जम्मू और कश्मीर

जम्मू-कश्मीर में फिर क्यों हुई राम माधव की वापसी, बीजेपी कैसे दावा कर सकती है फायदा?

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। भारतीय जनता पार्टी के नेता राम माधव को चुनाव प्रभारी बनाया गया है। इस घोषणा के ठीक 24 घंटे पहले उन्होंने स्थानीय नेताओं के साथ कई बैठकें कर पार्टी के बेरोजगारी अभियान को दिशा दी। कई स्थानीय नेताओं का कहना है कि चुनाव प्रभारी के रूप में उनकी वापसी से पार्टी की स्थानीय इकाई की लड़ाई है। 2014 में उनके साथ मिलकर काम किया था। राम माधव के साथ केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी को भी इसकी जिम्मेदारी मिली है।

2014 के चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक जाने-माने चेहरे राम माधव को कश्मीर में पार्टी की राजनीतिक और विचारधारा की कहानी का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्हें ही दो अलग-अलग अलगाववादी वामपंथी और क्षेत्रीय क्षत्रप पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ आने का श्रेय दिया जाता है।

नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “घाटी में बीजेपी को जमीनी स्तर पर बहुत कम समर्थन मिला था।” ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी के सिद्धांत 370 को खत्म करने और 35 (ए) को हटाने का सिद्धांत अच्छी तरह से लोगों के बीच में गूंजता था। राम माधव ने क्षेत्रीय नेताओं और संगीतकारों के साथ मिलकर लोगों और पार्टी के बीच एक पुल बनाने के लिए एकजुट होकर काम किया। वह काफी हद तक सफल रहे। बीजेपी ने कश्मीर कमांडर में कोई सीट नहीं, बल्कि जम्मू क्षेत्र में 25 प्रमुख पद हासिल किए। इसके साथ ही भगवा पार्टी सत्ता के मित्रता के लिए बातचीत करने की स्थिति में आ गयी।”

बता दें कि 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 25, पीडीपी को 28, कांग्रेस को 12 और नेशनल कॉन्फ्रेंस में 15 सीटें मिली थीं।

हुबा ने अपना हाथ खींच लिया
पीआईपी के साथ भाजपा गठबंधन का नेता था। मुख्यमंत्री और पीआईपी के संरक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के तुरंत बाद गठबंधन में संकट सामने आ गया। उनकी बेटी और राजनीतिक उत्तराधिकारी ओबामा फ्री ने अपने पैर पीछे खींचने के लिए गठबंधन जारी रखने का मुद्दा उठाया। इसके बाद सितंबर 2020 में राम माधव का राष्ट्रीय विद्रोह का पद हटा दिया गया और वे अपने मूल संगठन आरएसएस में वापस चले गए।

एलायंस ने राम माधव की केमेस्ट्री में काम किया
भाजपा नेताओं ने कहा, ”उनकी वापसी के संकेत हैं कि भाजपा गठबंधन बना रही है और कहानी को धार दे रही है, अपनी क्षमता पर भरोसा कर रही है। पार्टी अपनी अभिव्यक्ति और मीडिया एक्सपोजर का लाभ उठाने के लिए पार्टी की स्थिति बेहतर बनाना चाहती है।” आरोप का भी विरोध किया जा रहा है जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ने धारा 370 को हटाने और राज्य का बंटवारा करने के लिए कानून का उल्लंघन किया है।”

वहीं, एक अन्य नेता ने कहा कि राम माधव की वापसी को स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देने, क्षत्रपों, पीडीपी और एनसी से जुड़े नेताओं के साथ संवाद का एक चैनल के रूप में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के प्रयास में देखा जा रहा है।

बता दें कि जम्मू-कश्मीर में आज के समय में सज्जाद लोन वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अल्ताफ बुखारी के नेतृत्व वाली अपनी पार्टी और पूर्व कांग्रेसी गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी जैसे कई राजनीतिक संगठन हैं जो एनसी और पी लीडरशिप आईपी के विकल्प हैं। रूप में सामने आ रहे हैं।

नैरावेटिव के लिए भाजपा में सुधार करेंगे
नाम न बताने की शर्त पर दूसरे नेता ने कहा, ”जम्मू-कश्मीर राज्य का बाहरी और यूटी बनने के बाद ऐसी धारणा थी कि भाजपा अब जम्मू तक ही सीमित रहेगी और घाटी में उसका समर्थन पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।” उनका काम यह सुनिश्चित करना होगा कि भाजपा जम्मू की 43 सीटों में से अधिकांश पर जीत हासिल करेगी। साथ ही घाटी में भी अपना खाता खोलें। विशेष रूप से उन खेलों में भाजपा की नजरें हैं जो कि गूजर और पहाड़ी बहुल हैं। ”अंधेरे 370 के बाद समानता का लाभ मिला है।”

रणनीतियाँ कि 2022 के परिसीमन के बाद जम्मू क्षेत्र में 43 पद हैं जो भाजपा का गढ़ है और आपको मुस्लिम मुस्लिम कश्मीर के नेता 47 पद हैं। 21 पाक अधिकृत जम्मू और कश्मीर के लिए प्रस्थान। जबकि बैचलर जाति (एएससी) के लिए 7 गंतव्य हैं। यूटी में पहली बार चट्टान जनजाति (एसटी) के लिए 9 तीर्थयात्राएं की गईं।

आर्टिकल 370 के पेटेंट होने के बाद घाटी में बीजेपी के लिए यह पहली बार चुनाव आयोग करेगी। एक नेता ने कहा, “राम माधव की पार्टी लाइन से अलग राजनीतिक नेताओं के साथ व्यवहार में सहजता और एक उदारवादी के रूप में उनकी छवि के बाद चुनाव की स्थिति में बातचीत के लिए एक महत्वपूर्ण विशेषता होगी। अगर किसी की भी पार्टी स्पष्ट नहीं है बातचीत है तो राम माधव वार्तालाप का चैनल स्कॉलरशिप में सहायता साबित होगी।”

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