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पढ़ाकुओं के लिए ‘आदर्श’ बना अंडे वाले का बेटा, गरीबी को मात देकर बना जज

<पी शैली="पाठ-संरेखण: औचित्य सिद्ध करें;">कहते हैं यदि इंसान कुछ भी करने की ठान लें तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है. आज हम आपको औरंगाबाद के रहने वाले आदर्श कुमार की कहानी बताएंगे. जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और माता-पिता के संघर्ष को सलाम करते हुए बीपीएससी की 32वीं न्यायिक सेवा परीक्षा पास की और जज बने.

लक्ष्य को पाने के दौरान उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इस दौरान उन्हें आर्थिक तंगी और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. लेकिन इन सबके बावजूद आदर्श ने यह साबित कर दिया कि सपने देखने और उन्हें साकार करने की कोई कीमत नहीं होती है.

आदर्श के पिता विजय साव ठेले पर अंडा और ब्रेड बेचकर अपने परिवार का गुजारा करते हैं. उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए दिन-रात मेहनत की. सात सदस्यों के परिवार के भरण-पोषण के साथ-साथ बच्चों की शिक्षा के लिए उन्होंने कभी अपने कदम पीछे नहीं खींचे. मां सुनैना ने भी अपने बेटे के सपनों को पूरा करने के लिए कर्ज लिया और परिवार से यह बात छिपाकर बच्चों की पढ़ाई में योगदान दिया.

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120 वीं मेरिट में बनाई जगह
आदर्श ने अति पिछड़ा वर्ग (EBC) कैटेगरी में 120 वीं रैंक हासिल कर अपनी मेहनत और दृढ़ता का प्रमाण दिया. वे कहते हैं कि उनके माता-पिता उनके लिए भगवान से कम नहीं हैं. उन्होंने अपने पिता को ठेले पर कड़ी मेहनत करते और मां को परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते देखा. यही उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा बनी.

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संघर्ष भरी जिंदगी, सफलता का सफर
आदर्श बताते हैं कि उनके पिता दिन-रात ठेले पर काम करते थे ताकि बच्चों की पढ़ाई में कोई बाधा न आए. आर्थिक दिक्कतों के बावजूद परिवार ने कभी हार नहीं मानी. मां ने अपने बेटे को यह महसूस नहीं होने दिया कि घर में कितनी तंगी है. उनकी मेहनत और समर्थन ने आदर्श को हर मुश्किल से लड़ने की ताकत दी.

युवाओं के लिए प्रेरणा
आदर्श की कहानी उन युवाओं के लिए प्रेरणा है जो कठिन परिस्थितियों में हार मान लेते हैं. उनका कहना है अगर आपके इरादे मजबूत हैं और आप अपने लक्ष्य के लिए मेहनत करते हैं, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती.

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