचीत करना ज्यादा पसंद करते हैं, लेकिन अब विपक्षी दलों के नेताओं के बीच यह स्थिति भी बदली दिखती है। न सिर्फ लालू यादव, बल्कि तेजस्वी की भी राहुल संग मुलाकात और बातचीत होती रही है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद राहुल भी इंडिया गठबंधन के नेताओं से ज्यादा बातचीत करते हुए दिखाई देते हैं।

विपक्ष के बीच भी बढ़ा राहुल का कद

जून में जब राहुल गांधी का जन्मदिन था, तब तेजस्वी ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं, जिसपर राहुल ने उनके लिए भाई का इस्तेमाल किया। राहुल ने तेजस्वी को जवाब दिया, ”आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद भाई। अगला लंच – कतला या रोहू।” इसके अलावा, जब अखिलेश यादव ने भी राहुल को शुभकामनाएं दीं तो उन्होंने धन्यवाद करते हुए कहा कि यूपी के दो लड़के हिंदुस्तान की राजनीति को मोहब्बत की दुकान बनाएंगे। वहीं, डीएमके चीफ और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और राहुल गांधी की ‘दोस्ती’ भी जग-जाहिर है। इससे साफ है कि लोकसभा चुनाव के बाद से राहुल का न सिर्फ कांग्रेस के भीतर कद बढ़ा है, बल्कि विपक्षी दलों के नेताओं संग भी केमिस्ट्री बेहतर हुई है। विपक्षी दलों को एकजुट करने का जो काम पहले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी करती थीं, अब राहुल गांधी उसी रोल में हैं और आम चुनाव के बाद वे इस रोल को निभाने में कामयाब भी रहे हैं।

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