महाराष्ट्र

आयरन की रोड की वजह से गिर गई थी शिवाजी महाराज की मूर्ति, कोर्ट से नहीं मिली आम आदमी को राहत

सिंधुदुर्ग में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा को लेकर कोर्ट ने कहा कि मूर्तियों में स्टील की जगह लोहे की रॉड का इस्तेमाल किया गया था। अदालत ने इस मामले में गिरफ्तार किए गए सचिवालय सलाहकार की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। रायगढ़ किले में लगी शिवाजी महाराज की प्रतिमा के बाद चेतन पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया था।

कोर्ट ने कहा कि जब प्रतिमा में आइले स्टील की जगह पर लोहे की छड़ का इस्तेमाल किया गया तो वह जगह बर्बाद हो गई। समंदर के किनारे के लोहे पर जंग लीच के चांस और बहुतायत में होते हैं। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि नवजात की गलती की वजह से यह घटना घटी। 19 सितंबर को सिंधुदुर्ग सेशन कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए चेतन याचिकाकर्ता को जमानत से खारिज कर दिया था।

शिवाजी महाराज की इस प्रतिमा का अनावरण 4 दिसंबर 2023 को प्रधानमंत्री मोदी के हाथों किया गया था। वहीं प्रतिमा 26 अगस्त को धाराशायी हो गई। इस मामले में पाटील के साथ शिल्पकार जयदीप आप्टे को भी गिरफ्तार किया गया था। आरोपी का कहना है कि वह प्रोफेसर के तौर पर काम करता है और इस अपराध से उसे कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि एक दोस्त के अनुरोध पर उन्होंने व्हाट्सएप पर केवल स्थिरता की रिपोर्ट दी थी। यह रिपोर्ट भी प्रतिमा के प्लाट फॉर्म को लेकर थी ना कि प्रतिमा को लेकर।

याचिकाकर्ता ने कहा कि किसी ने भी ऐसा रिकॉर्ड नहीं बनाया है जिससे पता चले कि उन्हें कोई काम दिया गया था या फिर कोई भुगतान किया गया था। इसके अलावा इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि प्रतिमा का प्लॉट गलत तरीके से बनाया गया था या फिर उसे गलत तरीके से बनाया गया था।

जमानत याचिका का विरोध करते हुए पुलिस ने अदालत में कहा कि यह निर्माण बहुत ही खराब गुणवत्ता का हुआ था और इसी कारण से प्रतिमा गिर गई। पुलिस ने कहा कि आरोपियों ने यह खुलासा किया है कि यह मूर्ति ऐसी जगह है जहां जंग का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। पुलिस का कहना है कि आयरन में जंग लीच की वजह से ही उसकी आदर्श छवि सामने आई है और इस मामले की जांच अभी जारी है।

कोर्ट ने कहा कि वृद्धा का यह कहना था कि उन्हें सलाहकार के तौर पर नियुक्त नहीं किया गया था, इस पद पर उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। अगर उसका सामान नहीं हुआ तो उसे रिपोर्ट तैयार करने की जरूरत भी नहीं थी। बिना किसी असहिष्णुता की सहमति के कोई भी पोर्टेबल कंसल्टेंट रिपोर्ट तैयार नहीं करता है।

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