जम्मू-कश्मीर के आखिरी महाराजा ने यहीं से की थी पढ़ाई, जानें कैसे कराते थे चुनाव
पूरे देश की नजर इस वक्त हरियाणा और जम्मू कश्मीर इलेक्शन के रिजल्ट पर है. ये दोनों ही राज्य देश की राजनीति में अपनी खास पहचान रखते हैं. लेकिन यहां हम जम्मू कश्मीर की एक खास शख्सियत की बात करेंगे. आज हम आपको बताएंगे कि जम्मू कश्मीर रियासत के अंतिम महाराजा हरि सिंह ने कहां से पढ़ाई की थी और कहां से सैन्य प्रशिक्षण लिया था.
बताते चलें हरि सिंह अमर सिंह और भोटियाली चिब के पुत्र थे. साल 1923 में अपने चाचा की मौत होने के बाद वह जम्मू और कश्मीर के नए महाराजा बने. वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद वह चाहते थे कि जम्मू कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य के तौर पर बना रहे. उन्हें अपने राज्य में आदिवासी सशस्त्र लोगों और पाकिस्तानी सेना की तरफ से किए गए हमले के खिलाफ भारतीय सैनिकों का समर्थन प्राप्त करने के लिए भारत के डोमिनियन में शामिल होना पड़ा. हरि सिंह साल 1952 तक राज्य के नाममात्र महाराजा बने रहे, जब भारत सरकार ने राजशाही को समाप्त कर दिया.
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मेयो कॉलेज से की पढ़ाई
26 अप्रैल 1961 के दिन उनकी मौत हो गई. उनके आखिरी दिन बॉम्बे में बीते थे. राजा हरि सिंह केवल 13 साल की उम्र पढ़ाई के लिए अजमेर के मेयो कॉलेज चले गए थे. इसके एक वर्ष बाद ही साल 1909 में उनके पिता की मृत्यु हो गई थी. लेकिन अंग्रेजों ने उनकी शिक्षा में खासी रुचि दिखाई और उन्हें मेजर एचके बरार को उनका अभिभावक बनाया गया. मेयो कॉलेज के बाद हरि सिंह सैन्य प्रशिक्षण के लिए देहरादून में ब्रिटिश की तरफ से संचालित इंपीरियल कैडेट कोर में चले गए.
प्रजा सभा में इतने थे सदस्य
हरि सिंह ने शासक बनने के बाद स्वतंत्र चुनाव कराए और रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) के तहत लागू कानूनों के साथ शासन के लिए प्रजा सभा, जम्मू और कश्मीर विधानसभा का गठन किया. राजा हरि सिंह साल 1932 सर बरजोर दलाल की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी. रिपोर्ट्स के अनुसार प्रजा सभा में 75 सदस्य थे. इनमें से 33 चुने गए सदस्य थे जबकि 30 नॉमिनेटेड और 12 अधिकारी वर्ग के सदस्य थे.
किसे कितनी सीटें?
इसमें कई पार्टियां उभर कर सामने आई थीं. प्रांतों के हिसाब से कश्मीर प्रांत को 16 सीटें मिलीं, जिसमें 11 मुस्लिम, 3 हिंदू और 1 सिख थे. जम्मू प्रांत को 17 सीटें दी गईं, जिसमें 9 मुस्लिम, 7 हिंदू और 1 सिख शामिल थे.
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