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सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान की भावना के खिलाफ, एससी/एसटी उप-वर्गीकरण पर प्रकाश अंबेडकर वंचित बहुजन अघाड़ी क्यों नाराज – India Hindi News

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सुप्रीम कोर्ट उप-वर्गीकरण सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: संविधान निर्माता डाॅ. भीमराव कोटा के अध्यक्ष पद और संप्रदाय बहुजन अघाड़ी (वीबीए) के अध्यक्ष प्रस्ताव ने सर्वोच्च न्यायालय के सात जजों की संवैधानिक पीठ के उस जजमेंट की आलोचना की है, जिसमें प्रदेश को विभाजित जाति /अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) को उप-वर्गीकृत किया गया है। की ओर से अंतिम निर्णय लिया गया है। कोर्ट ने कहा कि ‘नैतिक की एकरूपता’ के लिए जरूरी है कि एससी/एसटी कोटे के भीतर के ‘नैतिक’ कोटे से पहचान कर उन्हें ‘वास्तविक नंगा नाच’ का लाभ दिया जाए और जो लोग पहले से दिखते हैं, उन्हें क्रीमी छुट्टियों में ताज़ा कोटे से बाहर किया जाए। ।।

लाइट कोम ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की आलोचना की है और कहा है कि यह फैसला संविधान में निहित नैतिकता और मूल भावना के खिलाफ है। प्रकाश कोलंबिया ने कहा कि यदि एससी/एसटी समुदाय में किसी भी उप-वर्गीकरण की आवश्यकता है, तो इसे संसद द्वारा पारित किया जाना चाहिए। अदालत के फैसले के गंभीर परिणामों की चर्चा करते हुए ओबामा ने कहा कि यह केंद्रीय विषय है न कि राज्य का विषय है।

इंडियन एक्सप्रेस के एक साक्षात्कार में प्रकाश कॉम ने कहा कि राज्य में जनजातीय वर्ग का उप-वर्गीकरण करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर यह जरूरी भी है तो संसद को इसकी इजाजत देनी चाहिए। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि अगर एससी/एसटी और ओबीसी वर्ग में यह उपवर्ग है तो सामान्य श्रेणी में क्यों नहीं, जहां एक ही समुदाय के लोगों का अधिकार है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सभी प्रकार के कच्चे माल और सामान्य सामग्रियों सहित सभी धातुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

भीम आर्मी के संस्थापक और आज़ाद समाज पार्टी (कांशी राम) के प्रमुख चन्द्रशेखर आज़ाद ने कहा, “मैंने अभी तक सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला नहीं पढ़ा है।” एक जज ने अनियत स्टूडियो है, उसका भी अध्ययन किया जाना चाहिए। यह देखा गया कि बाकी हिस्सों में क्या आवंटन 341 (राष्ट्रपति को एससीओ सूची बनाने का अधिकार देता है) का उल्लंघन किया गया है।” नगीना से शून्य आजाद ने कहा, “मेरा मानना ​​​​है कि सामाजिक-आर्थिक जाति सर्वेक्षण ऐसा करना ठीक नहीं होगा. संविधान सभा की बहस अवश्य पढ़ें। पद मिलने से किसी दलित की सामाजिक स्थिति नहीं बदलती।”

बता दें कि सात जजों की संविधान पृष्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति में उप्र के लिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत कोटे की श्रेणी और श्रेणी जनजातियों के लिए नामांकन की अनुमति दे दी है। -वर्गीकरण करने की शक्तियाँ हैं। अपने फैसले में दलित जज जस्टिस बीआर गवई ने संविधान निर्माता भीमराव बाम का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य को एससी और एसटी में ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान करनी चाहिए और उन्हें सामान्य लोगों से बाहर करना चाहिए। पीठ के दूसरे न्यायाधीश जस्टिस विक्रम नाथ ने भी इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए कहा कि जिस प्रकार एकल कैटगरी पर क्रीमी परत सिद्धांत लागू होता है, उसी प्रकार एससी/एसटी कैटगरी में भी लागू होना चाहिए।

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