क्राइम

ब्रेन हिल विक्की साल 1994 की ये नकली मिस्त्री, पारस की थ्योरी से पुलिस के उड़े थे होश, ऐसे स्टॉक के पीछे पहुंचा हत्यारा

नई दिल्ली. राजधानी दिल्ली की ऐसी मिस्त्री, जिसका नाम यह है कि दिल्ली पुलिस को कई साल हो गए, लेकिन वह आज भी मिस्त्री बनी हुई है। वर्ष 1994 में दिल्ली के स्प्रिंग कुंज में एक पूरे परिवार को बड़ी संख्या में खिलाड़ियों से मार दिया गया था। हत्यारे की योग्यता थी कि वर्तमान समय में कोई सबूत भी सामने नहीं आया है, लेकिन मृतक के जेब से मिले एक व्यक्ति ने हत्यारे की पोल खोल दी।

साल 1994 में दिल्ली का सरनपाल कोहली के नाम से आज भी लोग मशहूर हैं। यह घटना देश के नामचीन केसों में से एक केस है। दिल्ली के स्प्रिंग कुंज में रात के अंधेरे में एक पूरे परिवार का खात्मा कर दिया गया था। इस सरकारी मिस्त्री की जांच में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल से हाल ही में सुपर कॉप ललित मोहन नेगी ने अहम रोल अदा किया था। इस प्रमुख मिस्त्री को नेगी ने कैसे सुलझाया और बाद में उन चिह्नों को कोर्ट ने कितना सही माना। आइये नेगी से ही जानते हैं.

पार्स की थ्योरी क्या थी?
ललित मोहन नेगी कहते हैं, ’22 जनवरी 1994 को सुबह 5 बजे समर विहार पुलिस को एक सूचना मिली कि स्प्रिंग कुंज के डी-3/3122 मकान में एक परिवार का अपहरण कर लिया गया है। मैं पूरी टीम के साथ काम पर पहुंच गया। घर के अंदर सरनपाल कोहली की पत्नी और उनके दो बेटों के शव अलग-अलग-अलग टुकड़ों में डूबे हुए हैं। एक बेटा 4 साल का था दूसरा 3 साल का था।’

हमने इस केस की तफ्तीश शुरू कर दी. हमारी पहली चुनौती यह थी कि हत्यारा कौन है और उसे कैसे खोजा जाए? सरनपाल कोहली शेयर का काम करते थे। इसलिए सबसे पहले उनका काम करने वाले लोगों से पूछताछ शुरू हुई। हम लोगों को शक था कि सरनपाल कोहली और उनके परिवार की हत्या किसी ऐसे शख्स ने की होगी, जिनके घर में फ्रेंडली एंट्री हुई थी। घर के अंदर कहीं भी जोर-जबरदस्ती का कोई मतलब नहीं मिलता। पूछताछ में पता चला कि उनके दो कर्मचारी राम पाल सिंह चौहान और परमिंदर सिंह के सरनपाल से अच्छे संबंध थे। अन्य लोगों और अन्य कर्मचारियों से पूछताछ में भी दोनों के संबंध का पता चला। इसके बाद दोनों को हम लोगों ने डेटन कर लिया।’

बेघर क्यों हो गया?
नेगी के अनुसार, ‘व्यक्तिगत मनोविज्ञान में पूछताछ में अपना कथन बार-बार बदला जा रहा था। जांच में पता चला कि दोनों को शेयर का काम करने वाले सरनपाल कोहली के पास बहुत पैसा होने का शक था। हालाँकि, हमने सरनपाल के शेयर किये तो ऐसा कुछ नहीं मिला। लेकिन, मृतक के जेब से एक पर्स मिला, जो उसका नहीं था। फिर मैंने सोचा कि ऐसा कौन सा शख्स है, जिसने सरनापाल के जेब पर पर्स डाला है? आख़िर उसका क्या मकसद था? हम लोगों को पता चला कि वह गाजियाबाद में रहता है। किसी प्रकार की कंपनी का पता.’

डायरेक्ट एविडेंस क्यों नहीं मिला?
नेगी के अनुसार, ‘जब हम लोग गाज़ियाबाद के उस पार्स के मालगोदाम में रहते हैं तो पता चलता है कि उस मालगोदाम में एक दादा-दादी का पिता काम करता है। उनके पिता ने पर्स मालखाने में जमावड़े की पहली फिल्म खुद रखी थी। जिस पर उनके बेटे ने प्रयोग किया। इसका एक और सबूत मिला. लेकिन, इस बीच शेयरहोल्डर के फिनोल प्रिंट भी दोनों के फिनोल प्रिंट से टेली हो गए थे। फिर हम लोगों ने उस चापर्ड हथियार को बरामद किया, जिसका इस्तेमाल फायरिंग में किया गया था। हालाँकि, इस मामले में कन्विक्शन नहीं हो पाया। क्योंकि कोर्ट ने कहा कि कोई डायरेक्ट एविडेंस नहीं है। इस कारण से ‘ओबामा’ कोर्ट ने बेनिट ऑफ डाउट रिक्शा कर दिया।’

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नेगी के मुताबिक राम पाल सिंह चौहान और परमिंदर सिंह बेशक रिहा हुए थे लेकिन, बाद में इस केस की वैज्ञानिक जांच की बात हुई थी। दो साल से ज्यादा समय तक चले इस 11 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। लेकिन, डिफ्रेंस पक्ष ने चॉकलेट दी कि अनफॉलो में कई विरोधाभास हैं। हालाँकि, बाद में कई सार्जेंट तक सरनपाल सिंह कोहली के पिता हर चरण सिंह कोहली बनाम दिल्ली पुलिस केस आ रहे थे। लेकिन ये मामला आज भी मिस्त्री का बना हुआ है.

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