डॉक्टर के आरोपी और राजनेता की जांच अब सीबीआई की ओर से, HC ने गंभीर सवाल करते हुए दिए आदेश
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक डॉक्टर की वीभत्स हत्या और रेप के मामले की जांच अब आम सहमति से हो रही है। मंगलवार को उच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि इस घटना में अस्पताल प्रशासन ने गंभीर मतभेद रखे हैं और इस मामले की जांच अब की जा रही है। इसके साथ ही कोर्ट ने अस्पताल के पूर्व उद्यमियों को लंबी छुट्टी पर भेज दिया है। इस वीभत्स हत्याकांड का पूरे देश में विरोध हो रहा है. यहां तक कि देश भर में सरकारी मान्यता प्राप्त डॉक्टर विरोध जता रहे हैं और कई जगहों पर बंदरों का अड्डा लगा हुआ है।
कोर्ट ने कहा कि अस्पताल प्रशासन ने इस मामले में ढीली वोटिंग की, जबकि उन्हें पता था कि क्या घटना हुई है। किस तरह डॉक्टर के शरीर पर गंभीर चोटों और घावों के निशान हैं। अदालत ने कहा कि निजीकरण की निजी एजेंसी से जांच की जानी है, जिसमें कोई भी अपराधी शामिल नहीं है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय केवी केवी रॉबर्टन केस में दिए गए फैसले का खुलासा किया और कहा कि दुर्लभतम मामलों में अदालत में भी केस दर्ज करने की अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है। कोर्ट का यह फैसला इसलिए भी अहम है क्योंकि सीएम ममता बनर्जी ने खुद कहा था कि पुलिस रविवार तक इस मामले की पूरी जांच करे और खुलासा करे।
अगर ऐसा नहीं हो पाया है तो हम केश की रिसर्च को प्लेस कर देंगे। वहीं हाई कोर्ट ने रविवार से पहले ही यह फैसला सुनाया है. कोर्ट ने पूर्व इंजीनियर डॉ. संदीप घोष को भी लताड़ा। बेंच ने कहा कि यह दिल दुखाने वाली बात है कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी वह एक्टिव नहीं थे। यहां तक कि जब उन्होंने अपॉइंटमेंट के बाद पद छोड़ दिया तो उन्हें दूसरे कॉलेज में जिम्मेदारी मिल गई। कोर्ट ने कहा कि घोष को तुरंत छुट्टी देनी चाहिए और उन्हें काम से अलग रखना चाहिए। वह वास्तविक व्यक्ति हैं और जांच पर प्रभाव डाल सकते हैं।
राज्य सरकार की भी अदालत ने घोष को दूसरे अस्पताल में खानापूर्ति की इजाजत दे दी। कोर्ट ने कहा कि इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि किन लोगों को अपवित्रता में छोड़ दिया गया है। अटॉर्नी ने यह भी नहीं सोचा कि कैसे एक जगह से मांगे गए विचार पहले ही दूसरी जगह पर फेक दे दिए जाएं। यही नहीं कोर्ट ने कहा कि घटना के बाद अस्पताल प्रशासन के दस्तावेजों के साथ नहीं दिखाया गया। अब समय बर्बाद करने से कोई फायदा नहीं है। अन्यथा साक्ष्यों से नुकसान की संभावना हो सकती है।