बिहार

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए मदद की दरकार मुजफ्फरपुर समाचार

ऋतुराज/मुजफ्फरपुरः एक परिवार के तीन बच्चों को ऐसी गंभीर बीमारी हो गई है, जिसका कोई इलाज नहीं है। उनके परिवार वाले आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं और इलाज के लिए उनके पास अब पैसे नहीं बचे हैं। स्थिति यह है कि उन्हें दुनिया के सामने हाथ फैलाने में मदद मिल रही है, ताकि उनके घर का चिराग स्वस्थ हो सके। प्रत्येक वर्ष आपको पूरी तरह से तैयार की जाती है

शहर के जीरोमाइल में रहने वाले ललन साहा एक छोटा सा गोलगप्पे का ठेला लगाते हैं, जहां उनका घर है। उनका परिवार छोटा है और वे किराए के मकान में रहते हैं, लेकिन अब उनकी स्थिति बिगड़ रही है। ललन साह के तीन बेटे हैं: विवेक कुमार (13 वर्ष), अनिकेत कुमार (10 वर्ष), और सबसे छोटे समर कुमार (8 वर्ष)। ये तीन बच्चे मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। ये है इलाज शहर के सबसे बड़े सिविल स्पेशलिस्ट, डॉ. अरुण शाह के पास चल रहा है. उन्होंने इन बच्चों को एक दवा पर नियंत्रण रखा है, लेकिन डॉक्टर का कहना है कि इस बीमारी का जड़ से ठीक होना कोई इलाज नहीं है। ललन साहा ने अपने बच्चों के इलाज के बारे में दिल्ली के आक्षेपकर्ताओं तक कहा, लेकिन सभी विद्वानों का कहना है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है।

बच्चों के पिता आर्थिक रूप से कमजोर हैं
ललन साहा ने लोकल 18 को बताया कि उनके तीन बेटे जब साहसी थे, तब वे स्वस्थ थे, लेकिन 3 से 4 साल बाद वे प्यारे हो गए। इसके बाद वे डॉक्टर अरुण शाह से मिले, जांच पड़ताल को कहा गया। जांच में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक बीमारी को कहा जाता है। डॉक्टर ने बताया कि इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन 300 रुपये की एक दवा है, जिसे नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। ललन साह ने अपने बच्चों के इलाज के लिए कई प्रयास किए और दिल्ली भी गए, जहां पहले तो डॉक्टर ने कहा कि इलाज नहीं होगा, लेकिन जांच के बाद उन्होंने कहा कि इसका इलाज नहीं है। ललन साहा की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गयी है. इलाज में करीब 5 से 7 लाख रुपये खर्च हुए, जो उनके लिए एक बड़ी रकम थी। अब उनके पास इलाज के लिए एक भी रुपया नहीं बचा है। ललन साहा ने लोगों और समर्थकों से अपील की है कि कोई उनकी मदद करे, ताकि किसी डॉक्टर के पास जाकर इलाज मिल सके।

₹300 की गोली बच्चों की पूरी जिंदगी के लिए उपलब्ध है
पीड़ित बच्चों की मां दीपाली देवी ने लोकल 18 को बताया कि जब उनके बच्चे पैदा हुए तो वे बिल्कुल ठीक थे, लेकिन 3 से 4 साल बाद उनके बच्चे पैदा हो गए। इसके बाद वे दिल्ली जैसे बड़े शहरों से चले गए, लेकिन सभी विद्वानों का कहना है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। वहीं, पीड़ित बच्चों की दादी वीणा देवी ने लोकल 18 के कैमरों में अपने दर्द के बारे में बताया कि जन्म के बाद बच्चा तो ठीक था, लेकिन कुछ साल बाद उनकी हालत खराब हो गई। उन्हें डॉ. अरुण शाह के पास ले जाया गया, जहां उनका इलाज हुआ, लेकिन डॉक्टर ने कहा कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। अगर विदेश में इसका इलाज होता है, तो वे किसी भी तरह अपने बच्चों को भेज देते हैं। लेकिन अभी तक इसका कोई इलाज नहीं मिला है। 300 रुपए के टैबलेट बच्चों की जिंदगी चल रही है।

अभी तक इसका कोई इलाज नहीं है डॉक्टर
इस विषय पर शहर के सबसे बड़े और डिजिटल डिजिटल स्पेशलिस्ट डॉक्टर अरुण शाह (एमडी, डीसीएच) ने लोकल 18 पर फोन कर बताया कि हमारे पास ऐसे कई मामले आए हैं। इसे मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (एमडी) कहा जाता है। यह एक वंशानुगत बीमारी है, जिससे मांसपेशियां धीरे-धीरे खराब होती जाती हैं। यह एक प्रगतिशील बीमारी है, जिसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन दवा और थेरेपी से दवा पर नियंत्रण किया जा सकता है। हालाँकि, अमेरिका की एक कंपनी ने इसका परीक्षण किया है, जिसके लिए 50 लाख रुपये का इंजेक्शन लगाया गया है। यह बीमारी शरीर में कूल्हे और अल्ट्रासाउंड से शुरू होती है। जब हाथ ऊपर की ओर बढ़ते हैं, तो कंधे की हड्डियाँ लचीलेपन की तरह बाहर निकल सकती हैं।

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