बिहार

“वाम और राम का काम” फिर यूपी परिवर्तन का नाम, कौन भटका रही है, कौन भटका रही है ममता दीदी!

पश्चिम बंगाल में महिला डॉक्टर की हत्या और दुराचार से पूरा देश तबाह हो गया है। भद्रलोक की गैलरी से लेकर राजधानी दिल्ली तक पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन हो रहा है। ये विरोध स्वीकार करने के लिए नहीं है. हर आदमी इस घटना से दुःखी है। एक परिवार की बेटी ने पढ़ाई लिख कर डॉक्टरी की डिग्री हासिल की थी। मास्टर्स डिग्री के लिए पढ़ाई जारी थी। स्पेशल मास्क बनाकर न जाने कितने चर्चों की मदद करता है। खुद ही एक दरिंदे या ‘दरिंदों’ का शिकार हो गया। उनके परिवार पर क्या कुछ गुज़ार रही होगी, इसकी कल्पना हर व्यक्ति कर सकती है। ऐसे में ये ‘वाम और राम का काम’ या फिर यूपी के विचारधारा का नाम लेने से किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी एक महिला हैं, इस मुद्दे पर कड़ी कार्रवाई की उम्मीद की गई थी। हालांकि मामले की जांच पुलिस से लेकर रैंक पर दर्ज की गई। अब अपने खाते से जांच पड़ताल करें।

भीड़ में कौन लोग थे
फिर भी इस मुद्दे पर विवाद बढ़ा ही दिया गया। हुआ यूं कि रविवार की रात कोलकाता में ‘रिक्लेम दी नाइट’ नाम से प्रदर्शन किया गया. इस पर एक बड़ी भीड़ ने मेडिकल कॉलेज में तोड़फोड़ कर आरजी पर हमला कर दिया. बाद में पुलिस ने यात्रियों और कुछ लोगों की गिरफ़्तारी भी की। व्यापारी कौन कहाँ से आये। ये सवाल हर ओर से आया। जबाव में ममता बनर्जी ने कहा ये राम और वाम का काम है. उन्होंने कहा-”जहां तक ​​मुझे जानकारी मिली है, मैं छात्रों को दोष नहीं देता.” वाम और राम मिलकर ये कर रहे हैं…।” उन्होंने इसी तरह की एक घटना यूपी में भी कही थी. अब जिस देश में इस तरह की घटना हुई है, उसके बारे में चर्चा करके क्या और कितना लाभ हो सकता है, ये समझ से परे है।

बीजेपी का जवाब
भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने हमलावर भीड़ को ममता बनर्जी की पार्टी का गुंडा बताया। बीजेपी भी इस मसाले पर फर्नीचर. बीजेपी की ही एक और नेता लॉकेट चटर्जी ने कहा कि अगर बीजेपी के लोग बिजनेसमैन हो कर कहीं भी आ रहे थे, तो राज्य की पुलिस क्या कर रही थी.

इसी बीच फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने एक ट्विट कर कोलकाता स्कैंडल के डॉक्टर के लिए जस्टिस की मांग की। स्वरा भास्कर के ट्विट पर नेटिज़न्स का सीज़न शुरू हो गया। ट्विटर पर लोगों ने लिखा कि पूंजीवादी घोटाले में स्वरा ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की थी। अब वे ममता बनर्जी से क्यों नहीं मांगती हैं। इसे लेकर लोगों ने बहुत सारी टिप्पणियाँ कीं।

दुःख के मुद्दे भी राजनीति!
अब सवाल ये है कि किसी परिवार की लिखी किताब डॉक्टर बेटी की हत्या और उसके पिता पर इतनी राजनीति क्यों हो रही है। दृढ़ विश्वास के लोग अगर सवाल उठा कर सत्तापक्ष के विरोध में तानाशाही तैयार करने की कोशिश करते हैं तो स्वाभावित है। इस पीड़ित पक्ष को न्याय की मुलाकात की पीड़ा है। लेकिन अस्थाई पार्टी और मुख्यमंत्री को राम-वाम जैसे जुमले का इस्तेमाल क्यों कर ने पड़ रहे हैं। आख़िरकार कोई भीड़ गुंडागर्दी कैसे कर सकती है। ममता बनर्जी ने पहला दफा जब किया था तब उन्होंने वामसमर्थकों को ‘गुंडा’ पद पर बिठाने की बड़ी बात कही थी।

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पहचान कर सजा देना जरूरी
ये कोई छुपी सच्चाई नहीं है कि समाज में सक्रिय सजीवों के बार-बार नियुक्तियों वाले दल से ही जुड़ना चाहते हैं। फिर भी अगर वाम दल या भाजपा समर्थक का रविवार की रात की घटना में कोई हाथ है तो उन पर कार्रवाई का समर्थन सर्वसम्मति सरकार का ही है। ये कह कर मुख्यमंत्री अपना हाथ नहीं झाड़ सकते कि ये सब ‘राम और वाम’ का काम है। न ही इस घटना को बढ़ावा देने या किसी अन्य घटना से जुड़ने का कोई फायदा होने वाला है। इसी तरह की हर घटना की निंदा से आगे बढ़ने के घिन पैदा होने वाली है। इसमें हर व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए और वो भी तेजी से शामिल करें।

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